खरगोश पालन - कैसे करे

Pashu Sandesh, 21 April 2020

निनाद भट्ट1 नृपेन्द्र प्रताप सिंह2 दीक्षा काण्डपाल3

व्यवसायिक दृष्टि से खरगोश पालन समाज के कम पढ़े लिखे, बेरोजगार नवयुवकों और भूमिहीन किसानों के लिए आमदनी का अच्छा स्त्रोत है। खरगोश पालन मांस उत्पादन, फर एवं खाल के लिए किया जाता है।

खरगोश के मांस के फायदे

बाजार में उपलब्ध सफेद मीट में से खरगोश का मीट (मांस) सबसे बढ़िया क्वालिटी का है।
खरगोश के मीट में आसानी से पचने वाले प्रोटीन उच्च मात्रा में होते है।
खरगोश की मीट में सबसे कम वसा (कोलेस्ट्रॉल) मात्रा होती है इसलिए यह हृदय की बीमारी के मरीजों के लिए सुरक्षित एवं अत्यंत लाभकारी है।
कैल्शियम, और फोस्फोरस की मात्रा भी खरगोश के मीट में ज्यादा होती है।

खरगोश के फर के फायदे
खरगोश का फर सामान्य ऊन के मुकाबले 6-8 गुना ज्यादा गर्म होता है।  
खरगोश के फर को सिल्क, पोलिएस्टर, नायलोन और भेड़ के ऊन के साथ मिलाकर प्रयोग कर सकते है ।

खरगोश पालन से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी इस प्रकार है-

खरगोश की प्रजातियाँ -
भारी वजन वाली प्रजातियाँ - इनका वजन लगभग 5 किलोग्राम होता है। जैसे कि व्हाईट जायंट , ग्रे जायंट, फ्लैमिश जायंट, सोवियत चिनचिला ।
मध्य वजन वाली प्रजातियाँ - इनका वजन लगभग 3-5 किलोग्राम होता है। जैसे कि न्यूजीलैंड वहाईट, न्यजीलैंड रेड , कैलीफोर्नियन ।
कम वजन वाली प्रजातियाँ - इनका वजन लगभग 2-3 किलोग्राम होता है जैसे कि डच।

खरगोश के लिए जगह का चुनाव -
खरगोश पालन के लिए ज्यादा जगह की आवश्यकता नही होती है।एक पाऊंड के खरगोश के लिए 3/4स्क्वायर फीट जगह की जरूरत होती है। इसके लिए घर में ही एक छोटा सा पिंजरा बनाकर उसी में खरगोश पालन कर सकते है। खरगोशों को तेज धूप, वर्षा कुत्ते, बिल्ली आदि से बचाने के लिए भी पिंजरा जरूरी है।

दो तरह के घरों का प्रयोग किया जा सकता है
डीप लिटिर प्रणाली - अगर कम संख्या में खरगोश पालन करना है तो इस तरीके को अपना सकते है। 1 नर खरगोश को 10 मादा खरगोश के लिए प्रयोग करना चाहिये।
पिंजरा प्रणाली - यह अलग प्रजातियों और आकारों के खरगोशों के लिए है। बड़े खरगोशों के पिंजरे को 2x5 फीट लम्बा , 1.5 फीट चैडा और 2.5 फीट ऊँचा रखना होता है। इसमें एक या दो खरगोश रख सकते है। मध्यम वजन वाली प्रजातियों के लिए 24 इंच × 24 इंच का पिंजरा होना चाहिये। भारीवजन वाली प्रजातियों के लिए 30 इंच गहरा और 36 इंच चैडा होना चाहिये। पिंजरे की उचाई 18 इंच होनी चाहियेे। पिंजरे की छत और दीवारों पर लगी जाली 1 इंच × 2 इंच के आकर की होनी चाहिये। पिंजरे के फर्श पर 1x5 इंच की जाली लगानी चाहिये । पिंजरे का दरवाजा उपयुक्त आकार का होना चाहिये। नर खरगोश का पिंजरा 30 इंच × 30 इंच का होना चाहिये। मादा खरगोश का पिंजरा 12 इंच × 30 इंच का होना चाहिये ।

नेस्ट बॉक्स बढ़ते हुए खरगोशों के लिए जरूरी होता है। इस पिंजरे को लोहे का या फिर लकड़ी का बनाया जाता है। नेस्ट बॉक्स १८ इंच लम्बा , १८ इंच चैडा और 12 इंच ऊँचा होना चाहिये।
खरगोश के पिंजरे को फर्श से 3-4 इंच ऊपर बनाना चाहिये और पिंजरे की स्तह वाटर प्रूफ होनी चाहिये। ठण्ड से बचने के लिए पिंजरे में अखबार या कागज के गते प्रयोग कर सकते है।
खाद्य और जल प्रबंधन -
खरगोश साधारण खाना खाता है जैसे कि गेहूं का चोकर, गाजर , गोभी के पत्ते, पालक , हरी पत्तियां आदि।
खरगोश को एक दिन में १५० ग्राम खाना और ५0 ग्राम हरा चारा जरुर देना चाहिये। खरगोश एक दिन में कम से कम 70-100 मिलीलीटर पानी पीते है।

खरगोश के खाने पीने संबधित महत्वपूर्ण बाते-
खरगोशों को खाना देने का एक निश्चित समय होना चाहिये।
दिन के समय में तापमान ज्यादा होने के कारण खरगोश ज्यादा नही खा पाते इसलिए उन्हें रात में हरा चारा जरुर देना चाहिये।
पीने के लिए उबला हुआ पानी ठंडा करके देना चाहिये।

गर्भवती खरगोश की देखभाल-
मादा खरगोश 5-6 महीने की उम्र के बाद ही बच्चों को जन्म देना शुरू कर देती है और एक बार में 8-10 बच्चों को जन्म देती है। खरगोश 12 महीने बच्चे देते है।
नर खरगोश को एक साल की उम्र के बाद ही प्रयोग करना चाहिये।
गर्भवती खरगोश को अन्य खरगोशों से 50 से 100 ग्राम ज्यादा खाना खिलाना चाहिये।
गर्भवती खरगोश के पिंजरे में बिछाने के लिए सूखे नारियल के रेशे का प्रयोग करना चाहिये।
गर्भवती खरगोश अपने शरीर के बालों को तोड़कर किडलिंग के एक , दो दिन पूर्व नवजात के लिए एक नेस्ट बनाती है। इस समय मादा खरगोश को परेशान नही करना चाहिये।
किडलिंग 15-30 मिन्ट की अवधि में समाप्त हो जाती है।
मरे हुए बच्चों को नेस्ट बॉक्स से हटा लेना चाहिये।

स्वस्थ खरगोश के लक्षण -
स्वस्थ खरगोश के बाल चमकीले होते है।
स्वस्थ खरगोश की आँखे चमकीली दिखती है।
स्वस्थ खरगोश खाना ठीक से खाता है।
स्वस्थ खरगोश का भार भी तेजी से बढ़ता है।

बीमार खरगोश के लक्षण -
खरगोश विभिन्न प्रकार के परजीवी से संकर्मित हो सकते है। आमतौर पर आंत परजीवीए स्वास की बीमारियाँ और बाह्य परजीवी से संकर्मित हो सकते है।
बीमार खरगोश कमजोर दिखाई देता है।
बीमार खरगोश का वजन घटने लगता है।
बीमार खरगोश के बाल तेजी से गिरने लगते है।
बीमार खरगोश खाना खाना कम कर देते है।

रोग नियन्त्रण -
खरगोश का घर हवादार जगह पर बनाना चाहिये।
घर के चारों तरफ पेड़ पोधें लगाने चाहिए।
पिंजरा हमेशा साफ करते रहना चाहिये।
गर्मी के समय में पानी छिडकते रहना चाहिये।
आंत परजीवी के नियंत्रण के लिए खरगोश के खाने मे कोक्सिडियोस्टेट का प्रयोग करना चहिये।

निनाद भट्ट1 नृपेन्द्र प्रताप सिंह2 दीक्षा काण्डपाल3
1, 2 राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल हरियाणा
3 गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तराखंड

Corresponding author – ninadbhatt24@gmail.com

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