दुधारू पशुओं का प्रसव एवं प्रसवोपरांत प्रबंधन

Pashu Sandesh, 20th June 2020

अवनीश कुमार सिंह, शशिकांत गुप्ता

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के साथ-साथ पशुपालन का भी विशेष योगदान है। भारत सरकार की 20 वीं पशुधन गणना के अनुसार हमारे देश में दूध उत्पादन करने वाली गायों एवं भेसों की कुल संख्या लगभग 12.5 करोंड़ है, जिसमे पिछली पशुधन गणना के मुकाबले 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। परन्तु हमारी उत्पादकता पशुओं की संख्या के मुकाबले काफी कम है, इसके कई सारे कारण हैं जिसमे कि पशुपालकों को मादा दुधारू पशुओं का प्रसव एवं प्रसवोपरांत प्रबंधन की उचित जानकारी ना होना भी एक अहम कारण है। जानकारी की कमी व लापरवाही कठिन प्रसव को जन्म दे सकती है जिसके फलस्वरूप मादा पशु के साथ-साथ भ्रूण की भी मृत्यु हो सकती है। इस समस्या से समाधान पाने हेतु निम्नलिखित जानकारिया काभी लाभकारी सिद्ध होगी

दुधारू पशुओं में प्रसव तथा प्रबंधन

मादा पशु द्वारा बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया सामान्य गर्भकाल (गायों में 9 माह, 9 दिन एवं भेसों में 10 माह ,10 दिन) पूर्ण होने के बाद होती है। प्रसव के नजदीक आने पर पशुओं में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिलते हैं जैसे-
पशु के थनों में दूध का उतरना, सामान्यता यह प्रथम बार बच्चा देने वाली मादाओं में गर्भकाल के 4-5 माह से तथा 2 या 2 से अधिक बार बच्चे देने वाली मादाओं में प्रसव के लगभग 1 माह या 15 दिन पूर्व देखने को मिलता है।
पशु के पेट के आकार मे बदलाव
पशु का अन्य पशुओं से पृथक एवं बैचेन रहना
पशु का चारा-पानी कम कर देना
पशु के बाह्य जननांग (योनी) मे सूजन तथा ढीला पड़ जाना एवं तरल पदार्थ का स्राव होना
प्रसव के 24-48 घंटे पूर्व पशु के पुठे ढीले पड़ जाना
प्रसव को बेहतर तरीके से समझने के लिए इसे ३ अवस्थाओं में विभक्त किया जा सकता हैै
1) प्रथम अवस्था 2) द्वितीय अवस्था 3) तृतीय अवस्था
प्रथम अवस्था -
इसकी समय अवधि लगभग 2-6 घंटे की होती है।
पशु खाना- पानी छोड़कर एकांत स्थान पर दर्द से बैचेन होकर बार-बार उठता बैठता रहता है।
पशु की योनि एवं पुठे ढीले पड़ जाते है।
इस अवस्था मे बच्चेदानी मे संकुचन प्रारम्भ होता है।
इस अवस्था मे पशु की ह्रदय की गति बढ़ जाती है एवं शरीर का तापक्रम सामान्य से कम हो जाता है।
इस अवस्था में बच्चेदानी का मुख खुल जाता है तथा साफ जेरी का रिसाव शुरू हो जाता है।
द्वितीय अवस्था -
यह अवस्था पहली पानी की थैली (पतला द्रव्य) फटने के साथ प्रारम्भ होती है।
सामान्यता इसकी समय अवधि लगभग 0.5-3 घंटे की होती है, परन्तु प्रथम बार बच्चा देने वाले पशु मे यह अवधि कुछ लम्बी भी हो सकती है।
इस अवस्था के प्रारम्भ में बच्चे के पैरों के खुर योनि द्वार से दिखने लगते है।
मादा पशु काफी जोर लगाती है।
इस अवस्था मे द्वितीय पानी की थैली (गाढ़ा लिसलिसा द्रव्य) भी फट जाती हैं, जो कि योनि द्वार को चिकनाहट प्रदान करता है।
सामान्यता जब बच्चा योनि द्वार से निकलता है तो उसके दोनों आगे के पैर सीधे होते और उसका सिर घुटनों पर रहता है, पशु के जोर लगाने से बच्चे के दोनों आगे के पैर एवं सिर सबसे पहले बाहर आ जाता है और पशु कुछ समय के लिये जोर लगाना बंद कर देता है।
पशु फिर से जोर लगाना प्रारम्भ कर देता है और पूरा बच्चा मादा जननांग से बाहर आ जाता है साथ ही गर्भनाल भी टूट जाती है।
तृतीय अवस्था -
यह प्रसव के बाद मादा पशु से जेर निकलने की अवस्था होती है।
इसकी समय अवधि लगभग 6-12 घंटे की होती है। बच्चे के जन्म के लगभग 12 घंटे तक सामान्यता पशु जेर गिरा देता है।

प्रबंधन -

प्रसव की सही तिथि के लिए पशुपालक को पशु के कृत्रिम अथवा प्राकृतिक गर्भाधान की तारीख तथा पशु के सामान्य गर्भकाल के साथ ही उपरोक्त संकेतो की जानकारी होनी चाहिए।
प्रसव से पूर्व पशु को शांत, साफ सुथरी, नमी रहित तथा हवादार जगह पर रखना चाहिए जहाँ पर स्वच्छ पेय जल उपलब्ध हो सके।
यदि पशु 12 घंटे से ज्यादा बैचेन रहें और पानी की प्रथम थैली भी न फटे या प्रथम थैली फटने के बाद यदि पशु 1-2 घंटे से अधिक जोर लगाये फिर भी बच्चा बहार न निकले तो तत्काल पशुचिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए।
योनि द्वार से बच्चे को निकलते वक्त अनायाश बच्चे को ना खीचें अन्यथा कठिन प्रसव की सम्भावना और बढ़ जाती है, जिसके फलस्वरूप मादा पशु के साथ-साथ भ्रूण की भी मृत्यु हो सकती है।
यदि बच्चा निकलते वक्त पशु खड़ा हो तो बच्चे को सहारा दे जिससे वह सीधा जमीन पर गिर कर चोटिल ना हो जाए।
बच्चा होने के बाद बच्चे को पशु के पास रखना चाहिए तथा पशु के पिछले हिस्से व थनों को गुनगुने पानी से साफ करके किसी साफ कपड़े से पोछकर बच्चें को खीस (मादा पशु का पहला दुध) पिलाना चाहिए।
यदि पशु बच्चा होने के 12 घंटे तक जेर ना गिराए तो तत्काल ही पशुचिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए क्योंकि जेर अटकने से पशु की बच्चेदानी मे संक्रमण की संभवना प्रचंड हो जाती है।
पशु को जेर खाने नहीं देना चाहिए साथ ही जेर को गहरे गड्ढे मे दबा देना चाहिए।

प्रसवोपरांत मादा पशु का प्रबंधन

प्रसव के बाद मादा पशु की अच्छी तरीके से देखभाल एवं खानपान का विशेष ध्यान रखने से पशु की दूध उत्पादकता, प्रजनन क्षमता में वृद्धि के साथ पशु को बच्चेदानी के संक्रमण तथा अन्य कई बीमारियों से बचाया जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
पशु को शांत, साफ सुथरी, नमी रहित, हल्के गर्म, हवादार तथा गुलगुले जगह पर रखना चाहिए जहाँ पर स्वच्छ पेय जल एवं चारा उपलब्ध हो।
पशु को अपने बच्चे को चाटने तथा खीस पिलाने देना चाहिए।
पशु के पिछले हिस्सें व थनों को गुनगुने पानी से अच्छी तरह साफ करके किसी साफ कपड़े से पोछना चाहिए तथा बाह्य जननांगो को पछियो से खोदने से बचाना चाहिए।
यदि पशु के बाह्य जननांग पर कोई घाव हो तो उसकी नियमित सफाई करे तथा पशुचिकित्सक की सलाह से बताई गई दावा को लगाये।
प्रसव के तुरन्त बाद पशु को गुनगुना पानी, गुड़ तथा अनाज की दलिया देनी चाहिए।
पशु को गुणवत्तापरक हल्का चारा व 50 मिलीग्राम प्रतिदिन की दर से खनिज मिश्रण खिलाना चाहिए।
अधिक दुध देने वाले पशुओं को रोजाना 100 मिली० केल्शियम पिलाना चाहिए।

अवनीश कुमार सिंह, शशिकांत गुप्ता
मादा पशु प्रजनन रोग विभाग दुवासू, मथुरा