पशुधन, सिंचाई एवं कृषि उद्यम तकनीकों के समन्वय से खेती को लाभ को धंधा बनाये 

Pashu Sandesh, 2 Feb 2021

डॉ रमेश श्रीवास्तव, डा. एम. के. भार्गव

कृषि को लाभ का धंधा बनाकर किसानों की जिंदगी बदलने और आत्मनिर्भर भारत निर्माण की दिशा में भारत सरकार निरंतर सक्रिय है। किसानों को राहत, सहयोग और प्रोत्साहन दिया जा रहा है। समृद्ध और किसान सदैव खुशहाल रहे इसके लिए भारत सरकार एवं राज्यों की सरकारें भी पूर्णरूपेण किसानों का सहयोग कर रही है। कृषि को लाभ का व्यवसाय बनाने के लिए किसानों को तकनीकी मार्गदर्शन दिया जा रहा है। साथ ही कृषि के आधुनिक उपकरणों से खेती करने को किसानों को प्रेरित कर उन्नत बीजो तथा खाद उर्वरक की उपलब्धता किसानों को किया जा रहा हैं।

खेती में सही मात्रा में खाद, उर्वरक के लिए मृदा परीक्षण, कीटनाशकों को सही प्रयोग, कृषि यंत्रों की खरीदी के लिए अनुदान, रियायती दरों में कृषि ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है साथ ही किसानों के लिए सिंचाई की आधुनिक तकनीकी का प्रयोग किया जा रहा है तथा सिंचाई की उपलब्धता से किसानों को जोड़ा जा रहा है। अकेले म.प्र. मंे वर्ष 2004 मं जहां सिंचित रकवा 7.5 लाख हेक्टेयर था, वहां 2020 में बढ़कर 42 लाख हेक्टेयर हो गया है, म.प्र. में यही स्थिति रही तो 2025 तक ये 60-65 लाख हेक्टेयर सिंचित रकवा हो जायेगा। यही कारण है कि म.प्र. गेहूं उत्पादन में संपूर्ण भारत में पिछले पांच वर्ष से प्रथम स्थान पर आ रहा है तथा कृषि कमर्ण पुरूस्कार भी प्राप्त कर पा रहा है।

भारत सरकार भी वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए सिंचाई सुविधाएं संपूर्ण देश में बढ़ रही है। लेकिन खेती में आये दिन मौसम के प्रभाव के कारण कभी ओला, सूखा या फिर टिड्डी/कीटों आदि की वजह से किसान को पूरी फसल का उत्पादन नहीं मिल पाता है, साथ ही फसल की कीमत भी लागत के अनुपात में नहीं मिल पाती है जिससे उसे खेती में लाभ नहीं हो पाता है। अब चूंकि हर गांव में सिंचाई सुविधाएं खेती में बढ़ गई हैं, तो किसान उन्नत नस्ल का चारा जैसे बरसीम, लूसर्न एवं वर्षपर्यंत हरा चारा एवं अन्य आधुनिक चारा उत्पादन कर सकता है और यदि किसान उन्नत नस्ल के दुधारू पशु रखे तथा उन्हें हरा चारा खिलाये तो दुग्ध उत्पादन बढ़ सकता है, वैसे भी इस दिशा में भारत सरकार, प्रदेश सरकारें कार्य कर रही है, उन्नत नस्ल के पशु को पालने हेतु किसानों को प्रेरित किया जा रहा है। देशी गाय, गिर, साहीवाल, लाल सिन्धी, हरियाणवी एवं अन्य अधिक दूध देने वाली गायों को पालने हेतु किसानों को प्रेरित किया जा रहा है। साथ ही इनके सांडो के वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान का कार्यक्रम चलाया जा रहा है, उन्नत नस्ल के सांडो को ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदाय  कया जा रहा है। इसी तरह भैंसों जैसे मुर्रा, भदावरी के वीर्य का संकलन कर उन्हें देशी नस्ल की भैंसांे से कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से गर्भधारण कराया जा रहा है, कुछ गांवों में मुर्रा एवं भदावरी पाडे (सांड) प्रदाय किये जा रहे हैं जिससे देश्ी भैंसों को क्रास कराकर उनसे उन्नत नस्ल की भैंसे प्राप्त की जा रही हैं तथा दूध का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है। मुर्रा भैंस के दूध से लगभग 6 से 8 प्रतिशत वसा होता है, जबकि भदावरी भैंसों के दूध में 10 से 13 प्रतिशत तक वसा होता है जो कि दूध पीने के साथ घी एवं मक्खन बनाने में काफी उपयोगी होता है।

देश में दुग्ध उत्पादन को सन् 2020-21 तक दुगुना करने हेतु भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय डेयरी विकास योजना-1 की शुरूआत की गई है। ग्रामीणों को डेयरी उद्योगों का लाभकारी एवं दीर्घकालिक व्यवसाय बनाने के लिए यह अति आवश्यक है कि पशुपालन को दुग्ध एवं दूध से बनने वाली अन्य सामग्री जैसे कि घी, मक्खन, पनीर का मूल्य उनकी लागत से अधिक मिले।ं पशुओं में नस्ल सुधार कार्यक्रम चलाकर उन्नत नस्ल के पशु गाय, भैंस को प्राप्त कर ज्यादा से ज्यादा दूध का उत्पादन लेने हेतु किसानों को प्रेरित करें। साथ ही पशु प्रजनन में पोषण एवं पशु स्वास्थ्य के क्षेत्र में सकेन्द्रित प्रयास की आवश्यकता है, ताकि उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ उनके मूल्य में भी बढ़ोतरी की जा सके।

पशुओं में पशु प्रजनन के माध्यम से चयनात्मक प्रजनन (सेलेक्टिव ब्रीडिंग) कराना चाहिए। आधुनिक तकनीकी जैसे रोगमुक्त उच्च आनुवांशिक गुणवत्ता वाले सांड के वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान बढ़ाने की आवश्यकता है। साथ ही संतुलित आहार के द्वारा दुग्ध उत्पादन की कीमत या लागत को कम करने हेतु पशु के आहार को भी सुधारने की आवश्यकता है, साथ ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तो पशुओं में होने वाले रोगों की रोकथाम करना है जो पशु की पूर्ण उत्पादन क्षमता बढ़ाने हेतु अति आवश्यक है। 

खेती की जब बात होती है तब मात्र फसल उगाना ही खेती नहीं है। खेती में वह सब समाहित है जो ग्रामीणजनों को स्थानीय स्तर पर रोजगार/स्वरोजगार मूलक सेवाएं भी प्रदाय कर सकें। यदि कहा जाये तो अतिशोक्ति नहीं होगी की खेती का विकास पशुधन के बीच ही जुड़ा है जो मृदा उर्वरता के लिये गोबर से खाद निर्माण जैसी सेवा देता है तो दूसरी ओर स्वास्थ्य के लिये महत्वपूर्ण दूध तथा दूध उत्पादों की भी उपलब्धता सृजन करता है। आवश्यकता इस बात की है खेती में विशेषकर सीमांत छोटे किसान बंधु समन्वित कृषि प्रणाली माॅडल जिसमें फसलों की विविधता, जलवायु एवं संसाधन अनुकूल कृषि आदान-तकनीकियों का संयोजन  प्रक्षेत्र उत्पादों का आपस में ताल-मेल ऐसा बनाये जहां खेती की लागत में कमी आये तो दूसरी ओर अपने से सृजनता, निरतंरता, फायदें का सौदा बनता जाये और ग्रामीण पलायन रोकनें के लिये स्थानीय स्तर पर स्वरोजगार-रोजगार उद्यमों में भी समन्वय बढाये। यहां यह बात मत्वपूर्ण बात आती है। स्वयं को नवीन तकनीकियों, योजनाओं, जागरूकता तथा मेहनतकश धैर्य के साथ खेती को लाभ का धंधा ही नहीं नई पीढियों के लिये प्ररेणा व संरक्षण की सौगात भी बना सकते है। 

 

डॉ रमेश श्रीवास्तव 

पूर्व संयुक्त संचालक, पशुपालन विभाग, म.प्र. शासन

एवं

डा. एम. के. भार्गव 

वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, कृषि विज्ञान केन्द्र, शिवपुरी