खीस (कोलोस्ट्रम) : नवजात बछड़ो के लिये वरदान!

Pashu Sandesh, 17th May 2021

डॉ पूनम यादव, डॉ आदित्य मिश्रा, डॉ आनंद जैन, डॉ दीपिका सीजर, डॉ संजू मंडल एवं डॉ जितेंद्र यादव

पशु शरीर क्रिया और जैव रसायन विभाग

पशु चिकित्सा और पशु पालन महाविद्यालय जबलपुर -482001 (म.प्र.)

जैसा कि प्रायः देखा गया है गाय /भैंस के बछड़ो में मृत्युदर अत्यधिक पायी जाती है जिसका कारण है पर्याप्त मात्रा में खीस का ना मिलना। गाय-भैंस बच्चे देने के पश्चात करीब एक सप्ताह तक सामान्य से ज्यादा गाढ़ा दूध देती हैं, जो हल्का पीले रंग का होता है। इसे भारत में खीस या चीका कहा जाता है, जबकि इसका अंग्रेजी नाम कोलोस्ट्रम है। खीस एक गाढ़ा, पीला द्रव्य पदार्थ है जो प्रसूत होने के उपरान्त एवं दूध स्त्रवण से पहले स्तन ग्रंथि द्वारा स्रावित होता है। यह कुछ ही देर में जम जाता है। खीस में सामान्य दूध की तुलना में 4-5 गुना अधिक प्रोटीन और 7 - 8 गुना अधिक विटामिन-ए पाया जाता है। खीस में खनिज तत्व-कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम तथा जिंक पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं और यह कई प्रतिरक्षी, वृद्धि कारकों और आवश्यक पोषक तत्वों के साथ ट्रिप्सिन जैसे अवरोधक कारक भी रखता है। 

बछड़ों के लिए कोलोस्ट्रम/खीस का महत्व- 

नवजात बछड़े / बछियों में रोग प्रतिरोध क्षमता बहुत कम होती है क्योंकि बछड़े स्वयं के कुछ एंटीबोडीज़ और एक अपरिपक्कव प्रतिरक्षा प्रडाली के साथ पैदा होते हैं, जो कुछ हफ्तों के लिए एंटीबोडीज़ का उत्पादन करने में सक्षम नहीं होते है। बछड़ों को संक्रमण से बचाने और उसकी प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने के लिए खीस/कोलोस्ट्रम एक अच्छा उपाय होता है। खीस बछड़े को दिया जाने वाला पहला और सबसे आवश्यक अनमोल आहार है, जो बछड़े  के लिए बेहद पौष्टिक होता है और इसमें उच्च स्तर के एंटीबोडीज़ होती हैं जो बछड़ों को अधिकांश जीवों के कारण होने वाली बीमारियों से रोकने के लिए आवश्यक है । खीस उन पोषक तत्वों से भरा होता है जो बीमारी से लड़ते हैं और विकास को बढ़ावा देते हैं।  

  • खीस एंटीबॉडी का प्राथमिक स्रोत है तथा इसमें एंटीबॉडी पर्याप्त मात्रा में पायी जाती  है।
  • खीस में एन्जाइम अवरोधक होते है जो कि एंटीबॉडी को आंत में विघटित होने से बचाते हैं। जिससे ये ज्यों के त्यों अवशोषित हो जाते है।
  • खीस बछड़ों में डायरिया तथा न्यूमोनिया के जोखिम को कम करते हैं।
  • खीस वसा, प्रोटीन, विटामिन्स तथा खनिज का केंद्रित स्त्रोत होता है।
  • खीस में अनेक हार्मोन व विकास कारक होते हैं जो कि बछड़े के वृद्धि व स्वास्थ्य के लिये महत्वपूर्ण है।
  • खीस  हल्के मृदुसारक (हल्के जुलाब ) का कार्य करता है, जो नवजात बछड़े/ बछियों कि आंतों से पाचक अवशेषों/गंदा मल (म्यूकोनियम) को साफ करने में मदद करता है। 

खीस बछड़ों को कब और कितना देना चाहिए-

जन्म के बाद पहले घंटे के भीतर जितना जल्दी हो सके बछड़े को खीस पिला देना चाहिए। क्योंकि नवजात बछड़े की आंतों में उसके जन्म के 24 घंटों तक प्रोटीन के बड़े अणुओं को अवशोषित करने की क्षमता रहती है।

जन्म के पहले 6 घंटों में लगभग 2.5-3 लीटर या बछड़े के भार के 10 प्रतिशत के बराबर खीस पिलाना चाहिए।

खीस एवं दूध के संघटन की तुलनात्मक सारणी:

. क्र.

अवयव का नाम

खीस में उपस्थित मात्रा

दूध में उपस्थित मात्रा

1.

कुल ठोस पदार्थ

22.50% - 23.2%

12.50%- 13.5%

2.

पानी

74.8% -77.5%

86.50% - 87.5%

3.

वसा

3.50%  

4.00%

4.

प्रोटीन

  • केसीन
  • एलब्यूमिन
  • ग्लोब्यूलिन्स

17.00%

5.00%

3.00%

9.00%

3.5%

2.90%

0.45%

0.15%

5.

कैरोटीन

दूध से 9 गुना  ज्यादा

 

6.

विटामिन-ए

दूध से 8 गुना ज्यादा

 

7.

आयरन या लौह तत्व

दूध से 17 गुना ज्यादा

 

8.

विटामिन-डी

दूध से 2 गुना ज्यादा

 

 

प्रायः पशुपालकों में  एक गलत भ्रांति है कि जब तक गाय / भैंस जेर न डाल दे तब तक बछड़े को खीस नहीं पिलाना चाहिए। यह बिलकुल गलत बात है। बल्कि जन्म के उपरांत नवजात बछड़े को 1- 1.5 घंटे के भीतर खीस पिलाएँ , जेर के निकलने का इंतज़ार    करें, क्यूंकि यदि नवजात बछड़े को खीस पिलाने में अधिक देर हो गयी तब खीस कि प्रतिरोधक छमता में कमी आएगी और बछड़े के जीवित बचने कि संभावना कम हो जाएगी।  

कृत्रिम खीस बनाने की विधि-

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी कारणवश माँ, बच्चे ब्याने के पश्चात खीस देती ही नहीं है या उसकी मृत्यु हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में अगर संभव हो तो कोई और गाय या भैंस जो आसपास में ब्याई हो तो उसका खीस पिलाया जा सकता है। यदि खीस न उपलब्ध हो तो हम कृत्रिम विधि से खीस निम्न प्रकार से बना सकते हैं:- 

ताजा दूध - 500 मिली. + एक कच्चा अंडा 55-60 ग्रा.+ गुनगुना पानी- 300 मिली. + 1-2 चम्मच अरंडी का तेल, घर पर मिश्रण बनाकर दिन में तीन बार बछड़े को  पिलाएँ। कच्चे अंडे से बछड़े को प्रोटीन विशेषरूप से ग्लोब्यूलिन्स की पूर्ति हो जाएगी ,जबकि अरंडी के तेल में मृदुरेचक अथवा दस्तावर गुण विद्यमान होते हैं, जो प्रथम मल अर्थात म्यूकोनियम को बाहर निकालने में सहायक होती है। इस प्रकार बछड़ों का ऊपर बताई गई खीस प्रबंधन विधि को ध्यान में रखकर किसान भाई न केवल युवा वंश (बछड़ा व बछड़ी) की मृत्युदर को कम कर सकते हैं बल्कि भविष्य में होने वाले आर्थिक नुकसान से बच सकते हैं तथा एक बेहतर उत्पादन वाले डेयरी झुण्ड तैयार कर सकते है।