बकरी पालन: छोटे किसानो के लिए स्वावलम्बन का एक जरिया  

Pashu Sandesh, 16th July 2020

डॉ अशोक कुमार पाटिल एवं डॉ आर के जैन

कोरोना वायरस नामक महामारी ने सम्पूर्ण विश्व को एक आर्थिक संकट की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है l हम सतत समाचारो के माध्यम से देख रहे है की भारत मे लाखों  की संख्या मे मज़दूरों  का पलायन एक जगह से दूसरी जगह हो रहा है, इससे आप सीधे समझ सकते है की उनके रोजगार सतत जा रहे है l भारत मे ही देखे तो लाखों लोगों के सामने रोजगार की एक बड़ी समस्या खड़ी होने वाली है, ओर इस स्थिति से निपटने के लिए  जो जहा है उसे वही पर स्वावलंबन प्रदान करने मे पशुपालन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है l अगर हम देखे तो  खेती में पशुपालन एक महत्वपूर्ण अवयव के रूप में हमेशा से उपयोगी रहा है। महामारी एवं सूखे के क्षेत्र में इसका महत्व और बढ़ जाता है और उसमें भी बकरी पालन सूखे की दृष्टिकोण व छोटे किसानों के लिहाज से काफी प्रभावी है, क्योंकि इसमें लागत कम होने के साथ ही साथ आजीविका के विकल्प भी बढ़ जाते हैं।

भारत मे खेती और पशु पालन दोनों एक दूसरे के पर्याय माने जाते  हैं, और  हमारी  आजीविका इन्हीं दो के इर्द गिर्द अधिकांशतः घूमती रहती है। खेती कम होने की दशा में लोगों की आजीविका का मुख्य साधन पशुपालन हो जाता है। सरकार के सामने अब एक बहुत बड़ी चुनोति होगी की इन प्रवासी मजदूरों को उनके क्षेत्र मे रोजगार उपलब्ध कराना ओर इस स्थिति मे देखे तो बकरी पालन स्वावलंबन का एक सस्ता एवं अच्छा रास्ता हो सकता है बशर्ते उनको इसके फ़ायदों से अवगत कराना होगा l  गरीब की गाय के नाम से मशहूर बकरी हमेशा ही आजीविका के सुरक्षित स्रोत के रूप में पहचानी जाती रही है। प्रक्रति ने छोटे किसानों को वरदान के रुप में बकरिया दी है। बकरी पालन मुख्यतः दूध एवं माँस के लिए किया जाता है। भूमिहीन, लघु एवं सीमान्त किसानों के लिए बकरी पालन एक अच्छा एवं लाभकारी रोजगार है।ये निम्नतम खाद्य ग्रहण करके मनुष्य को उच्च स्तर का आहार देती है। उच्च रोग प्रतिरोधी क्षमता और अधिक उत्पादन के कारण ये निर्धनों हेतु सर्वश्रेष्ठ पालतू पशु मानी जाती है। अकाल जैसी भीषण परिस्थिति में जब किसी अन्य तरह का पशुपालन दूभर हो जाता है तो बकरी पालन द्वारा निर्धन वर्ग के लोग अच्छी आय प्राप्त कर सकता है। बकरियों का दूध, बच्चोंएवं रोगियों के लिए बहुत उपयोगी होता है क्योंकि प्रतिरोधी क्षमता अधिक होने के साथ-साथ इसका पालन भी आसानी से हो जाता है l अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से छोटे तथा भूमिरहित किसानों के लिये  बकरियाँ रीढ़ की हड्डी साबित होती है। बकरी जुगाली करने  वाला पशु है। यह पूरा खाना एक बार में न खाकर थोड़ा-थोड़ा खाना पसंद करती है। सामान्यतया बकरियों मे सारे आवश्यक पोषक तत्वो की पुर्ति अच्छे चरागाहों मे चरने से हो जाती है। अगर इनके चरने के लिए आसपास जगह उपलब्ध हो, तो ये शरीर की आवश्यकता अनुसार पोषक तत्व गृहण कर लेती है। पर्याप्त मात्रा मे अगर चरागाह उपलब्ध नही हो तो बकरियों को बांधकर भी पाला जा सकता है

बकरीपालन  को  स्वावलंबन का जरिया बनाते समय हमे कुछ महत्वपूर्ण बातो को ध्यान मे रखना चाहिये अन्यथा पशुपालक को भारी नुकसान भी हो सकता है ओर हम समय के उस दौर मे खड़े है जिस मे नुकसान मे जाना या रिस्क लेना हमारे लिए एवम परिवार के लिए बिलकुल भी उचित नहीं है l इसलिए पशुपालक भाइयो बकरी पालन से अधिक से अधिक लाभ लेने के लिए निम्न बातो पर जरूर ध्यान देवे l 

1. बकरियो की उत्तम नस्ल का चुनाव : बकरी पालन प्रारंभ करने से पहले उनकी नशलों के बारे मे अच्छे से जानकारी हासिल कर लेना चाहिये ताकि हमारी उपयोगिता के हिसाब से हम नस्ल का चयन कर सके, वैसे तो बकरियो की बहुत सारी नश्ले होती है परंतु हमारे यहा मुख्य रूप से अगर जमुनापरी, सिरोही, बीटल, ब्लेक बंगाल एवं बरबरी को पाले तो अच्छा लाभ होगा l 

2. आहार व्यवस्था 

नस्ल चयन के साथ ही साथ हमे इनके वैज्ञानिक तरीके से रख रखाव और खान पान की जानकारी होना भी बहुत जरूरी है lबकरियाँ कई प्रकार के  खाघ सामग्री जैसे- झाडियों के पत्ते, जंगली घास, वृक्षो की पत्तियाँ, खरपतवार एवं अन्य प्राकृतिक पोधों  का सेवन भली-भांति करती है। इन चरागांहों मे चराने समय यह बात ध्यान देनि चाहिये की बकरियाँ ठंड और बरसात के प्रति काफी संवेदन शील होती है, अतः अधिक ठंड में धूप के समय चरने के लिए भेजना चाहिए और बरसात में गीली जगह या दलदल में चराई नहीं कराना चाहिए। अगर चराने के लिए जगह पर्याप्त है, तो दाना देने की भी उतनी जरूरत नहीं पड़ती, परंतु अगर ज्यादा वजन एवं उत्पादन लेना है तो हमे कुछ दानो का मिश्रण देना होगा l समान्यत: देखा गया है की गांवो मे लोग बकरी पालन को मुख्य व्यवसाय के रूप मे नहीं करते इसलिए वो इसके पोषण पर ज्यादा ध्यान नहीं देते है  ओर जो इससे मिल जाता है, उसी मे संतुष्ट हो जाते है l परंतु किसान भाई लगभग 80 से 90  प्रतिशत तो मेहनत बकरियो के रख रखाव पर कर ही रहे है, बस थोड़ा सा अतिरिक्त ओर ध्यान दे लेवे तो इनको अच्छा लाभ मिल सकता है, जैसे की गाँव मे आहार के साथ खनिज मिश्रण नहीं मिलाते है जो की आहार का सर्वाधिक  महत्तवपूर्ण अवयव है l ऐसा पाया गया है की खनिज मिश्रण देने से लगभग 20 से  25 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन मे बढ़ोतरी होती है साथ ही मेमनो की वृद्धि भी तेजी से होती है एवं जनन संबंधी परेशानियों मे भी कमी आती है l जब इतने सारे लाभ एक मिश्रण खिलाने से हो सकते है तो क्यो न इस चीज को महत्तव दिया जावे, इसलिए सभी पशुपालको भाइयो को इसका ज्ञान होना बहुत जरूरी है l 

शुष्क बकरियो का आहार प्रबंधन : ऐसी बकरियाँ जिनसे दूध उत्पादन नही हो रहा एवं ब्याने मे लगभग दो महीने से ज्यादा समय बाकी है को सामान्य प्रकार के आहार की आवश्यकता होती है जिससे की ये अपने शरीर भार को बनाए रखे । इस प्रकार की बकरियो को प्रतिदिन लगभग 500 ग्राम दलहनी या एक कि॰ ग्रा॰ अदलहनी हरा चारा, 500 से 600 ग्रा॰ दलहनी भूसा तथा लगभग 100 ग्रा॰ दाना मिश्रण की आवश्यकता होगी। जन्म से लेकर तो वयस्क अवस्था तक का आहार प्रबंधन (लगभग) सारणी मे नीचे दिया गया है ।

उम्र 

दूध (शरीर भार का )

दाना 

सूखा चारा 

हरा चारा 

0-1 सप्ताह 

10 प्रतिशत 

-

-

-

1-2 सप्ताह

15 प्रतिशत

-

-

-

2-4 सप्ताह

12 प्रतिशत

शरीर भार का 3 प्रतिशत 

-

इच्छानुसार 

4-8 सप्ताह

7 प्रतिशत

शरीर भार का 2.5 प्रतिशत

इच्छानुसार 

इच्छानुसार 

8-12 सप्ताह

3 प्रतिशत

शरीर भार का 2 प्रतिशत

इच्छानुसार 

इच्छानुसार 

3-6 माह 

-

200-300 ग्राम 

इच्छानुसार

इच्छानुसार

व्यस्क 

-

400 ग्राम

इच्छानुसार 

इच्छानुसार 

गाभिन 

-

400 ग्राम

इच्छानुसार

1-2 किग्रा 

दूध हेतु 

-

400 ग्राम

1-2 किग्रा

1-2 किग्रा

प्रजनन हेतु 

-

400 ग्राम

1-2 किग्रा

1-2 किग्रा

प्रजनन हेतु बकरों की आहार व्यवस्था 

प्रजजन में काम आने वाले बकरे को अच्छा एवं संतुलित आहार की जरूरत होती है। प्रजनन ऋतु से करीब 15 दिन पूर्व एवं बाद लगभग 300 से 500 ग्राम रातिब प्रतिदिन देना लाभप्रद है, विशेषकर जब एक ही बकरा कई बकरियों में प्रजनन हेतु प्रयुक्त किया जाता है। बकरा जब उपयोग में नहीं लाने का समय हो तो आहार की मात्रा कम कर सकते हैं। 

ग्याभिन बकरी की आहार व्यवस्था 

गर्भावस्था में उचित आहार प्रबन्ध का प्रभाव बच्चों के जन्म के वजन, उत्तरजीविता, वृद्धि क्षमता तथा कुल दुग्ध उत्पादन पर पड़ता है। बकरी का गर्भकाल 5 माह का होता है। ब्याने की तिथि से लगभग 60 दिन के बाद बकरी को दोबारा प्राकृतिक या कृत्रिम गर्भाधान द्वारा गाभिन करा दें। गाभिन कराने के तुरन्त बाद 15 से 20 दिन तक 200 से 300 ग्राम दाना मिश्रण तथा 300 से 400 ग्राम हरा-चारा भूसे में मिलाकर प्रतिदिन देवे । गर्भावस्था के अंतिम 6 से 8 सप्ताह में पोषक तत्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है। इस समय गर्भ में शिशु की वृद्धि तीव्र गति से होती है, इसलिये इस समय अतिरिक्त पोषक तत्व, ऊर्जा, प्रोटीन और विटामिन शिशु की सामान्य वृद्धि और माँ के उचित शरीर भार बनाये रखने के लिये आवश्यक होता है। गर्भवती बकरियो को अच्छे चरागाह, पेड़-पौधों की पत्तियों और घासों पर रखना चाहियें जिससे की उनके पोषक तत्वो की अवश्यकता को पूरा किया जा सकता है l 

दुधारू बकरी का आहार

जैसा की हम जानते है कि दूध एक संतुलित आहार का कम करता है अर्थात इसमे सारे तरह के पोषक तत्व होते है जिसकी हमारे शरीर को अवश्यकता होती है इसलिए दुधारू बकरी की पोषक तत्वो की अवश्यकता समान्य बकरियो से ज्यादा होती है l इसलिए दुधारू बकरी को सामान्य बकरी से ज्यादा पौष्टिक और संतुलित आहार की आवश्यकता होती है। सामान्यत: प्रति एक किलो दूध उत्पादन पर उन्हे 0.3 से 0.5 किलो दाना मिश्रण देना पर्याप्त होता है। दाना मिश्रण की मात्रा को दिन में दो बराबर भागो में बाँट कर दें। दूध देने वाली बकरियों को दलहनी हरा चारा कम से कम एक किलोग्राम प्रति दिन प्रति बकरी जरूर दे यदि यह उपलब्ध नहीं है तो उस स्थिति में दलहनी चारो से बनी हे खिलाकर बकरियों की पोषक तत्वों की अवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है।

3. बीमारियो के प्रति अवश्यक बाते :

गांवो मे एक चीज ओर देखि गयी है की बकरी पालक बंधु बकरियो को टीका लगवाने मे मुंह मोड़ते है ओर जब सरकारी डॉक्टर ओर उनका स्टाफ जाता है या कैम्प लगाते है तो अपने  पशुओ को लेकर आने मे भी पूरा सहयोग नहीं करते है l टिकाकरण को लेकर कुछ भ्रांतिया फैली हुई है परंतु हम आपको बता देवे की टिकाकरण आपकी बकरी को बीमारियो से बचाने का एक सस्ता ओर आसान तरीका है l वेक्सीन की महत्ता आप इससे ही समझ सकते है की सारा विश्व आज कोरोना महामारी के लिए टीका बनाने मे लगा है ताकि हम  इस बीमारी से भविष्य मे बचे रहे l इसलिए सभी बकरी पालक भाइयो को अपने क्षेत्र के डॉक्टर से मिलकर मुख्यत: बकरी प्लेग, एंटेरोटोक्सेमिया, गोट पॉक्स, ऐन्थ्रेक्स ओर खुरपका मुहपका बीमारी का टीका अपनी बकरियो को जरूर लगवाना चाहिए l 

दुर्भाग्य से बकरियां अक्सर विभिन्न कीड़ों और परजीवियों से ग्रस्त रहती हैं। और हमारे पशुपालक भाईयो को  इन कीड़ो के बारे मे जानकारी न होने के कारण काफी हानि उठानी पड़ती है l इसलिए अपनी बकरियों के शरीर से समय-समय पर कीड़े निकालने के लिए डॉक्टर से परामर्श लेवे ओर उचित दवाई देकर इस हानि से बचने का प्रयास करे l 

एक बात ओर हमारे ध्यान मे आती है की पशुपालक भाई अपने घर के सामने खुली जगह मे ही बकरियो को बांध देते है जिससे की उन पर वातावरण के  बदलाव का सीधा सीधा प्रभाव पड़ता है ओर इस बदलाव को सहन करने मे  उनकी अधिकतम ऊर्जा खर्च हो जाती है l   अगर पक्का घर नहीं बना सकते तो इनके लिए एक कच्चा घर या  त्रिपाल या फालतू बोरो को सिलकर कुछ ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे की वे सीधे तौर पर वातावरण के संपर्क मे न आवेl

जैसा की समाचारो के माध्यम से विदित हो रहा है की कोरोना के साथ जंग लंबी चलेगी ओर रोजगार के बहुत सारे संसाधन इस महामारी से बंद भी हो जाएंगे l ऐसी स्थिति मे इतने सारे लोगो को रोजगार उपलब्ध कराना सरकार के सामने एक बड़ी चुनोती रहेगी l उत्पादन के हर साधन का पूरा – पूरा इस्तेमाल किए बिना देश को खुशहाल नहीं बनाया जा सकता है। लगातार बढ़ते  बकरी मांस ओर दूध की मांग को ध्यान मे रखकर हम कह सकते है की बकरी – पालन व्यवसाय का भविष्य  उज्ज्वल होगा यह लोगो को रोजगार देने मे तथा माननीय प्रधानमंत्री जी  के आत्म-निर्भर भारत अभियान मे भी एक महत्तवपूर्ण भूमिका निभा सकता है l बस, जरूरत इस बात की है कि बकरी – पालन का धंधा वैज्ञानिक एवं आधुनिक ढंग से किया जाए ताकि इस व्यवसाय से अधिक  से  अधिक आमदनी हासिल कर सके ।

डॉ अशोक कुमार पाटिल एवं डॉ आर के जैन 

पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविधालय, महू (म॰ प्र॰)

 

 

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