एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता (रेसिसटेंस) एक जटिल समस्या

पशु संदेश, 04 December 2109

डॉ राखी गांगिल, डॉ दीपक गांगिल, डॉ. दलजीत छाबड़ा, डॉ. रवि सिकरोडिया

रोगानुरोधी दवाएँ (ऐंटीमाइक्रोबियल्स) मनुष्य एवं पशुओं में जीवाणु, कवक, माइकोप्लाज़्मा द्वारा हुए संक्रमण के उपचार में विशेष महत्त्व रखती हैं । यह विज्ञान की महत्त्वपूर्ण खोजों में से एक है। पिछले कुछ दशकों में रोगाणुरोधी प्रतिरोधकता (ऐंटीमायक्रोबियल रेसिसटेंस) वैश्विक एवं राष्ट्रीय स्तर पर एक गम्भीर चिंता का विषय है । मुख्य गम्भीर संक्रमण के रोगाणुओं में रोगनुरोधी प्रतिरोधकता उत्पन्न होना सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए परेशानी का विषय है क्यों कि इसके कारण रोगाणुओं पर दवाएँ बेअसर हो रही हैं।

अब हम जानते है कि ऐंटीमायक्रोबियल रेसिसटेंस (ए॰ एम॰ आर॰) क्या है :

ऐंटीमाइक्रोबियल्स रेसिसटेंस (ए॰ एम॰ आर॰) – ग्लोबल ऐंटीबायोटिक रिसर्च एंड डेवलेपमेंट के अनुसार रोगाणुरोधी प्रतिरोध तब होता है जब सूक्षमजीव - जैसे जीवाणु, वाइरस, फ़ंगस, अन्य परजीवी अनुवांशिक परिवर्तनों के कारण उन दवाओं से प्रतिरोधी हो जाते हैं जिनसे वे पहले प्रभावी होते थे । वैसे तो यह एक क्रमिक विकासवादी परिवर्तन है परन्तु यह प्रक्रिया किन्ही कारणों से त्वरित हो जाती है जैसे मानव, पशु, कृषि क्षेत्र में दवाओं का अतिप्रयोग या दुर्पयोग तथा संक्रमण नियंत्रण में कमी ।
पशु उत्पादन क्षेत्र में ऐंटीमाइक्रोबियल्स का उपयोग रोगों के इलाज या रोकथाम के लिए तो होता ही है साथ ही साथ शारीरिक वृद्धि के लिए भी इसका बड़ी मात्रा में उपयोग किया जाता है । जिससे सहभोजी एवं रोगजनक दोनो प्रकार के सूक्ष्मजीवों पर ऐंटीमाइक्रोबियल्स का प्रभाव पड़ता है। इसलिए ये पशु रोगाणुरोधी प्रतिरोध जीन के एक पूल के रूप में कार्य कर सकते हैं जो कि खाद्य शृंखला, पशु सम्पर्क और पर्यावरण के माध्यम से मनुष्यों में प्रेषित हो सकता है ।

एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण एवं प्रबंधन के उपाय

एंटीबायोटिक प्रतिरोध नया नहीं है एलेगजेंडर फ़्लेमिंग ने लगभग 70 साल पहले 1945 में एंटीबायोटिक की खोज के लिए नोबल पुरष्कार लेते वक़्त इस समस्या के लिए चेतावनी भी दी थी एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कई कारणों से हो सकते हैं जैसे -

कुछ रोगजन्य रोगाणुओं की मेटाबोलिक दर एंटीबीयोटिक की उपस्थिति में भी उन्हें जीवित रखती हैं एवं कुछ रोगोणुओं में जैवफिल्म्स (बीयोफ़िल्मस) बनाने की प्रवृति होती है जैसे स्टैफ़ाइलोकोकस, स्ट्रेप्टोकोकस, स्यूडोमोनास आदि । ऐसी स्तिथी में कोशिकभित्ति की मोटाई अक्सर बढ़ जाती है जिससे एंटीबायोटिक को कोशिका में जाने में मुश्किल होती है और दवाएँ बेअसर हो जाती हैं ।
एंटीबीयोटिक का अनुचित उपयोग भी प्रतिरोध बढने का एक कारण है खाद्य उत्पादक जानवरों में अनावश्यक रूप से एंटीबायोटिक का प्रयोग करने से मनुष्य भी परोक्ष रूप से प्रभावित होते हैं और उनमें भी एंटीबायोटिक प्रतिरोध उत्पन्न हो जाता है । मुर्ग़ी पालन एवं ब्रोयलर में शारीरिक वृद्धि के लिए एंटीबायोटिक का उपयोग किया जाता है जो की मनुष्यों में प्रतिरोधकता उत्पन्न करता है ।
बीमार पशु के इलाज के लिए एंटीबायोटिक दी जा रही है तो उस पशु का दूध एंटीबायोटिक देने के 72 घंटे तक नहीं इस्तेमाल नहीं करना चाहिए वरना अनचाहे रूप से मनुष्य के शरीर में एंटीबायोटिक चले जाते हैं जो प्रतिरोधकता उत्पन्न करते हैं ।
बिना ज़रूरत के एंटीबायोटिक का उपयोग करने से भी बैक्टीरिया पर जैविक दबाव पड़ता है जो की एंटीबायोटिक प्रतिरोध को बढ़ावा देता है । ज़रूरत होने पर ही एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करना चाहिए।
वाइरल संक्रमण एवं स्वयं सीमित संक्रमणो में भी एंटीबायोटिक दवाइयों का प्रयोग किया जाता है जो कि नहीं होना चाहिए ।
एंटीबायोटिक को सही खुराक, प्रशासन का सही मार्ग एवं सही अवधि के लिए दिया जाना चाहिए ।
एंटीबायोटिक सेन्सिटिविटी जाँच द्वारा एंटीबायोटिक चुनाव करके ही इलाज करना चाहिए ।
एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता को एंटीबायोटिक के संयोजन से भी कम किया जा सकता है । आने वाले समय में समस्या बहुत गम्भीर होने वाली है क्यों की नए एंटीबायोटिक का विकास बहुत धीमे हो रहा है और एंटीबायोटिक का कोई और विकल्प अभी तक प्रमाड़ित नहीं हुआ है ।

एंटीबायोटिक प्रतिरोधक ट्यूबरकुलोसिस (टी॰ बी॰)

ट्यूबरकुलोसिस टी॰ बी॰ के उन्मूलन के लिए पूरे देश में सरकार द्वारा कार्यक्रम चलाया जा रहा है । परंतु एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण टी॰ बी॰ के नियंत्रण में सफलता एक बहुत बड़ी चुनौती है । टी॰ बी॰ का इलाज तो है इसके इलाज के लिए बहुत कम दवाएँ हैं और फिर उनमें भी प्रतिरोधकता आ जाएगी तो बहुत गम्भीर समस्या उत्पन्न हो जाएगी । हर साल लगभग टी॰ बी॰ के ६ लाख नए रोगी टी॰ बी॰ की सबसे प्रभावकरी दवा रिफ़ेमपिसिन से प्रतिरोधक हो जाते हैं । विशेसज्ञों के अनुसार टी॰ बी॰ की दवाएँ उचित सयोंजन एवं सही मात्रा में पर्याप्त समय तक रोगी को नहीं दी जाती हैं तो टी॰ बी॰ के जीवाणुओं में आनुवांशिक परिवर्तन हो जाते हैं और वह उन दवाओं के लिए प्रतिरोधी हो जाता है । इसीलिए टी॰ बी॰ का इलाज 3-4 दवाओं के सयोंजन से किया जाना चाहिए ।

एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता के विषय को गम्भीरता से लेना चाहिए और एंटीबायोटिक का उपयोग कम से कम और उचित रूप से करना चाहिए अन्यथा किसी अन्य बीमारी जैसे कैन्सर का उपचार, कोई बड़ी सर्जरी का प्रबंधन या सरल घाव को भी ठीक होना मुश्किल हो जाएगा यदि एंटीबायोटिक का इस्तेमाल सही तरीक़े से नहीं किया गया।

डॉ राखी गांगिल, डॉ दीपक गांगिल, डॉ. दलजीत छाबड़ा, डॉ. रवि सिकरोडिया
पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशु पालन महाविद्यालय महू