पशु संदेश, 22 March 2019
डाॅ. जाॅयसी जोगी, डाॅ. पूनम शाक्या, डाॅ. अंजू नायक, डाॅ. अजय राय एवं डाॅ. स्मिता
गर्भाशय, ग्रीवा एवं योनि का गाय भैंसों में भग के रास्ते बाहर से बार-बार दिखयी देना अथवा सरक कर भग के बाहर आ जाना पशु पालकों के लिए एक गम्भीर समस्या बन जाती है। कभी-कभी उसके साथ-साथ मलाशय भी बाहर निकल आता है और यदि समय रहते ध्यान न दिया जाए तो समस्या एक गम्भीर रूप ले लेती है। यह विकार प्रसव बाद की अपेक्षा प्रसव पूर्व अधिक पाया जाता है। प्रथम प्रसविनि पशुओं की अपेक्षा बहु प्रसविनि पशुओं में यह दोष अधिक होता है। किसी पशु में यह व्याधि बार-बार होती रहती है विशेषकर जबकि पशु ऋतुमय होते है और हर बार ऋतुमय होने पर यह व्याधि हो जाती है इस को अल्प कीमत में ही बेच देते है। यह व्याधि गायों की तुलना में भैंसों में अधिक होती है।
समस्या के कारण
यद्यपि इस समस्या का मुख्य कारण अभी तक पूर्ण रूप से ज्ञात नही हो पाया है फिर भी मूल कारणों में निम्न मुख्य है।
लक्षण
एक बार जननांग यदि बाहर निकल आये तो पशु बेचैन हो जाता है और पीछे की ओर लगाने से शनैः-शनैः सूजन बढ़ती जाती है। पशु का जोर बढ़ता जाता है। कुछ समय पश्चात् मलाशय भी निकल आता है जोकि बाहर निकली योनि में अन्दर की ओर होता है, पेशाब रूक जाती है। बाहर निकले अंगों पर पेशाब लगने से समस्या गंभीर होती है। बाहर निकले भाग का धीरे-धीरे परिगलन होने लगता है। बाह्ना पशुओं (कुत्तों) कौवों आदि के नोचने अथवा बाहृा अघातों से घाव भी बन जाते है। बाहर निकले भाग से स्त्राव होता है उस पर मक्खियाँ आदि बैठने लगती है। यदि पशु गर्भित है तो गर्भाशय ग्रीवा की सील खुल जाने पर गर्भपात भी हो सकता है। जोर लगाते-लगाते अंत में पशु निढाल हो जाता है। जीव विषाक्कता (टाक्सीमिया) एवं (सेप्टिीसीमियां) के कारण पशु की दशा बिगड़ती जाती है। अंत में पशु खाना पीना बन्द कर देता है।
पशुपालकों द्वारा करने योग्य कुछ उपाय
पीड़ित पशु को अन्य पशुओं से पृथक कर अलग स्थान पर रखें। यह स्थान पशु को आरामदायक एवं साफ स्वच्छ होना चाहिए तथा ऐसे स्थान पर हो जहाँ पशु की निरन्तर देखभाल आसानी से हो सके।
यदि समस्या साधारण हो, बाहर निकला भग 3-4” से ज्यादा नही, गुदा का भ्रंश नही, परिगलन नही, पशु द्वारा पीछे की ओर जोर नही, बाहर निकले भाग की साफ हाथों से साफ स्वच्छ पानी में हल्का प्रतिरोधी (एन्टीसेप्टिक) घोल मिलाकर भली प्रकार सफाई कर दें और हथेली से जोर लगाकर बाहर निकले भाग को यथास्थान अन्दर की ओर प्रतिस्थापित कर दें। इसके बाद पशु चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।
पशु को इस प्रकार रखें कि उसका पिछला भाग अगले भाग की अपेक्षा लगभग 6” ऊपर रहे इससे पुनः भ्रंश न होने में मदद मिलती है। कुछ दिनों के लिए पशु को चारा अल्प मात्रा में दें।
समस्या गम्भीर होने पर पशु चिकित्सक को तुरंत सूचना दें चिकित्सक कुशल हो। अकुशल चिकित्सकों (झोला छाप चिकित्सक) से सदा बचें।
पशु चिकित्सक के आने से पूर्व की जाने वाली महत्वपूर्ण बातें
डाॅ. जाॅयसी जोगी, डाॅ. पूनम शाक्या, डाॅ. अंजू नायक, डाॅ. अजय राय एवं डाॅ. स्मिता
पशु सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग,
पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, जबलपुर