पशु प्रजनन में पोशक तत्वो की भूमिका

Pashu Sandesh, 19 June 2021

डॉ उपासना चंद्राकर, डॉ क्रांति शर्मा, डॉ मुकेश शर्मा, डॉ तारा सोनवानी, डॉ नूतन पंचखण्डे

दाऊ श्री वासुदेव चंद्राकर कामधेनु विश्वविद्यालय अंजोरा दुर्ग छत्तीसगढ़

पोशण और प्रजनन के बीच अंतर्सबंध सबसे महत्वपूर्ण कारको में से है जो प्रजनन क्श मता को नियंत्रित करता है। संतुलित आहार न मिलने के कारण हमारे देश में लगभग 20-40 प्रतिश त पशु प्रतिवर्श बांझ हो जाते है। आहार में पौश्टिक पोशक तत्व प्रोटीन, विटामिन और खनिज लवण की कमी से पश ुओं की रोग प्रतिरोधक क्श मता कम हो जाती है। फलस्वरूप पशु अनेक संक्रामक रोगो से पीड़ित होकर अत्यधिक दुर्बल एवं शक्तिहीन हो जाते है, जिसके कारण मादा पशु ऋतुकाल में नही आती है और नर में शुक्राणुओं के उत्पादन कमी आ जाती है, जिसके कारण पशु बांझ या नपुंसक हो जाता है।

पशुओं में प्रजनन छमता लगातार बनाये रखने के लिये पशु पोशण का अति महत्वपूर्ण स्थान है। पोशक तत्वों का निम्न उप शीर्षकों मे विभाजन कर उनके योगदान की व्याख्या की जा सकती है।
प्रोटीनः प्रजनन के अंगो के उचित कार्य और भू्रण के सामान्य विकास के लिये पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन आवश्यक है। प्रजनन के मौसम तथा प्रारंभिक गर्भावधि के दौरान आहार में अधिक मात्रा में विघटनकारी प्रोटीन तथा उर्जा कम मात्रा में उपलब्ध होने से प्रजनन छमता में कमी आती है।
प्रोटीन की कमी से मादा पशु में यौवनारंभ विलंब से आता है, जिसके कारण प्रथम ऋृतुकाल भी विलंब से आता है तथा प्रसव के दौरान पोशण संबंधी आवशयकता को पूरा करने के लिये स्तनपान कराने वाली गायों को 17 से 19 प्रतिशत आहार कच्ची प्रोटीन प्रदान किया जाना चाहिए।

उर्जा: अपर्याप्त उर्जा का सबसे गंभीर प्रभाव पशुओं के ऋृतु चक्र में होता है। पशु आहार में उर्जा संतुलन ऋृणात्मक होने से मादा पशुओं में ऋृतु विलंब से आती है। पशुओं में लैंगिक व्यस्कता आयु पर निर्भर न होकर शारीरिक भार पर निर्भर करती है अर्थात पशु जब अपनी जाति के व्यस्क पशु के शारीरिक भार का 2/3 भाग प्राप्त कर लेता है तभी उसके प्रजनन अंग पूर्ण रूप से विकसित होकर क्रियाशील होते है तथा पशु गर्भधारण करने की छमता प्राप्त करता है। वैज्ञानिको ने शोध में पाया है कि उर्जा की कमी ळदत्भ् प्रणाली के माध्यम से गर्भावस्था की दर को प्रभावित करती है।

खनिज लवणः खनिज तत्वो की कमियां, असंतुलन और विशाक्ता के कारण प्रजनन संबंधी विकार हो सकते है क्योकि खनिज पशुधन के स्वास्थ्य और प्रजनन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। मेक्रो खनिज अधिक मात्रा में आवश्यक होते है एवं पशु की दैनिक किर्याओ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है

कैल्शीयम और फास्फोरस दुधारू गायो को एक निशचित मात्रा में कैल्शियम प्रदान करना चाहिए, जिससे उनके दूध उत्पादन में वृद्धि हो और उनमें स्वास्थ्य संबंधी समस्याऐं कम हो।केलशियम   और फास्फोरस का अनुपात निशचित मात्रा में न होने से पशुओं में प्रथम ऋृतुकाल विलंब से आता है। अण्डोत्सर्ग विलंब हो जाता है, जेर रूकने की संभावना बढ़ जाती है। फास्फोरस की कमी से अण्डाश य की सक्रियता कम हो जाती है जिससे गर्भधारण की दर में कमी हो जाती है तथा अण्डाश य पर सिस्ट का निर्माण हो सकता है। कैल्शियम के कार्यों में से एक मांसपेशियों के संकुचन की अनुमति देना है। स्पष्ट रूप से मांसपेशियों की सिकुड़न में कमी से क्डप् में कमी आएगी क्योंकि रूमेन फंक्शन कम हो जाता है जिससे गंभीर नकारात्मक ऊर्जा संतुलन हो जाता है। परिणाम के रूप में वसा एकत्रीकरण में वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप फैटी लीवर सिंड्रोम और किटोसिस हो सकता है। कीटोन की अधिकता भूख को और दबा सकती है कम कैल्शियम सांद्रता भी इंसुलिन उत्पादन को रोकती है अंतत दूध की उपज कम हो जाएगी और प्रजनन छमता को नुकसान होगा। अन्य मेक्रो मिनरल में मेगनीसियम, फॉस्फोरस पशु प्रजनन में महती भूमिका निभाते है, मेगनीसियम की कमी ओवरी के डेवलपमेंट को रोकती है, एवं छोटी ओवरी के लिए उत्तरदायी होती है, नमक की कमी या सोडियम और क्लोरीन की कमी पशु प्रजननज क्श मता को काम करती है एवं डिलेड पुबर्टी के लिए उत्तरदायी होती है, पोटैशियम की कमी से समय पैर गर्भधान न हो सकने जैसी समस्या उत्पन्न होती है,
सेलेनियम : की कमी से आरंभिक भू्रण मृत्यु, गर्भाश य में सूजन, मृत वत्स या श क्तिहीन वत्स के पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है। सेलेनियम एक आवश्यक ट्रेस खनिज है और एक एंजाइम ग्लूटाथियोन पेरोक्सीडेस और सेलेनोप्रोटीन के महत्वपूर्ण घटक के आधार पर एंटीऑक्सिडेंट जैसी विभिन्न जैविक प्रतिक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सेलेनियम और विटामिन ई एक दूसरे के पूरक होते हैं और दोनों में शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट कार्य होते हैं और जैविक प्रणाली को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचाते हैं। सेलेनियम थायराइड हार्मोन की सक्रियता के लिए जिम्मेदार होता है सेलेनियम फॉलिकल के डेवलपमेंट को स्टिमुलेट करता है। साथ ही सेलेनियम गोनैडोट्रॉफिन को स्टिमुलेट करता है। एराकिडोनिक एसिड के स्टिमुलेशन के लिए भी सेलेनियम की आवश्यकता होती है बहुत से अध्ययनों में यह दिखाया गया था कि सेलेनियम और विटामिन ई इंजेक्शन से मैट्रिटिस एवं सिस्टिक ओवरी में कमी आती है, स्पर्म डेवलपमेंट के लिए मेल में सेलेनियम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है

ताम्र की कमी से पशुओं में जेर का रूकना भ्रूण मृत्यु और गर्भाधान दर में कमी आती है। कॉपर की एंजियोजेनिक प्रॉपर्टी (लाइसिल ऑक्सीडेज एंजाइम) जो वेसल इंटीग्रिटी, यौन अंगों में वास्कुलचर और भ्रूण के विकास के लिए आवश्यक है। कॉपर सेरुलोप्लास्मिन एंजाइम का सह-कारक है जो हीमोग्लोबिन सिंथेसिस के लिए आयरन के परिवहन के लिए जिम्मेदार है।भेड़ों में तांबे की कमी निम्फोमेनिया पाया जाता है
जस्ता की कमी से पशु की प्रजनन छमता घट जाती है, पशु का ऋृतु-चक्र अनियमित हो जाता है तथा गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। जिंक 200 से अधिक एंजाइम प्रणालियों का एक आवश्यक घटक है जो कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और न्यूक्लिक एसिड, कोशिका की मरम्मत और विभाजन के मेटाबोलिज्म में शामिल हैर्। द प्रतिरक्श ा प्रणाली और कुछ प्रजनन हार्मोन में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। जिंक को उचित यौन परिपक्वता, प्रजनन क्श मता और अधिक विशेश रूप से एस्ट्रस की शुरुआत के लिए आवश्यक माना जाता है। प्रसव के बाद गर्भाशय की मरम्मत और रखरखाव में जिंक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, सामान्य प्रजनन कार्य और एस्ट्रस में तेजी से वापसी के लिए जिंक उत्तरदायी होता है

मैंगनीज की कमी से पशुओ में ऋृतु चक्र अनियमित हो जाता है, गर्भाधान दर में कमी आती है तथा जेर के रूकने की संभावना भी बढ़ जाती है मैंगनीज, कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन और न्यूक्लिक एसिड के मेटाबोलिज्म में एंजाइम सिस्टम का एक प्रेरक होता है। यह कोलेस्ट्रॉल सिंथेसिस के लिए आवश्यक है, जो बदले में स्टेरॉयड, एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और टेस्टोस्टेरोन के सिंथेसिस के लिए जरुरी है। यह स्टेरियोडोजेनेसिस में अपनी भूमिका के आधार पर जानवरों के प्रजनन चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है एवं कोलेस्ट्रॉल बायोसिंथेसिस के लिए आवश्यक एंजाइम मेवलोनेट काइनेज और फर्नेसी पायरोफॉस्फेट ेलदजींजंेम के लिए कॉफैक्टर का कार्य करता है ।
कोबाल्ट ; की कमी से पशुओं में यौवनारम्भ विलंब से आता है, अण्डाश य निश्क्रिय रहता है तथा गर्भपात होने की संभावना बढ़ जाती है। विटामिन बी12 सिंथेसिस के लिए कोबाल्ट की आवश्यकता होती है। पर्याप्त विटामिन बी12 की स्थिति बनाए रखने से मदर और संतान दोनों को लाभ होता है। कोबाल्ट की कमी से गर्भधारण की दर कम हो सकती है। प्रसवोत्तर पशुओ में कोबाल्ट के निम्न स्तर के कारण गर्भाशय के इनोलूशन होने में देरी होती है।

आयोडीन की कमी से यौवनारम्भ विलंब से आता है, ऋृतु चक्र अनियमित हो जाता है, भ्रूण की मृत्यु होने की संभावना भी बढ़ जाती है, मृत वत्स या विकृत वत्स पैदा होते है, गर्भपात की संभावना, जेर रूकने की संभावना बढ़ जाती है। नर पशुओं में वीर्य की गुणवत्ता आयोडीन की कमी से खराब हो जाती है।

क्रोमियम ; क्रोमियम इंसुलिन एक्शन को प्रबल करता है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर में कोशिकाओं द्वारा ग्लूकोज और अमीनो एसिड की मात्रा बढ़ जाती है क्रोमियम गर्भाशय के एंडोमेट्रियम से गर्भावस्था के विशिस्ट प्रोटीन के स्राव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो प्रारंभिक भ्रूण मृत्यु को रोकने में सहायक होता है। क्रोमियम फॉलिकल मेचुरेशन और रिलीज पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। यह संभवतः कम शुक्राणुओं की संख्या और प्रजनन क्श मता में कमी ला सकता है और भ्रूण के विकास को प्रभावित करता है।

विटामिन ए . की कमी से बछिया विलंब से व्यस्क होती है, गर्भित पशुओं में गर्भपात हो जाता है। गर्भाशय में संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है एवं गर्भकाल की अवधि घट जाती है।

विटामिन डी , विटामिन डी अपरोक्श रूप से कैलशियम, तथा फ़ोसफोरस के उपापचय को प्रभावित कर पशुओं की प्रजनन क्श मता को प्रभावित करता है।

विटामिन ई . की कमी से पशुओं मे गर्मी पर न आना जैसे लक्श ण पाये जाते है, अण्डाश य की सक्रियता कम हो जाती है तथा गर्भाधान दर में कमी आती है। विटामिन ई और सेलेनियम एक दूसरे के पूरक माने जाते है।

यह स्पष्ट है कि पशु प्रजनन पर पोशण का बहुत प्रभाव पड़ता है। किन्ही भी पोशण तत्वों की अधिकता या कमी पशुओ में उनके प्रजनन प्रदर्श न को प्रभावित कर सकता है। पशुओं को एक निशचित मात्रा में गुणवत्ता युक्त चारा, दाना, विटामिन ए खनिज मिश्रण देना चाहिए जिससे कि डेयरी पशुओं में प्रजनन क्श मता को बढ़ाया जा सके।