डाउनर काऊ सिंड्रोम: एक उपापचय बीमारी

Pashu Sandesh, 14th May 2020

डाॅ. राजेश कुमार

यह एक उपापचय से सम्बंधित बीमारी है जिसमे पशु ब्याने के  २ से ३ दिन बाद एक तरफ करवट लेकर लेट जाता है एवं खड़ा होने मे असमर्थ हो जाता है। यह मुख्य रूप से अधिक दूध देने वाले पशुओं मे पाई जाने वाली बीमारी है जो होलीस्टीन किस्म की गायों मे अधिक पाई जाती है। इस बीमारी में पशु सचेत अवस्था मे रहता है परन्तु खड़ा नहीं हो पता है। इस बीमारी का वास्तविक कारण तो ज्ञात नहीं है परन्तु यह प्रसवोत्तर आंशिक घात अर्थात मिल्क फीवर के जटिलता के फलस्वरूप होती है. यह माना जाता है की यह बीमारी मुख्यतया पशु के ब्याने के बाद उसके शरीर मे प्रोटीन, फॉस्फोरस एवं पोटैशियम की कमी के कारण होती है। इस बीमरी मंे पशु कैल्शियम के दो लगातार इंजेक्शन लगाने के बाद भी खड़ा नहीं हो पता है। समय पर सही उपचार एवं देखभाल नहीं होने के कारण पशु के तंत्रिका एवं माशपेशियों पर बहुत अधिक दबाब पड़ने के कारण वह लम्बे समय तक इसी अवस्था मे पड़ा रह सकता है जिसके कारण पेरोनिअल एवं टिबियल नर्व बुरी तरह से प्रभावित होने की वजह से पशु बाद मे सहारा देने के बाद खड़ा नहीं हो पाता है। काम समय मे ही अधिक मात्रा मे कैल्शियम की खुराक दिए जाने के कारण शरीर मे कैल्शियम की विषाक्तता होने लगती है जिससे हृदय की गतिविधि बढ़ जाती है एवं इसकी मासपेशियो मे सूजन आ जाती है।   

नैदानिक लक्षण

1 पशु मिल्क फीवर के लगातार उपचार किये जाने के बाद भी स्वयं खड़ा नहीं हो पाता है केवल सहारा देकर ही पशु को खड़ा किया जा सकता है परन्तु सहारा हटाने के तुरंत बाद पशु फिर से नीचे गिर जाता है।

2 पशु की भूख एवं प्यास बहुत कम हो जाती है।

3 हालांकि पशु का श्वांश लेने, उघालने, गोबर एवं मूत्र करने की क्रियाए सामान्य ही रहती है।

4 पिछले पैर सीधे ही रहते है हालांकि पशु इनसे बार बार खड़ा होने का प्रयास करता रहता है।

5 सामान्यतया इस बीमारी की अवधि ऐक से दो सप्ताह की होती है परन्तु यह पशु की तंत्रिका एवं माशपेशियों को हुए नुकसान एवं पशु की देखभाल तथा प्रबंधन पर निर्भर करती है। इस अवधि मे किसी प्रकार का संक्रमण होने पर यह अवधि बढ़ भी सकती है।

6 जो पशु सचेतन अवस्था मे नहीं रह पाते है वो कोमा अथवा बेहोशी की स्थिति मे भी जा सकते हैं।

7 जो पशु एक सप्ताह से अधिक समय तक खड़े नै हो पाते एवं आडी अवस्था मे ही पड़े रहते हैं वो फेफड़ों, गुर्दों एवं हृदय के सही प्रकार से कार्य नहीं कर पाने के कारण अंत मे मर जाते है।

8 अतः कहा जा सकता है की जो पशु मिल्क फीवर के उपचार के उपरान्त भी किसी प्रकार का सुधार प्रदर्शित नहीं करते हैं उन्हें डाउनर काऊ सिंड्रोम की बीमारी से ग्रसित माना जाना चाहिए ना की मैग्नेसियम की कमी अथवा मेरुदण्ड की चोट से।

रक्त जांच 

पशु के सीरम मे कैल्शियम का स्तर सामान्य रहता है परन्तु यह कम भी हो सकता है। रक्त मे मैग्नेसियम एवं फॉस्फोरस की मात्रा निश्चित ही कम हो जाती है। पोटैशियम की कमी भी रक्त मे पाई जा सकती है।

पशु के ब्याने एवं उपचार की स्थिति 

1 क्या पशु को ब्याने मे किसी प्रकार की कोई कठिनाई हुई ?

2 क्या पशु ब्याने के बाद सामान्य रूप से खड़ा हो पाया अथवा नहीं। यदि नहीं तो पशु कितने समय तक जमीन पर आडा लेटा रहा ?

3 क्या पशु को सख्त जमीन पर रखा गया अथवा मिटटी, चारे या भूसे पर बिठाया गया?

4 क्या पशु का मिल्क फीवर हेतु सही समय पर एवं सही प्रकार से उपचार किया गया ?

पशु के लम्बे समय तक जमीन पर आडा पड़े रहने की स्थिति मे निम्न अवस्थाओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए 

1 पशु को कोई मांशपेशी अथवा तंत्रिका सम्बंधित चोट तो नहीं लगी है। इस स्थिति मे विटामिन ठ1 से उपचार करना चाहिए एवं उसके कूल्हे की हड्डी को दबाकर एवं पैरो को हिलाकर किसी प्रकार के फ्रैक्चर की सम्भावना को जांचना  चाहिए।

2 पशु के कूल्हे के जोड़ के अपनी जगह से खिसक जाने को भी जांचना चाहिए।

3 संक्रमण की वजह से हुए थैनेला रोग की भी जांच करनी चाहिए ।

उपचार एवं प्रबंधन

1 मिल्क फीवर की स्थिति मे सही एवं शीघ्र उपचार किया जाना चाहिए।

2 पशु कोएक स्थान पर पड़े नहीं रहने देने चाहिए बल्कि उसको इधर उधर हिलाते रहना चाहिए तथा सामने के पैरों पर खड़ा करने का प्रयास करना चाहिए।

3 पशु को उठाने के लिए नरम रस्सियों अथवा निवार का उपयोग करना चाहिए एवं एक बार मे 15 से 20 मिनट तक खड़ा रखें चाहिए।

4 यदि पशु किसी भी प्रकार से खड़ा नहीं हो पा् रहा हो तो उसके लिए नरम बिस्तर का प्रबंध करना चाहिए जो की घास, चारे अथवा भूसे का बना हो सकता है। पशु के गोबर एवं मूत्र को समय समय पर साफ करते रहना चाहिए।

5 पशु का दूध समयानुसार दुहना चाहिए एवं थनो को साफ सुथार रखना चाहिए।

6 कैल्शियम, मेगनेसियम एवं फॉस्फोरस थेरेपी का प्रयोग पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार करना चाहिए।

7 विटामिन एवं प्रतिजैविक दवाओं का प्रयोग भी पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार करना चाहिए।

8 पशु के पैरो की मालिश भी लाभदायक होती है।

डाॅ. राजेश कुमार

स्नातकोतर पशु चिकित्सा षिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान

पी.जी.आई.वी..आर., जयपुर