दुधारू पशुओं में लिंग वर्गीकृत वीर्य (सेक्स्ड सीमेन) से गर्भाधान : सुझाव  

Pashu Sandesh, 2 Feb 2021

अवनीश कुमार सिंह, विकास सचान

हमारे देश की बढ़ती आबादी एवं बेरोजगारी जैसी समस्याओं से निजात पाने मे पशुपालन की अहम भूमिका है। यहाँ पशुओं की नस्ल सुधार व उत्पादकता बढाने के लिए अनेक तकनीकों पर शोध किया जा रहा है और पहले भी हो चुका है, परन्तु उन सभी में कृतिम गर्भाधान सबसे ज्यादा प्रचलित, प्रभावी, सस्ती, सफल एवं सार्वभौमिक रुप से स्वीकार्य तकनीक सिद्ध हुई है। इस तकनीक के द्वारा लिंग वर्गीकृत वीर्य (सेक्स्ड सीमेन) का उपयोग करके मादा संतति (मादा बच्चों) की प्राप्ति कर अनुपयोगी/आवारा नर पशुओं की समस्या से काफी हद तक निजात पाने के साथ अधिक उत्पादन भी प्राप्त किया जा सकता है। 

लिंग वर्गीकृत वीर्य (सेक्सड सीमेन) :-

इस तकनीक में कृत्तिम विधि से साडं से वीर्य लेकर X-गुणसूत्र (मादा) व Y- गुणसूत्र (नर) धारक शुक्राणुओं को वर्गीकृत और प्रथक करके, X-गुणसूत्र धारक शुक्राणुओं वाले वीर्य को हिमीकृत करके कृतिम गर्भाधान के लिए उपयोग किया जाता है।

लिंग वर्गीकृत वीर्य (सेक्सड सीमेन) का महत्व :-

पारम्परिक वीर्य से कृत्तिम गर्भाधान में 50% मादा व 50% नर संतति होने की सम्भावना रहती हैं, परन्तु सेक्स्ड सीमेन से कृत्तिम गर्भाधान करवाने से लगभग 90% मादा संतति की प्राप्ति हो सकती हैं।

लिंग वर्गीकृत वीर्य (सेक्स्ड सीमेन) के लाभ :-

  1. अधिक मादा संतति की प्राप्ति।
  2. दुग्ध उत्पादन करने वालें पशुओं मे वृद्धि।
  3. दुग्ध उत्पादन में बढोत्तरी। 
  4. नर संतति के पालन-पोषण में होने वालें खर्चों से छुटकारा। 
  5. अनुपयोगी नर आवारा पशुओं से छुटकारा।
  6. पशुओं की आनुवंशिकीय में सुधार।
  7. कठिन प्रसव की सम्भावना में कमी।  
  8. पशुपालकों की आमदनी मे तीव्र वृद्धि।

लिंग वर्गीकृत वीर्य (सेक्सड सीमेन) की सीमाए :-

  1. पारम्परिक वीर्य की तुलना में सेक्सड सीमेन की कीमत ज्यादा होती हैं।
  2. पारम्परिक वीर्य की तुलना में सेक्सड सीमेन से गर्भाधान करवाने से गर्भधारण की सम्भावना कुछ कम होती है। 

सुझाव :- 

 सेक्सड सीमेन से गर्भाधान ऐसे पशुओं में ही करवाए-

  1. जिनका दुग्ध उत्पादन पिछले ब्यात में अच्छा हो।
  2. प्रजनन अंग सामान्य हो।
  3. जिनको पिछले ब्यात में कठिन प्रसव, जेर अटकने व गर्भाशय शोध आदि समस्याए ना हुई हो।
  4. जिनका मद चक्र सामान्य (21 दिन) हो।
  5. जिनकी गर्मी (मद) के लक्षण समय पर एवं अच्छी तरह से प्रदर्शित हो।

पहली बार गर्मी में आने वाले मादा पशुओं (ओसर) का वजन लगभग 260 किग्रा. से कम ना हो, उनके जननांग पूर्णतया विकसित हो, उनकी माँ की दुग्ध उत्पादकता एवं प्रजनन क्षमता अच्छी रही हो। व्यस्क पशुओं को 50 ग्राम की दर से एवं छोटे पशुओं को 20-30 ग्राम की दर से रोजाना खनिज मिश्रण खिलाये। पशुओं को कृमिनाशक दवा गर्भाधान के 1 माह पूर्व तथा हर 3 महीनें पर पंजीकृत पशुचिकित्सक की सलाह से देते रहें। पहली बार गर्मी में पशु का गर्भाधान ना करवाकर दूसरी अथवा तीसरी गर्मी पर ही गर्भाधान करवाये।

सेक्सड सीमेन से गर्भाधान करवाने से पहले पंजीकृत पशुचिकित्सक की सलाह ले तथा जननांगो का परीक्षण जरुर करवाये। सेक्सड सीमेन से गर्भाधान हमेशा पंजीकृत पशुचिकित्सक या कुशल एवं अनुभवी व्यक्ति से ही करवाये।

उपरोक्त सुझावों तथा नजदीकी पंजीकृत पशुचिकित्सक की सलाह से लिंग वर्गीकृत वीर्य (सेक्सड सीमेन) तकनीक, पशुपालकों एवं पशुपालन के उत्थान में अग्रिणी सिद्ध होगी    

अवनीश कुमार सिंह, विकास सचान  

मादा पशु रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग, दुवासू, मथुरा (उत्तर प्रदेश)