बकरियों में प्रमुख प्रजनन विकार

Pashu Sandesh, 16 July 2022

मधु शिवहरे , एस एस माहौर , पुष्कर शर्मा ,कविता रावत और  ज्योत्सना  ,

सहायक प्राध्यपक 

मादा पशु रोग एवं प्रसूति विभाग 

पशु चिकित्सा एवं पशु पालन  महाविद्याय , महू  

 

पशु का मद में आना:

यौवनावस्था प्राप्त करने के बाद में मादा बकरियों में  मद चक्र आरंभ हो जाता है तथा यह चक्र सामान्यत: तब तक चलता रहता है जब तक कि वह बूढा होकर प्रजनन में असक्षम नहीं हो जाता| प्रजनन अवस्था में यदि पशु मद में नहीं आता तो इस स्थिति को एनस्ट्रस को टू अनस्ट्रस(True Anestrus) भी कहते हैं| यह निम्नलिखित द्वितीय श्रेणी एनस्ट्रस|
इस श्रेणी के एनस्ट्रस में अंडाशय के ऊपर मद चक्र की कोई रचना जैसे फोलीकल अथवा कोरपस ल्यूटियम नहीं पायी जाती| इस एनस्ट्रस को ट्रू अनस्ट्रस भी कहते है| यह निम्नलिखित कारणों से हो सकता है|
(क) कुपोषण 

(ख) वृद्धावस्था 

(ग) अत: व बह्मा परजीवी तथा लम्बी (chronic)बीमारियां

(घ) ऋतु का प्रभाव (विशेष कर भैंसों में) 

(ड़)प्रजननअंगोंके

उपचार तथा निवारण:

(1) बकरियों को सदैव सन्तुलित आहार देना चाहिए देना चाहिए तथा बकरियों के आहार में खनिज मिश्रण अवश्य मिलाना चाहिए|
(2) बकरियों के मद में न आने पर उसे पशु चिकित्सक को दिखाना चाहिए|
(3) कौपर-कोबाल्ट की गोलियां भी बकरियों को दी जा सकती हैं|
(4) आवश्यकतानुसार बकरियों को पेट के कीड़ों की दवा भी अवश्य देनी चाहिए|
(5) यदि बकरियों स्थिर कोर्पस ल्युटियम अथवा ल्युटियल सिस्ट के कारण गर्मीं में नहीं आता तो उसे प्रोस्टाग्लेंडीन का टीका लगाया जाता है|
(6) गोनेडोट्रोफिन्स,जी.एं.आर.एच.,विटामिन ए तथा फोस्फोरस के टीके भी एनस्ट्रस में दिए जाते हैं लिकिन ये पशु चिकित्सक द्वारा ही लगाए जाने चाहिए|

गर्भपात:बकरियों में गर्भपात वह वह अवस्था है जिससे कृत्रिम अथवा प्राकृतिक गर्भाधान के द्वारा गर्भ धारण किए पशु अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को सामान्य गर्भावस्था पूरी होने के लगभग 20 दिन पहले तक की अवधि में किसी भी समय गर्भाशय से बाहर फेंक देता है| यह बच्चा या तो मर हुआ होता है या फिर वह 24 घण्टों से कम समय तक ही जीता है| प्रारम्भिक अवस्था में (1 -2 माह की अवधि तक)होने वाले गर्भपात का बकरिपालकों को कई बार पता ही नहीं चलता तथा बकरियों जब पुन: गर्मी में आती है तो वे उसे खाली समय बैठते है| डो या तीन माह के बाद गर्भपात होने पर पशु पालकों को इसका पता लग जाता है|

गर्भपात के कारण:

बकरियों  में गर्भपात होने के अनेक कारण हो सकते हैं जिन्हें दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं|
()संक्रामक कारण:
इनमें जीवाणुओं के प्रवेश द्वारा पैदा होने वाली बीमारियां ट्रायकोमोनिएसिस,विब्रियोसिस, ब्रूसेल्लोसिस, साल्मोनेल्लोसिस, लेप्टोस्पाइरोसिस, फफूंदी तथा अनेक वाइरल बीमारियां शामिल है|

उपचार रोकथाम:

यदि बकरियों  में गर्भपात के लक्षण शुरू हो गए हो तो उस में इसे रोक पाना कठिन होता है| अत: बकरीपालको को उन कारणों से दूर रहना चाहिए जिनसे गर्भपात होने की सम्भावना होती है| गर्भपात की रोक थम के लिए हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए|
1. बकरियों सदैव साफ सुथरी रखन चाहिए तथा उसमें बीच-बीच में कीटाणु नाशक दवा का छिड़काव करना चाहिए|
2. गाभिन बकरियों की देखभाल का पूरा ध्यान रखना चाहिए तथा उसे चिकने फर्श पर नहीं बांधना चाहिए|
3. गाभिन बकरियों की खुराक का पूरा ध्यान रखना चाहिए तथा उसे सन्तुलित आहार देना चाहिए|

4. गर्भपात की सम्भावना होने पर शीघ्र पशु चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए|
5. यदि किसी बकरी  में गर्भ पात हो गया हो तो उसकी सुचना नजदीकी पशु चिकित्सालय में देनी चाहिए ताकि इसके कारण का सही पता चल सके| गिरे हुए बच्चे तथा जेर को गड्ढे में दबा देना चाहिए 

रिपीट ब्रिडिंग (पशु का बार-बार गर्मीं में आना)

प्रजनन का यह विकार बकरीपालको के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे बकरीपालको को पशु के गर्भ धारण ण कर पाने के कारण बहुत नुक्सान उठाना पड़ता है| इसमें बकरी दो या दो से अधिक बार गर्भाधान करने के बावजूद गर्भधारण नहीं कर पाता तथा अपने नियमित मदचक्र में बना रहता है| सामान्य परीक्षण के दौरान वह लगभग नि:रोग लगता है
रिपीट ब्रिडिंग के अनेक कारण हो सकते हैं जिनमें से निम्नलिखित कारण प्रमुख है:-
(क) पश की प्रजनन नली में वंशानुगत, जन्म से अथवा जन्म के बाद होने वाले विकार:-
(ख) शुक्राणुओं, अंडाणु तथा प्रारम्भिक भूर्ण में वंशानुगत, जन्म जात तथा जन्म के बाद होने वाले विकार:-
 (ग)पशुप्रबंधमेंकमियाँ
(घ)अंत:स्रावीविका
(ड.)प्रजनन अंगों के संक्रामक रोग अथवा उनकी सूजन

उपचार निवारण:-
1. रिपीट ब्रीडर पशु का परीक्षण व उपचार पशु चिकित्सक से करना चाहिए से करना चाहिए ताकि इसके कारण का सही पता लग सके| ऐसे पशु को कई बार परीक्षण के लिये बुलाना पड़ सकता है |
2. डिम्ब वाहनियों में अवरोध जोकि रिपीटब्रीडिंग का एक मुख्य कारण है का पता एक विशेष तकनीक जिसे मोडिफाइड पी एस पी टेस्ट कहते हैं, द्वारा लगाया जा सकता हैं| अत: स्रावी विकार के लिए कुछ विशेष हारमोन्स जी.एं.आर.एच.अथवा एल.एच.आदि लगाए जाते हैं|
3. मद काल में पशु के गर्भाशय से म्यूकस एकत्रित कर सी.एस.ति. परीक्षण के लिए भेजा जा सकता है जिससे गर्भाशय के अंदर रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं का पता लग जाता हैं तथा उन पर असर करने वाली दवा भी ज्ञान हो जाता है| इस प्रकार उस दवा के प्र्यिग से गर्भाशय के संक्रमण को नियन्त्रित किया जा सकता है|
4. पशु के मद काल का विशेष ध्यान रखना चाहिए इसके किए उसे पशु में मद के लक्षणों का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है| ताकि वह पशु का मद की सही अवस्था (द्वितीय अर्ध भाग) में गर्भाधान करा सके|
5. बकरीपालको को बकरी के सही मद अवस्था में न होने की दिशा में उसका जबरदस्ती गर्भाधान नहीं करना चाहिए
6. पशु पालक को पशु की खुराक पर विशेष ध्यान देना चाहिए| कुपोषण के शिकार पशु की प्रजनन क्षमता कम हो जाती है| पशु में खनिज मिश्रण व विटामिन्स ई आदि की कमी से प्रजनन विकार उत्पन्न हो जाते हैं|
7. देर से अंडा छोड़ने वाले पशु (delayed ovulator) में 24 घंटे के अंतराल पर 2-3 बार गर्भाधान कराने से अच्छे परीक्षण मिलते है|