दुधारू पशुओं में खुँरपका-मुँहपका एक घातक बीमारी

Pashu Sandesh, 13 July 2022

 

डॉ. पुरुषोत्तम (पी.एच.डी. स्कोलर)

एनाटोमी विभाग,

पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविधालय,

राजुवास बीकानेरराजस्थान

परिचय :-

यह विषाणु जनित अतिसंक्रामक रोग है। यह जुगाली करने वाले पशुओं गाय, भैंस, भेड़ और बकरी में पायी जाती है । यह संकर नस्ल व कम उम्र के पशुओं में ज्यादा घातक होती है । भारत में प्रतिवर्ष 1 हजार करोड़ का आर्थिक नुकसान होता है, यह नुकसान दुध उत्पादन, मॉस उत्पादन, और ड्राट जानवारों में कार्यक्षमता में कमी के कारण होता है ।

कारण :-

यह फिल्टरेबल विषाणु पिकोरना के कारण होती है, इसके सात मुख्य स्वरूप होते है इनमें O, A, C, Asia-1, SAT-1, SAT-2, SAT-3 होते है, भारत में O, A, C, Asia-1 मुख्य रूप से होते है ।

फैलाव :-

  • सामान्यत संक्रमित चारा व पानी के कारण होती है ।
  • वायु संक्रमण भी हो सकता है ।
  • छोटे बछड़ो में दूध के द्वारा भी फैलती है ।
  • गोबर व पेशाब के माध्यम से भी फैलती है ।

लक्षण :- 

  • मुँह से लार टपकना शुरू हो जाती है ।
  • मध्यम से तेज बुखार (104-106 डिग्री फोरेन्हाइट) रहता है ।
  • मुँह में छालो के कारण घाव बन जाते है ।
  • पशु चारा पानी लेना बन्द कर देता है ।
  • जुगाली करना बन्द कर देता है ।
  • खुरो में छाले फुटकर घाव बन जाते है और पशु लंगड़ा हो जाता है ।
  • खुर के घाव में कीड़े पड़ जाते है ।
  • कई बार अडर व थनो में भी छाले बनकर थनैला रोग हो जाता है ।

निदान :- 

लक्षणों के आधार पर आसानी से इस रोग की पहचान की जा सकती है -

  • मुख्य लक्षण मुंह में लार व झाग आना व छाले पड़ जाना ।
  • खुरों में छाले पड़ जाना व पशु का लंगड़ा हो जाना ।
  • सीरोलोजिकल टेस्ट से ।

उपचार :- 

यह एक वायरल बिमारी है व इसका कोई विषेश उपचार नहीं है सिर्फ लक्षणों के आधार पर उपचार कर सेकेण्डरी इन्फैक्शन को रोक सकते है और पशु की पीड़ा कम कर सकते है, इसीलिए इस बिमारी में बचाव ही उपचार है ।

उपचार के तौर पर निम्नानुसार कर सकते है -

  • मुँह में लाल दवा का घोल लगाया जाता है ।
  • खुरो में भी लाल दवा का घोल व पैरों व खुरों में फिलाईल का घोल व एन्टीसेप्टिक क्रीम लगाई जाती है ।
  • एन्टीबायोटिक इन्जेक्शन व बि-कॉप्लेक्स इन्जेक्शन दिया जाता है ।

बचाव के उपाय :-

  • रोगी पशुओं को तुरन्त स्वस्थ पशुओं से अलग करें ।
  • रोगी पशुओं को खुला न छोड़ें ।
  • संक्रमित चारा, पानी व बेडींग नष्ट करें ।
  • पशु बाड़ा व चारे के बर्तनों को डिस्इन्फैक्ट करें ।
  • पशुओं मे छः माह में एक बार एफ.एम.डी. टीकाकरण अवश्य करवाएं तथा तीन माह के ऊपर सभी पशुओं का टीकाकरण अवश्य करवाएं ।

एफ.एम.डी. उन्मुलन के लिए भारत सरकार द्वारा निःशुल्क एफ.एम.डी. सी.पी. के नाम से अभियान चलाया जा रहा है उसमें टीकाकरण अवश्य करावें । टीकाकरण सितम्बर- ऑक्टोबर  व फरवरी-मार्च में करावें ।

     खुँरपका-मुँहपका रोग के कारण दुधारू पशु दुध देना बन्द कर देता है, जिससे पशुपालक को भारी आर्थिक नुकसान होता है । इस बिमारी से पशु में गर्भपात, बांझपन, थनैला, हॉफना और खुर खराब होना इत्यादि, इस तरह से कई तरह की बिमारीयाँ हो जाती है । इसीलिए सजग व जागरूक रह कर पशुपालक अपने पशुओं को इस घातक बिमारी से बचायें । सिर्फ बचाव ही उपचार है ।