डेयरी पशुओं का प्रजनन मापदण्ड

पशु संदेश, 21 February 2019

Jaswant Kumar Regar

पशुओं की प्रजनन क्षमता सन्तुलित आहार एवं उचित प्रबन्धन पर निर्भर करती है और दुग्ध उत्पादन पशु के प्रजनन क्षमता, नस्ल, पोषणस्तर, आयु एवं शारीरिक दशा पर निर्भर करता है। डेयरी फार्म से अधिक लाभ प्राप्त करने के हेतु हमें प्रति गाय प्रति वर्ष एक बछड़ा/बछियाँ प्राप्त करने हेतु आवश्यक पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। क्योकिं इससे हमें कम समय में बछड़े/बछिया प्राप्त होगा जोकि डेयरी फार्म की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में सहायक सिद्ध होगा तथा आधिक दूध भी प्राप्त होगा अतः पशुपालक भाईयो को निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान देना आवश्यक होगा-

यौवनारंभ एव यौन परिपक्वता
प्रथम व्यांत की आयु
व्यांत अन्तराल
पीढ़ी अन्तराल
शुष्क अवधि
सफल गर्भधारण
गर्भकाल
ऋतुकाल

यौवनारंभ एवं यौन परिपक्वताः-

प्रजनन जीवन की शुरुआत को ही हम यौवनारंभ कहते है, जो कि पशु की आयु, नस्ल और शारीरिक भार पर निर्भर करता है। सामान्यतः यह गाय में 10-15 माह तथा भैंस में 2 साल का होता है। शारीरिक बढोत्तरी के लिए नवजात बछड़े/बछियाँ को सन्तुलित आहार देने चाहिए, बढोत्तरी करने वाले बछड़े/बछियाँ का औसत शारीरिक भार वृद्धि 400-500 ग्राम प्रतिदिन होने चाहिए, तब ही सही समय पर ये बछड़े/बछियां यौवन तथा परिवक्व दशा में पहुंच कर 250-270 किलोग्रा0 भार गर्भधारण करने योग्य होगी ।

प्रथम व्यांत की आयु -

गाय के प्रथम प्रसव की आयु 30-36 महीने होने चाहिए और शारीरिक भार के लगभग 85% होना चाहिए। विदेशी पशु में शारीरिक भार लगभग 500-600 कि0 ग्रा0 एवं देशी नस्ल मे यह 400-450 कि0ग्रा0 होना चाहिए। भार अवस्था स्कोर 3.25- 3.50 प्रजनन से लेकर प्रथम व्यांत तक होना चाहिए।

व्यांत अन्तरालः

दो व्यांत के बीच का समय व्यांत अन्तराल कहलाता है दो व्यांतो के बीच का समय लम्बा होने से गाय/भैंसे लम्बे समय के लिए दूध नही देती, तथा उसके खिलाने का खर्च बढता है। इसलिए ऐसी गाय/भैंस को पालना किसान के लिए आर्थिक दृश्टि से हानिकारक होता है, क्योंकि गाय/भैंसो की द्वारा कुल उत्पादन कम होता है तथा बच्चो की संख्या में भी कमी होती है। बहुत सी गाय/भैंसें लम्बे समय तक दूध प्रतिदिन कम होता है। यदि गाय/भैंसे व्याने के बाद 2-3 महीने में गर्भधारण कर ले तथा उसके बाद 8-10 महीने तक दूध दे और शुश्क का समय दो महीने हो यानि एक व्यांत से दूसरे व्यांत का समय 12-15 महीने हो तो इस चक्र को आदर्श व्यांत चक्र कहते है। गाय/भैंसो के व्याने के बाद उसके अंगो के सिकुडने तथा समान्य होने मे 1 माह लगता है। व्याने के बाद 1 महीने बाद पशु ऋतु में आये तो गर्भ धाराण नहीं करवाना चाहिए। पशु को खरीदते समय हमेशा दूसरे अथवा तीसरे व्यांत की गाय/भैंस को प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि इस दौरान पशु अपनी पूरी क्षमता के अनुरुप खुलकर दूध देने लगते है और यह क्रम लगभग सातवे व्यांत तक चलता है। इसके पहले अथवा बाद में दुधारु पशु के दूध देने की क्षमता कम रहती है।

पीढ़ी अन्तरालः-

यह अवधि 3 साल गायों में तथा भैसो में 4 साल होती है। यदि दुधारू पशु में पीढ़ी अन्तराल कम होगा तब हमें कम समय में उसकी संतति मिलने के साथ-साथ दुध उत्पादन भी मिलता है।

शुष्क अवधिः-

ब्याने के बाद पशु 8-10 मास तक दूध देते रहते है, कई पशु अगले बच्चे के जन्म तक भी दूध देते रहते है। लेकिन यह अच्छा नहीं है, ऐसी दशा में पशु के बच्चे देने से 2 महीना पहले शुश्क होना आवश्यक है। इसके लिए पशु को शुश्क करने की विधियां जैसे अचानक दूध निकालना बन्द कर देना, एक-एक दिन के अन्तराल में दूध निकालना अथवा पूरा दूध निकालना बन्द कर देना चाहिए। ऐसा करने से अगले दूधकाल में पशु स्वस्थ, दुग्धग्रंथियां पुनः सक्रिय हो जाती हैं और दूध उत्पादन बढ़ जाता है।

गर्भकाल-

गर्भकाल का समय ऐसा है जब मादा पशु को अपने शरीर के साथ-साथ शरीर में पल रहे बच्चे का भी पूरा पालन पोशण करना पड़ता है। गर्भावस्था एक विशेश अवस्था है जिसके दौरान मादा के शरीर में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन होते है। जिसके कारण ही हमको अगली पीढी के पशु तथा नये व्यांत में दूध उत्पादन मिल पाता है अतः समय से गाभिन पशुओ की देखभाल एवं दाना पानी की आवश्यकता पड़ती है। यह समय गायो में 280 दिन तथा भैंसो में 310 दिन होता है।

सफल गर्भधारण:

अच्छी नियमित प्रजनित गाय प्रसूति के पश्चात 60-80 दिनों में पुनः गर्भ धारण कर सकती है अतः गर्भधारण को सफल बनाने के लिए विभिन्न पोशक तत्वों की आवश्यकता होती है अतः पशुओ में पोशक तत्व की आवश्यकता अधिक होती है उनके आहार में प्रोटीन, खनिज लवण एवं ऊर्जायुक्त आहार का उपयोग किया जाना चाहिए जिसके लिए आहार में दलहनी, चारा, चूनी, खली, नमक का उपयोग किया जाना चाहिए। विटामिनों की पूर्ति हेतु हरे चारे का खिलाया जाना नितान्त आवश्यक है।

मदकाल-

पशु के प्रजनन काल की अवस्था को ही समान्यतः मदकाल कहते हैं। जिसमें मादा पशु गर्मी/हीट के लक्षणों को प्रदर्शित करती है।

मदकाल के दौरान प्रकट हाने वाले लक्षण -

मादा को भूख न लगना
पशु का रंभाना
मादा का विचलित व अधीर होना
मादा की योनि में सूजन व गाढे सफेद रंग का स्राव।
मादा का पूँछ ऐंठना 
मादा का दूसरे पशुओं के साथ आलंबन।
मादा के मदकाल होने का पता टीजर सांड से भी लगाया जाता है ,टीजर सांड को मादा के पास ले जाने पर वह विशेष लक्षण दर्शाता है।
टीजर सांड का मादा के पुट्ठे पर ठुड्डी रखना।
टीजर सांड का फ्लेहमैन प्रतिक्रिया दर्शाना
टीजर सांड के साथ आलंवन।
इस प्रकार यदि उपरोक्त छोटी-छोटी किन्तु महत्वपूर्ण बातों को ध्यान देकर पशुपालक अपने पशु के प्रति पूर्ण जिम्मेदारी निभा सकेगें जिसके परिणाम स्वरुप उन्हें अच्छे प्रजनन शील तथा उत्पादक पशु मिलेगें और अगली पीढी की स्वस्थ सन्तति जो अधिक दुग्ध उत्पादन तथा लाभ के अतिरिक्त पशु पालक डेरी व्यवसाय, समाज तथा देश को लाभ पहुंचायेगी।

Jaswant Kumar Regar, Ph.D. Student LPM Division, ICAR-NDRI, Karnal