प्राकृतिक आपदा व पशु प्रबंधन

Pashu Sandesh, 11 April 2020

मोनिका करनाणी, मंजू, रश्मि सिंह, राजेश कुमार

संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार "एक प्राकृतिक आपदा एक ऐसी घटना है जो समय पर केंद्रित है और यह एक समाज को गंभीर खतरे और मानव जीवन की ऐसी गंभीर क्षति या प्रमुख भौतिक क्षति है जो स्थानीय सामाजिक संरचना और समाज को तोड़ने की ओर ले जाती है।" भारत दक्षिण एशियाई क्षेत्र में आपदा से सबसे अधिक प्रभावित देश है। सूखे, बाढ़, भूकंप और चक्रवात से देश बुरी तरह प्रभावित होता है और सबसे ज्यादा प्रभावित भारत के गरीब तबके के लोग हैं। दुर्भाग्य से गरीबी उन क्षेत्रों में सबसे अधिक व्यापक है जो प्राकृतिक आपदाओं के लिए अधिक संवेदनशील हैं - उत्तर बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्तर बंगाल और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र आदि के बाढ़-ग्रस्त क्षेत्र, छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसान कुल पशुधन का 70% के मालिक हैं जो भारत में कुल दूध उत्पादन का 62% उत्पादन करता है। प्राकृतिक आपदाओं के दौरान ये सबसे अधिक प्रभावित होती हैं। प्राकृतिक आपदाओं से खाद्य सामग्री  की कमी होती है और परिवहन संबंधी कठिनाइयों के कारण स्थिति और  खराब हो जाती है।

सूखा- सूखा एक ऐसी स्थिति है जहाँ पर्याप्त समय तक वर्षा की कमी होती है। नदियों, जलधाराओं और भूमिगत जल में औसत से कम जल होता है। सूखे के कारण चारे की कमी होती है और पशु तनाव में रह सकते हैं इसलिए उनकी उत्पादकता कम हो सकती है।

सूखे के दौरान प्रबंधन-

प्रारंभिक चेतावनियों से सूखा शमन रणनीतियों के लिए बेहतर तैयारी में मदद मिलती है। प्रारंभिक योजनाओं में जरूरत के समय में अपनी सेवाओं का विस्तार करने के लिए पशु स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों, जल संसाधनों और आपदा सहायता को शामिल करना चाहिए। नलकूपों की मरम्मत, टैंकों की सफाई, टैंकों या बड़े तालाबों में वर्षा जल संचयन की तैयारी के माध्यम से पानी की कमी के समय में अतिरिक्त पानी की आपूर्ति का प्रावधान करना चाहिए । पारंपरिक खाद्य और चारा संसाधनों का उपयोग करना चाहिए और मवेशियों के ऊर्जा की आपूर्ति के लिए  गुड़ का प्रयोग करना चाहिए। सूखा चारा भंडार, यूरिया गुड़ की चाट, चारा यूरिया से बनी ईंटें और गुड़ इत्यादि के प्रयोग से पशुओ के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति की जा सकती है। बीज भंडार का उपयोग करके और वैकल्पिक सूखा प्रतिरोधी चारा फसलों को लगाकर चारे की कमी की पूर्ति की जा सकती है।

भूकंप - भूकंप से इमारतों, पुलों, बांधों, सड़कों और रेलवे को नुकसान हो सकता है। खाद्य और चारे की कमी के साथ, पर्याप्त दूषित जल निकासी नहीं होने से मनुष्यों एवं पशुओं में संक्रमण का खतरा हो सकता है। चूंकि भारतीय परिदृश्य में जानवरों को ज्यादातर घर से बाहर बांधकर रखा जाता है या उन्हें शेड में रखा जाता है, जहां शारीरिक चोट लगने की संभावना कम होती है। लेकिन जब जानवरों को बांध दिया जाता है तो उनके बचने की संभावना कम हो जाती है।

भूकंप के दौरान प्रबंधन-

आश्रय के लिए सबसे सुरक्षित जगह की पहचान करें ताकि जानवर बिना किसी सहायता के 2-3 दिनों तक जीवित रह सकें। टेटनस के खिलाफ या अन्य संक्रामक बीमारियों से बचने के लिए जानवरों का टीकाकरण करें। सभी कृषि उपकरण और अन्य वस्तुएं जो भारी होती हैं, उन्हें दीवार से दूर रखा जाना चाहिए क्योंकि उनके गिरने से चोट लगने की संभावना होती है।

बाढ़ - बाढ़ सबसे आम प्राकृतिक आपदाओं में से एक है जो संपत्ति, पशुधन, फसलों और मानव जीवन को व्यापक नुकसान पहुंचाती है। लेकिन जानवर प्राकृतिक तैराक हैं; इसलिए अगर वे बंधे या बंद नहीं हैं तो डूबने से बच सकते हैं। बाढ़ की स्थिति में पर्यावरण, पेयजल और नदियाँ दूषित हो जाती हैं। टेटनस, पेचिश, हेपेटाइटिस और फूड पॉइजनिंग आदि संक्रामक रोगों के फैलने का डर इस समय अधिक होता है।

बाढ़ के दौरान प्रबंधन-

जानवरों को तेजी से उच्च भूमि पर ले जावे और उनके चोटों की जांच करें। सुनिश्चित करें कि जानवरों को सभी संक्रामक रोगों के लिए टीका लगाया जा चुका है। यदि आपदा का पूर्वानुमान पहले से हो तो जानवरों को सुरक्षित स्थानों पर लाया जाना चाहिए। बाढ़ वाले क्षेत्रों में जहां जल निकासी धीमी है, बतख पालन और मछली पालन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

आपदा के दौरान उपयोग की जाने वाली खाद्य तकनीके

किसी भी प्राकृतिक आपदा के समय सबसे अधिक चुनौती पशु को आवश्यकता के अनुसार भोजन उपलब्ध करवाना है। साथ ही इस समय भोजन के दूषित होने की संभावना भी अधिक होती है। अतः इस समय जो भी खाद्य पदार्थ उपलब्ध हो, खाद्य तकनिकी का उपयोग करते हुए उनसे अधिकतम लाभ लेने की कोशिश करनी चाहिए। निम्नलिखित खाद्य तकनीकियो का उपयोग करके पशु को आपदा के समय कुपोषण से बचाया जा सकता है व उसका उत्पादन गिरने से रोका जा सकता है।

भूसे का यूरिया उपचार

भूसे का यूरिया उपचार न केवल उसमे प्रोटीन की मात्र बढ़ा देते है बल्कि उसकी पाचकता को भी बढ़ा देते है । यूरिया उपचारित भूसा दूध की पैदावार 1-2 लीटर / पशु / दिन बढ़ाता है, किसानों को बेहतर आर्थिक लाभ प्रदान करता है और हरे चारे के उत्पादन के लिए आवश्यक भूमि क्षेत्र को कम करने में मदद कर सकता है। एक टन भूसे के प्रसंस्करण के लिए, 350-500 लीटर पानी में 40 किलो यूरिया को मिलाकर भूसे पर फैलाना चाहिए।

यूरिया मोलासेस  खनिज ब्लाक

भारत में सूखे की वजह से आमतौर पर उपलब्ध होने वाले पशु आहार में भारी मात्रा में रेशेदार फ़ीड मुख्य रूप से फसल अवशेष (भूसा) और सूखे घास शामिल हैं। इन फ़ीड्स में प्रोटीन और अन्य आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होती है। अत्यधिक लिग्निफिकेशन के कारण, फसल के अवशेषों की पाचाकता कम होती है। इन ब्लॉकों को आसानी से स्टोर किया जा सकता है, परिवहन किया जा सकता है और वितरित किया जा सकता है। यूरिया मोलासेस  खनिज ब्लाक बनाने में निम्नलिखित अवयवों का उपयोग किया जाता है : 38 भाग में गुड़, यूरिया 10 भाग, पोर्टलैंड सीमेंट 10 भाग, गेहूं की भूसी 40 भाग, नमक 1 हिस्सा, खनिज मिश्रण 1 भाग, प्रति 100 किग्रा। उपर्युक्त अवयवों को निम्नलिखित क्रम में मिश्रित किया जाता है: पानी, यूरिया, नमक, खनिज मिश्रण, सीमेंट, गुड़ और गेहूं का चोकर। इसे पूरी तरह से गीला करने के लिए सीमेंट के वजन के 1/3 की दर से पानी डाला गया था। मिश्रण को तब ब्लॉक बनाने के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए सांचों में स्थानांतरित किया जाता है। ब्लॉकों को 24 घंटे की अवधि के लिए सांचों में रखा जाता है व बाद में निकालकर सूखने के लिए रख दिया जाता है  व आवश्यकता के अनुसार पशु को खिलाया जाता है । यह पशु के शरीर में ऊर्जा, प्रोटीन व खनिज की पूर्ति करता है।

कम्पलीट फ़ीड ब्लॉक

फ़ीड लागत और श्रम लागत को कम करना और उत्पादन को अधिकतम करना समय की आवश्यकता है और इसे कम्पलीट फ़ीड ब्लॉक द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। यह प्रणाली किफायती और कुशल है क्योंकि इसमें  कम लागत वाली कृषि औद्योगिक उपोत्पाद और कम गुणवत्ता वाले फसल अवशेषों को भी उपयोग में लाया जाता है। ब्लॉक गेहूं के चोकर, चावल की भूसी, सरसों, मूंगफली के केक आदि से बनाये जा सकते है। गुड़, खनिज लवण और नमक भी इसमें मिलाया जा सकता है। यह कम जगह घेरते है, एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से लाये जा सकते है व पशु को सम्पूर्ण पोषण प्रदान करते है ।

साइलेज तकनीक

जब मानसून के समय हरा चारा अधिक होता है, तब उसे साइलेज के रूप संरक्षित करके रखा जा सकता है व इसका उपयोग आपदा के समय किया जा सकता है । इस प्रक्रिया में हरे चारे को छोटे टुकडो में काटकर इतना सुखाया जाता है कि उसमे नमी की मात्रा लगभग 65 % तक रह जाये। इस हरे चारे में यूरिया व मोलासस भी मिलाया जा सकता है जिससे इसके पोषकता बढ़ जाती है। इस चारे को लगभग 21 दिनों तक ढक कर रखा जाता है ताकि इसमें हवा व पानी न प्रवेश कर सके। खोलने के बाद आवश्यकता के अनुसार इसे पशु को खिलाया जा सकता है। साइलेज पोषक तत्वों से भरपूर होती है व जब भी पशु को खिलने के लिए हरा चारा उपलब्ध न हो तब यह अच्छा विकल्प है।

चारा और चारा बैंक का निर्माण

यह सूखे और बाढ़ के दौरान पशुधन की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय है। उपरोक्त आपात स्थितियों को पूरा करने के लिए निम्नलिखित प्रकार से फ़ीड और चारे को संग्रहीत किया जा सकता है।

मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त सामग्री से फ़ीड बैंक:  मानव उपभोग के लिए अनफिट हो जाने वाले फ़ीड अवयवों को पशुधन उपयोग के लिए लिया जा सकता है और एफ़्लैटॉक्सिन,  कीटनाशक और दवा के अवशेषों के परीक्षण के बाद इसे फ़ीड बैंकों में या दुकानों में संग्रहीत किया जाता है।

चारा बैंक: वन क्षेत्र, बंजर भूमि और खेत की परिधि से घास की कटाई की जा सकती है और उच्च घनत्व वाले ढेर में घास के रूप में संग्रहीत किया जा सकता है। प्रमुख अनाज जैसे चावल और गेहूं के तिनके, मोटे अनाज, फलियां, फसलों से अनाज निकालने के बाद छोड़े गए अवशेषों को इन बैंकों में संग्रहित किया जा सकता है व आवश्यकता अनुसार पशु पालक को दिया जा सकता है।

मोनिका करनाणी, मंजू, रश्मि सिंह, राजेश कुमार

पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ़ वेटरनरी एजुकेशन एंड रिसर्च, जयपुर