बायोसेक्यूरिटी प्रबंधन

पशु संदेश, 21 जुलाई 2018 
अक्षय कुमार,विजय कुमार जैन,आशा कुमारी वर्मा

बायोसेक्यूरिटी- मुर्गीपालन में मुर्गी एवं मुर्गीघर को सभी प्रकार की बीमारी उत्पन्न करने वाले कीटाणुओं से दूर रखने की प्रकिया को बायोसेक्यूरिटी कहते हैं | व्यापक रूप से जैव सुरक्षा में अलगाव, यातायात नियंत्रण, स्वच्छता, टीकाकरण, बीमारियों और वायु गुणवत्ता आदि की सीरोलॉजिकल निगरानी शामिल है जो मुर्गीफार्म में और आसपास के रोगजनकों को प्रवेश और नियंत्रित करने में सहायता करेगा।

जैव सुरक्षा के प्रमुख बिंदु
1 शारीरिक सुरक्षा
2 कार्मिक सुरक्षा
3 सामग्री नियंत्रण और जवाबदेही
4 परिवहन सुरक्षा
5 सूचना सुरक्षा
6 कार्यक्रम प्रबंधन

मुर्गीफार्म की बायोसेक्यूरिटी निर्धारित करने के उपाय निम्नलिखित हैं:
 मुर्गीफार्म चारों ओर से बंद होना चाहिए ताकि इंसान एवं जानवर एक फार्म से दूसरे फार्म में न जायें।
 मुर्गीघरों में चूजे डालतें समय यह ध्यान रखना चाहिए कि एक समान उम्र के चूजें एक गाॅव में एक तरफ से ही डाले जाये एवं बेचे जाये। ;आल इन आल आउट)
 मुर्गीघर के अंदर एवं बाहर साफ सफाई रखनी चाहिए एवं फार्म के चारों ओर पाॅच फीट का आंगन बनाना चाहिए।
 मुर्गीघरों के दरवाजे पर चूना डालना चाहिए एवं फार्म कें अंदर जाने से पहले पैर चूने के ऊपर रखने चाहिए तथा फार्म के अंदर के जूते बाहर उपयोग नही करना चाहिए।
 एक बार मुर्गा बिक जाने के बाद तुरंत फार्म की साफ सफाई एवं विसंक्रमणीकरण निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत करनी चाहिए एवं दुबारा चूजा डालनें से पहले कम से कम 15 दिन तैयार फार्म को खाली रखना चाहिए ।
 ब्रॅायलर फार्म के आसपास देसी मुर्गी नहीं पालनी चाहिए क्योंकि देसी मुर्गी ब्रॅायलर मुर्गी में कई तरह की बीमारियाॅ फैला सकती है।
 फार्म के अंदर जंगली पंक्षी, चूहे, नेंवला या बिल्ली को जाने से रोकने की व्यवस्था होनी चाहिए।
 मरे हुए मुर्गे फार्म से तुरंत हटाना चाहिए एवं फार्म से दूर गड्डें में दबा देना चाहिए ।
 टीकाकरण सही समय पर एवं सावधानीपूर्वक करना चाहिए एवं खाली शीशी, ड्रोपर या तो गडडें में दबा दें या फिर जला दें ताकि बीमारियां न फैले क्यांेकि टीके में जीवित या मृत, बीमारी उत्पन्न करने वाले कीटाणु होते हैं।
 चूंकि बुरादा सभी बीमारियों का भंडार हैं अतः मुर्गी उठने के तुरंत बाद बुरादा फार्म से दूर (कम से कम 100मीटर) गड्डे में दबा देना चाहिए।

  • साफ सफाई एवं विसंक्र्रमणीकरण - मुर्गीघर की साफ सफाई में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
  • मुर्गिघर से मुर्गी बिकने के तुरंत बाद सबसे पहले दाना वापिस ले लेना चाहिए।
  • फार्म  के सभी बर्तनों, पर्दो एवं चिकगार्ड को फार्म के अंदर ही झांडू से अच्छी तरह साफ कर लेना चाहिए ताकि की गंदगी बाहर न आयें ।
  • इसके बाद फार्म से सारा सामान बाहर निकाल लेना चाहिए एवं बुरादा को इक्टठा कर उस पर दवाई का छिडकाव करना चाहिये एवं बोरी में भर कर फार्म से कम से कम 100 मीटर दूर एक गड्डे में दबा देना चाहिए ध्यान रहें कि बुरादा रास्ते में न फैले।

इसके बाद सींक वाली झांडू से फार्म की छत, जाली, फर्श, दीवारों एवं पाइपों को अच्छी तरह साफ कर ले एवं सादा पानी से पूरा मुर्गीघर अच्छी तरह धो ले।
इसके बाद पूरे मुर्गीघर को निरमा (डिटरजेन्ट) पानी से अच्छी तरह धों ले ताकि बची हुई गंदगी भी निकल जायें क्योंकि डिटरजेन्ट प्रष्ठ तनाव कम कर गंदगी बाहर निकालने में मदद करता हैं।
इसके बाद फिर साफ पानी से फार्म को धोयें ताकि निरमा पानी फार्म से पूरी तरह निकल जायें ।
इसके बाद मुर्गीघर को एक रात के लिए यूनीवर्सल बर्न क्लीनर (25मि.ली. प्रति 100 लीटर पानी में) से फर्श को डुबोकर छोंड दें एवं दूसरे दिन इसे निकालकर पुनः साफ पानी से धोंए ।
इसके साथ ही मुर्गीघर के सभी बर्तन, पर्दे, रस्सी एवं चिक गार्ड को भी निरमा पानी से अच्छी तरह धो लेना चाहिए एवं साफ पानी से धोकर 12 घंटें के लिए यूनीवर्सल बर्न क्लीनर में डुबों कर रख देना चाहिए एवं दूसरे दिन साफ पानी से धोकर, धूप में सुखाकर कर फार्म में रख देना चाहिए ।
इसके बाद फार्म को फ्लेमगन की सहायता से अच्छी तरह जला दें एवं ध्यान रखें कि जलाते समय फार्म के अंदर कोई भी ऐसा सामान न हो जो आग पकडता हो ।
इसके बाद फार्म की पुताई करते है। जिसके लिए निम्नलिखित सामग्री का उपयोंग करते हैं।

1.चूना 2 कि. ग्रा. प्रति 100 वर्ग फीट के लिए

2. कैरोसीन 10 मि. ली. प्रति लीटर पानी में
3. काॅपर सल्फेट 30 ग्राम प्रति लीटर पानी में
4. पानी 3 लीटर लगभग प्रति 100 वर्ग फीट के लिए

बायोसेक्यूरिटी का महत्व

बायोसेक्यूरिटी बीमारियों के रोकथाम की सबसे प्रभावशाली प्रक्रिया हैं । क्योकि बीमारियों का उपचार मुर्गीपालन में कठिन एवं महॅंगा हैं । अतः बायोसेक्यूरिटी के द्वारा मुर्गी उत्पादक को आर्थिक नुकसान से काफी सीमा तक बचाया जा सकता हैं क्योकि यदि फार्म में संक्रामक बीमारियां नही होगी तो मुर्गी का बजन जल्दी आयेंगा एफ. सी. आर. कम होगा एवं मृत्युदर बहुत कम रहेगी तथा बीमारी पर होनेवाला खर्चा बचेगा इस प्रकार मुर्गीपालक को सभी प्रकार से फायदा होगा । रोकथाम उपचार से हमेंशा बेहतर है।

अक्षय कुमार1विजय कुमार जैन2 आशा कुमारी वर्मा3
1मादा  एवं प्रसूति रोग विज्ञानं विभाग दुवासू मथुरा
2 कुक्कुट प्रबंधन सलाहकार शहडोल
3 पशु चिकित्सा जन स्वास्थ्य विभागए आईवीआरआईए इज्जतनगरए बरेली

उत्तर प्रदेश 
अनुरूपी लेखक:अक्षय कुमार akshay.rajawat@gmail.com

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