ग्रीष्मकाल में भैंसो से अधिक दूध उत्पादन

पशु संदेश, 31 March 2019

डाॅ. जाॅयसी जोगी, डाॅ. पूनम शाक्या, डाॅ. अंजू नायक, डाॅ. अजय राय एवं डाॅ. स्मिता

भैंस जाड़े में ब्याकर जाड़ें में ही गाभिन हो जाती है जिस कारण मई, जून, जुलाई की वर्षा हाने से पहले दूध की कमी हो जाती है। यदि भैंस क¨ सीधी धूप की किरणों से बचाया जाए, तो भैंस दूध भी अधिक देगी, गाभिन भी समय से हो जायेगी और उसके बच्चे भी ठीक प्रकार से बढत्रवार दिखायेंगे।

भैंस गाय से निम्न कारणों में भिन्न है-

  • भैंस का रंग काला होता है इस कारण से यह पशु धूप से अधिक गर्मी को सोकता है।
  • भैंस के पसीने की ग्रंथि बहुत कम होती है इस कारण इसे पसीना अधिक नही आ सकता और यह पसीने को वाष्पीकरण के कारण अपने को शीतल नही कर पाती।
  • भैंस की खाल गाय की खाल से काफी मोटी होती है जिस कारण से पशु के अन्दर की गर्मी बाहर आसानी से नही निकल सकती है।

इन तीन कारणों से भैंस छाया में या पानी में धूप निकलते ही चली जाती है। यदि पानी न हो तो पेड़ की छाया काफी होती है। परन्तु पशु को टीन, पक्के मकान या गोशाला में बाँधने से छाया भी गर्मी की वजह से बेकार होती है क्योंकि यह पशु बार-बार पानी पीता है तथा पेशाब करता है जिससे पक्के मकान में उमस या नमी की मात्रा बढ़ जाती है और भैंस को और अधिक गर्मी लगती है।

इस गर्मी के कारण भैंस पर निम्न प्रभाव पड़ते है-

  • भैंस बार-बार पानी पीती है और चारे को ठीक प्रकार से पचा नही पाती।
  • भैंस कम चारा खाने लगती है।
  • दूध में चिकनाई तथा प्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है।
  • भैंस का वजन घटने लगता है तथा भैंस का इलाज कराने पर भी कोई फायदा नही होता है।
  • भैंस गर्मी की वजह से चुप हो जाती है यानि उनकी हीट या गर्मी आती तो है परन्तु उसके लक्षण नही दिखाई देते।

भैंस के बच्चों पर गर्मी का अधिक असर पड़ता है और वह इस प्रकार है-
(अ) खाना कम खाते है।
(ब) सुस्त दिखाई देते है।
(स) शरीर का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है।
(द) पैरों में सूजन आ जाती है।
(क) आँखों से पानी आता है।
गर्मी के कारण भैंसों के न ब्याने तथा बच्चों की समुचित बढ़वार न होने से नई भैंसो की प्राप्ति जल्दी नही हो पाती और नई भैंस खरीदने पर व्यय करना पड़ता है और नई भैंसों का भी गर्मी की समस्या पर ध्यान न देने से यही परिणाम होता है।

निम्न बातों को ध्यान में रखने से भैंसो से भी लाभ प्राप्त किया जा सकता है-

  • भैंसो को सूरज निकलते ही नदी, तालाब या पोखर में जाने दें तथा सूरज ढलने तक उन्हे पानी के बाहर न निकालें।
  • यदि भैंसो को नदी या तालाब में नही ले जा सकते तो उन्हे पेड़ के नीचे छाया में रखे। उनको टीन या लेन्टर के नीचे न खड़ा करें।
  • भैंस को खुली जगह में हवादार स्थान पर ही रखें तथा पंखों और पानी पीने का यथायोग्य इंतजाम करें।
  • भैंस को तालाब या नदी के आभाव में दिन में चार-पाँच मिनट तक तीन-चार बार नहलाने से भी गर्मी की समस्या से निबटा जा सकता है।

इस प्रकार आप भैंसों के न ब्याने, गाभिन रहने तक कम दूध देने की समस्या का समाधान कर सकते हैं तथा आपके पशु अधिक स्वस्थ दिखाई देंगें और आप चिकित्सा पर कम खर्च करें और अधिक लाभ प्राप्त करेंगें।

डाॅ. जाॅयसी जोगी, डाॅ. पूनम शाक्या, डाॅ. अंजू नायक, डाॅ. अजय राय एवं डाॅ. स्मिता 
पशु सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग,
पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, जबलपुर