पशुओं में गर्भावस्था सम्बंधित उपयोगी जानकारियाँ

Pashu Sandesh, 12 March 2020

दीपिका डी. सीज़र, ज्योत्सना शक्करपुड़े, सुमन संत, मधु शिवहरे, शशि प्रधान, राजेश वांद्रे, सोमेश मेश्राम

प्रजनन सम्बन्धी अवस्था, एक मादा के गर्भाशय में भ्रूण के होने को गर्भावस्था (गर्भ + अवस्था) कहते हैं, तदुपरांत मादा बच्चे को जन्म देती है। आमतौर पर यह अवस्था गाय में ९ माह ९ दिन तक रहती है.  कभी कभी संयोग से एकाधिक गर्भावस्था भी अस्तित्व में आ जाती है जिस्से जुडवा एक से अधिक बछड़ों कि उपस्थिति होती है।

लक्षण
एक स्वस्थ गाय २१ दिनों में एक बार गर्मी में आती है। गर्भ ठहरने के बाद गाय का गर्मी में आना बंद हो जाता है।
एकांत हो जाती है एवं शांत वातावरण चाहिए होता है।
दुग्ध उत्पादन कम होने लगता है।
गर्भावस्था काल भिन्न भिन्न प्रजातियों में गर्भावस्था काल भिन्न होता है जैसे गाय का २८० दिन और भैंस का ३२० दिन।

गर्भावस्था का प्रबंधन
इस काल के अंतिम चरण में पशु को ज्यादा दाना देना चाहिए. गाभन पशु को घर के आस पास ही निगरानी रखना चाहिए एवं दिन में दो और अधिक बार ब्याने के लक्षणों को देखना चाहिए। इस समय पशु को साफ़ सुथरे एवं हवादार जगह पर रेत और गिट्टी पर बिछौना तैयार करके रखना चाहिए। गाभन पशु को पूरे समय बांधकर या कम जगह पर नहीं रखना है, चूकी पशु इस समय काफ़ी व्याकुल रहता है इस कारण से उसे घूमने के लिए आँगन में खुला छोड़ देना चाहिए।

ब्यांत
यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो आम तौर पर मदद के बिना होती है। गाय को कठिनायाँ होने की स्थिति में घनिष्ठ अवलोकन की आवश्यकता होती है। बछिया को बड़ी गायों की तुलना में अधिक समस्या होती है।

लक्षण
पेट के दाहिने किनारे के आकार में वृद्धि देखने के लिए मिलती है।
थन भर जाते हैं एवं कड़े हो जाते हैं।
श्लेष्म और रक्त की उपस्थिति के साथ योनी लाल हो जाती है और सूजन हो जाती है।
पशु बेचैन दिखाई देगा।
पानी की थैली योनी में दिखाई देगी।

नार्मल ब्यांत

ब्यांत के दौरन आने वाली समस्या
बच्चा अगर उप्रोक्त दर्शाये चित्र के तरीके से नही है तो उसके बहार आने में दिक्कत होने की अवस्था में डॉक्टर से सहायता लेनी अति आवश्यक हो जाती है। अगर सहायता नही ली गयी तो हो सकता है की गाय या फिर बच्छ्ड़े की जान भी जा सकती है और इसका असर उसके दूध उत्पादन पर भी देखने को मिलता है।

ब्याने पश्चात् देखभाल
जर स्वाभाविक रूप से गिर जाती है लेकिन अगर ऐसा ८ से 12 घंटे के भीतर न हुआ तो ऐसी स्तिथि में पशुचिकित्सक से मदद लेना अति आवश्यक है। यदि सहायता नही ली गई तो इसके परिणाम स्वरुप बच्चेदानी में इन्फेक्शन हो जायेगा अतएव बच्चा दानी ख़राब भी हो सकती है।

दीपिका डी. सीज़र, ज्योत्सना शक्करपुड़े, सुमन संत, मधु शिवहरे, शशि प्रधान, राजेश वांद्रे, सोमेश मेश्राम
पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय जबलपुर,
नानाजी देशमुख पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर (म.प्र.)

 

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