राजस्थान के बाड़मेर में अकाल से पशु-पक्षियों के मौत का तांडव जारी

पशु संदेश, 17 May 2019

डॉक्टर आर.बी. चौधरी

सूखा प्रभावित बाड़मेर में  इस साल कि भीषण गर्मी में  ताल -तलैया सूख गए है और आंखों देखी हाल के अनुसार पशु पक्षियों की हालत अत्यंत दयनीय है। पूरे जिले में पशुधन तेजी से मर रहा है खास करके चारा -पानी के अभाव में।चारों ओर हाहाकार मचा है  और लोग सहायता की गुहार लगा रहे हैं।  बाड़मेर के तमाम ग्रामीणों का कहना है कि अनुरोध पर राहत मिलती है अन्यथा नहीं। पीने के पानी और चारे की कमी के कारण मवेशी  तेजी से मर रहे हैं और महिलाओं को पीने के पानी की व्यवस्था करने के लिए 4 से 5 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है, क्योंकि पारा 44 डिग्री सेल्सियस हो गया है। हालांकि, बाड़मेर जिला भयावह सूखे की चपेट में है गांव वालों का का कहना है कि प्रभावित गांवों में  अभी राहत कार्य शुरू नहीं हुए हैं। और राहत के लिए इंतजार कर रहे हैं।  जनपद के अधिकारियों के अनुसार  ग्रामीणों के मांग के अनुसार पर प्रभावित क्षेत्रों में पशु शिविर और पीने के पानी की व्यवस्था को मंजूरी दे रहे हैं।

बाड़मेर में जलप्रबंधन विभाग के अनुसार पानी के टैंकरों को मंजूरी दे रहे हैं।

बाड़मेर से लगभग 85 किलोमीटर पश्चिम में स्थित तमलोर गांव के सरपंच के अनुसार  पूरे जनपद की स्थिति अत्यंत दयनीय है।  उन्होंने बताया कि सूखे की विपत्ति जनक स्थिति में पशुधन के लिए  पानी या चारा उपलब्ध न  होने से पूरे जनपद में प्रतिदिन  सैकड़ों मवेशी मर रहे हैं।  उन्होंने दावा किया कि  किसी भी गांव में जाकर मवेशियों के शवों को  देखा जा सकता है। 

उन्होंने कहा कि इतनी विपत्ति जनक स्थिति के बावजूद गांवों में  कोई राहत कार्य  अभी तक शुरू नहीं हुआ है। उन्होंने यह स्वीकार किया कि मानसून की  लगातार विफलता के कारण उनके पास कोई चारा स्टॉक नहीं है  और न  ही पानी का प्रबंध।दूसरे गांव के एक  गौशाला कार्यकर्ता ने बताया कि चारा पहले 600 रुपये प्रति क्विंटल था लेकिन अब यह 1,700 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है। खेती और पशु पालन इस क्षेत्र में लोगों का प्रमुख व्यवसाय है लेकिन  इस साल के सूखे ने उन्हें असहाय स्थिति में छोड़ दिया है। रोजगार के लिए लोग  तेजी से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन कर रहे हैं। एक  दूसरे ग्रामीण  ने बताया कि पीने का पानी की सबसे बड़ी समस्या है।आज तक उनके इलाके में सरकारी जलापूर्ति नहीं हुई है। पीने के पानी के लिए हमें 1,500 रुपये से 2,000 रुपये प्रति पानी के टैंकर का भुगतान करना पड़ता है। मानसून की विफलता के बाद उनकी फसल खराब हो गई और वे इतनी बड़ी लागत लगाने की स्थिति में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने स्थिति को गंभीरता से नहीं लिया जिससे नतीजा और गंभीर हो गया।

इस समय सरकार ने केवल 12 बीघा तक की जमीन वाले छोटे और सीमांत किसानों को रियायती दरों पर चारा देने की घोषणा की है। स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि पश्चिमी राजस्थान के इस हिस्से में एक औसत किसान 15 बीघा से अधिक भूमि जोत रहा है।सूत्रों के अनुसार इस साल बाड़मेर जिले में  इस दशक का सबसे भयावह सूखा पड़ रहा है और जिले के कुल 2775 गांवों में से 2741  गावों   को सूखा प्रभावित घोषित किया गया है। अन्य सूत्रों के अनुसार अनुसार, 2191 गांवों में 100%, 503 गाँवों में 75% और 47 गाँवों में 50% फसल का नुकसान हुआ है।

सूत्रों के अनुसार यह  हालात लगातार पाँचवाँ वर्षों से बना हुआ है क्योंकि बाड़मेर जनपद में अल्प वर्षा होना मुख्य कारण है और यही वजह है की  बाड़मेर जिला सूखे की स्थिति का सामना कर रहा है।  विश्वसनीय आंकड़ों के अनुसार 2014 में 16 से गांव सूखे से प्रभावित हुए थे। वर्ष 2015 में 1470 , 2016 में 2478 तथा 2017 में 1900 गांव प्रभावित हुए । किंतु, इस साल 2741 गांव प्रभावित हुए हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार सीमावर्ती जिले में अब तक 151 पशु शिविर स्वीकृत किए गए हैं।

डॉक्टर आर.बी. चौधरी

(पूर्व मीडिया हेड एवं प्रधान संपादक- भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड, भारत सरकार)