चारागाह प्रबंधन

Pashu Sandesh, 25 Apr।l 2020

डॉ राजेश कुमार एवं  डॉ मोनिका करनाणी

खुले मैदान जिनमे वर्षा के दौरान हरा चारा उगाया जाता है तथा जहाँ पर पशुओं को चराया जाता है, चारागाह कहलाते हैं।

चारागाह की विशेषताएं:

इसमें चारे को कम कीमत पर तैयार किया जाता है।

कम देखरेख की आवश्यकता 

इससे हरी खाद तैयार की जा सकती है।

चारागाह को पशुओं को दिए जाने वाले आहार के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

हरे चारे से पशुओं को विटामिन, खनिज लवण व प्रोटीन ज्यादा मिलती है जिससे पशुओं का उत्पादन बढ़ता है।

चारागाह के प्रकार :

अस्थाई चारागाह (Temporary Pastures):

इसमें ऋतु के अनुसार हरे चारे को उगाया जाता है। जिससे एक साल में कई बार भिन्न भिन्न प्रकार का चारा उगाया जा सकता है। 

Ex. खरीफ ऋतु में – ज्वार, बाजरा, मक्का

रबी ऋतु में – Berseem

स्थाई चारागाह (Permanent Pastures):

इसमें वे घास उगाई जाती है जो कई वर्ष तक चलती रहती है। Ex. Paragrass, Leucerne, Nap।er grass

वार्षिक चारागाह (Annual Pastures):

वे घास जो कि हर साल बारिश के मौसम में उगाई जाती है। 

चारागाह की प्रमुख एवं मुख्य फसलें :

बाजरा (Penn।setum glaucum): इसे खरीफ ऋतु की फसल कहते हैं। जिस जमीन में पानी की कमी होती है उसमे ज्यादा उगाई जाती है। इसे जून-जुलाई यानि बरसात के मौसम में उगाई जाती है। इसमें कार्बोहायड्रेट की उच्च मात्रा होने के कारण इसे साइलेज़ बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।

मक्का (Zea mays): यह भी खरीफ ऋतु की फसल है। तथा इसे भी जून, जुलाई बरसात के मौसम में ही बोया जाता है। इसमें भी कार्बोहायड्रेट की उच्च मात्रा होने के कारण इसे भी साइलेज़ बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।

ज्वार (Sorghum vulgare): यह भी खरीफ फसल है। तथा उच्च कार्बोहायड्रेट होने के कारण सबसे अच्छी किस्म की साइलेज़ बनायीं जाती है।

लोबिया (V।gna s।nens।s): यह लेग्युमिनिसी कुल की फसल है जिसमें प्रोटीन की उच्च मात्रा उपलब्ध होती है। इसे फरवरी और जुलाई साल में दो बार उगाया जा सकता है।

रिजका या ल्यूसर्न (Med।cago sat।va): इसे K।ng of Fodder कहा जाता है।

यह भी लेग्युमिनिसी कुल से है इसके कारण इसमें प्रोटीन की उच्च मात्रा पाई जाती है।

इसकी बुआई अक्टूबर माह के अंत में की जाती है।

यह एक वर्षीय और बहुवर्षीय दोनों में उपलब्ध है। 

पतले तने व उच्च प्रोटीन की फसल होने के कारण इसकी ‘हे’ बहुत अच्छी बनायीं जाती है।

बरसीम (Tr।fol।um alexandr।num): यह भी रबी ऋतु में उगाई जाने वाली फसल है इसे अक्टूबर माह के अंत या नवम्बर के प्रारंभिक सप्ताह में उगाया जाता है। इसका भी पतला तना व उच्च प्रोटीन होने के कारण ‘हे’ बनाने में इसका भी इस्तेमाल किया जाता है।

नेपियर घास (Penn।setum purpureum): इसे हाथी घास या युगांडा घास भी कहते हैं। इस घास को साधारणतया किसान द्वारा न उगाकर ज़्यादातर सरकारी उपक्रमों जैसे डेयरी फ़ार्म या संस्थानों में ही उगाया जाता है।

यह एक बहुवर्षीय फसल है। जहाँ सिंचाई का पानी उपलब्ध है वहां इसे फरवरी-मार्च में तथा जहाँ सिंचाई का पानी उपलब्ध ना हो उसे जून-जुलाई माह में उगाया जाता है।

Para grass (Brach।ar।a mut।ca):

यह भी एक बहुवर्षीय घास का उदाहरण है। यह तेजी से वृद्धि करने वाली घास है जिसे वर्षा ऋतु जून-जुलाई महीने में उगाई जाती है।

चारागाह के लाभ:

चारागाह के अच्छे प्रबंधन से पशु को वर्ष भर हरा चारा मिलता रहता है।

इसमें कम खर्च पर पशु को पोष्टिक एवं सुपाच्य आहार मिलता रहता है।

खुले चारागाह में पशु के चरने पर पशु का स्वास्थय ठीक रहता है, जिससे उसका उत्पादन बढ़ता है।

चारागाह की कमियां:

सिंचाई के लिए प्रयुक्त होने वाली जमीन की कमी हो जाती है।

पशुओं द्वारा खुले में चरने के कारण खाने से ज्यादा हरा चारा पशुओं के पैरों द्वारा खराब हो जाता हैं।

पशुओं द्वारा चारागाह में ही गोबर करने पर बरसात के मौसम में उस गोबर पर विभिन्न परजीवी का पनपना जो की पशुओं में दस्त होने का एक मुख्य कारण है।

चारागाह में सभी पशुओं के साथ चरने पर उनकी लार का घास पर गिरने से उससे एक पशु से दूसरे पशु में बीमारियाँ फेलने की सम्भावना ज्यादा होती है।

 

डॉ राजेश कुमार एवं  डॉ मोनिका करनाणी

स्नातकोत्तर पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसन्धान संस्थान

(पी.जी.आई.वी.ई.आर.) जयपुर

 

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