Pashu Sandesh, 19th August 2020
आशुतोष बसेडा, अवनीश कुमार सिंह, जीतेन्द्र अग्रवाल, अतुल सक्सेना
पशुपालन हमारे देश की अर्थव्यवस्था एवं पशुपालकों की समृद्धि व खुशहाली मे अहम भूमिका रखता है। पशुपालन के व्यवसाय से अधिक से अधिक धन कमाने के लिए पशुओं के रहन सहन, खानपान के साथ ही उनमे होने वाली बीमारियों/समस्यों की जानकारी होना भी नितांत आवश्यक हैं। इन जानकारियों के आभाव एवं उपचार मे विलम्ब होने से काफी नुकसान उठाना पड़ सकता हैं, पशुओ के गर्भाशय में अंटा (टोर्सन) एक ऐसी ही समस्या है, जिसकी उचित जानकारी होने तथा तात्कालिक उपचार होने से इससे होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।
पशुओं के गर्भाशय में अंटा की समस्या
गर्भित पशु के गर्भाशय का अपनी लम्बवत धुरी मे घूम जाने को गर्भाशय में अंटा लगना कहते है। गर्भाशय में अंटा की समस्या प्रसव के निकट समय या कभी-कभी गर्भावस्था के बीच मे भी देखने को मिलती है। सामान्यता गर्भाशय मे अंटा की समस्या कठिन प्रसव की समस्या को जन्म देती है। गर्भाशय मे अंटा की समस्या समस्या गायों की तुलना मे भैसों मे ज्यादा देखने को मिलती है, क्योकि भैस का शरीर गाय की तुलना मे बड़ा होता है, जिसके कारण गर्भाशय को घूमने के लिए ज्यादा जगह मिल जाती है साथ ही भैस की तालाब आदि मे लोटने की आदत होना आदि प्रमुख कारण है। बच्चे की गर्भाशय मे ही मृत्यु होने की संभावना रहती है, क्योकि गर्भाशय मे मुड़ाव के कारण बच्चे मे माँ से जाने वाले खून के संचार मे रुकावट आ जाती है। गर्भाशय के अधिक समय तक मुड़े रहने पर और ध्यान न देने की स्थिति पर मुड़ा हुआ गर्भाशय आसपास के अंगो से चिपक जाता है, जोकि माँ की प्रजनन क्षमता को खत्म कर देता है। इसीलिए पशुपालको को इस समस्या के लक्षण और इसके रोकथाम के तरीको के बारे मे अवगत कराना जरूरी है।
गर्भाशय में अंटा लगने के कारण
पशुओ मे द्विशृंगी (दो हॉर्न) गर्भाशय होता है तथा गर्भावस्था के समय मे गर्भाशय के एक ही हॉर्न मे बच्चा रहता है जिससे कि गर्भाशय का एक हॉर्न दूसरे हॉर्न की अपेक्षा भारी हो जाता है। जिस वजह से गर्भाशय अस्थिर अवस्था मे रहता है। बच्चे का भार ज्यादा होना, बच्चे का गर्भाशय मे ज्यादा हिलना डुलना, गर्भाशय मे पानी कम होना, दूसरे पशु का अचानक धक्का मारना, गर्भाशय की परत का सिथिल पड़ना, पशु का प्रसव के समय बार बार उठना बैठना, पशु को गर्भावस्था कि स्थिति मे ट्रांसपोर्ट करने पर, पशु के बार-बार उठने बैठने से और पशु के अचानक गिरने आदि घटनाए पशु मे गर्भाशय में अंटा लगने की समस्या को प्रेरित करती है।
गर्भाशय में अंटे के प्रकार
गर्भाशय के घूमने की दिशा के आधार पर अंटा दो प्रकार का होता है-
दायी दिशा (साइड) का अंटा गर्भाशय का घड़ी के चलने की दिशा मे मुड़ने को इंगित करता है।
बायी दिशा (साइड) का अंटा गर्भाशय का घड़ी के चलने की विपरीत दिशा मे मुड़ने को इंगित करता है।
पशु के गर्भाशय का बाई तरफ या दायी तरफ को मुड़ना पशु के पीछे वाले तरफ से देखने पर निर्धारित करते है।
गर्भाशय के भाग (जगह) के घूमने के आधार पर अंटा दो प्रकार का होता है-
प्री सर्विकल अंटा गर्भाशय का गर्भाशय ग्रीवा के अगले भाग से घूमने को इंगित करता है।
पोस्ट सर्विकल अंटा गर्भाशय का गर्भाशय ग्रीवा के पिछले भाग से (योनिमार्ग वाला भाग) से घूमने को इंगित करता है।
गर्भाशय की ऐठन (डिग्री) की स्थिति के आधार पर अंटे के प्रकार-
इस आधार पर अंटा 900, 1800, 2700 या 3600 का हो सकता है।
गर्भाशय में अंटा लगने का पता लगाना
प्रसव के समय बार-बार ज़ोर लगाने पर भी बच्चा गर्भ से बाहर नहीं निकले या पशु के बार-बार उठने बैठने और बैचेन रहने के साथ पैरो को पेट की तरफ मारता है तो पशु को गर्भाशय के अंटा के लिए संदिग्ध किया जा सकता है।
गर्भाशय के अंटा को पता करने के लिए अंटा की दिशा, जगह और डिग्री का पता होना बहुत जरूरी है। दुधारू पशुओं में सामान्यता दायी दिशा (साइड) का अंटा, पोस्ट सर्विकल अंटा और 1800 की ऐठन वाला अंटा ज्यादा देखने को मिलता है।
गर्भाशय में अंटा का पता लगाने के लिए हाथों में पूरे बाजू के दस्तानें पहनकर तथा पैराफिन लगाकर योनिमार्ग व गुदाद्वार से गर्भाशय की जाँच करना चाहिए।
योनिमार्ग के मुड़े होने की स्थिति मे हाथ भी उसी तरफ को मूड जाएगा जिस तरफ की ऐठन होगी दाए तरफ की ऐठन मे हाथ दायी तरफ और बाए तरफ की ऐठन मे हाथ बाई तरफ को घूम जाएगा। इसी तरह डिग्री का पता करने के लिए यदि हाथ गर्भाशय ग्रीवा तक न पहुचे तो इसे 1800 से ज्यादा का अंटा कहते है और 1800 और उससे से कम के अंटे मे हाथ घूमने के बाद गर्भाशय ग्रीवा खुली होने पर बच्चा भी आसानी से महसूस किया जा सकता है।
प्री सर्विकल अंटे का पता लगाने के लिए मादा पशु के गर्भाशय की जाँच उसके गुदाद्वार से करनी चाहिए। इस स्थिति मे गर्भाशय को स्थिर रखने वाले बंधन खीच जाते है। दायी तरफ के अंटे होने पर बाई तरफ का बंधन, दायी तरफ को खीच जाता है और बाई तरफ का अंटे मे दायी तरफ का बंधन बाई तरफ को खीच जाता है।
पशुओं के गर्भाशय में अंटे का उपचार
गर्भाशय के अंटे का पता करने के बाद पशु की स्थिति को ध्यान मे रखना चाहिए। टोक्सिमिया और सेप्टिसिमिया के लक्षण होने पर पशु को पहले ड्रीप लगानी चाहिए। पशु को सहायक उपचार के बाद गिराना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि जिस तरफ का अंटा हो पशु की वही साइड जमीन की तरफ रखें। आगे वाले पैरों को एक साथ और पीछे वाले पैरों को एक साथ अलग-अलग दो लंबी रस्सियों से बांध कर, पशु के ऊपर पटरा (फ्लेंक) रखकर उस पर एक आदमी को चड़ाकर पशु को उसी तरफ को तेजी से रोल करते है जिस तरफ की ऐठन है। जिससे की पशु का शरीर गर्भाशय के मुक़ाबले तेजी से घूम जाय। कई बार अंटा खुलते ही बहुत सारा पानी बाहर आ जाता है, यह भी अंटे के खुलने की निशानी है। यह प्रक्रिया 3 बार अंटे के न खुलने की स्थिति मे पशु को और रोल न करवाए। बार-बार रोल कराने से पशु की जान के लिए भी खतरा बन जाता है। पशु का उपचार पास के पशु चिकित्सालय में चिकित्सक से ही करवाए।
पशुपालकों के लिए संदेश
पशुपालक को गर्भाशय का अंटा होने के कारणो को ध्यान मे रखने की आवश्कता है। पशु को गर्भावस्था की स्थिति मे बिना जरूरी समस्या के ट्रांसपोर्ट करने से बचे। पशु के रहने वाले स्थान को फिसलन वाला न रखें, जिससे की पशु गिरने से बच सके। भैस को गर्भावस्था के अंतिम महिनों मे पानी और कीचड़ मे न जाने दे। यदि प्रसव के समय पर पशु के बार-बार ज़ोर लगाने पर भी बच्चा गर्भ से बाहर नहीं निकलता है और पशु बार-बार उठना बैठना करता है और बैचेन रहता है तो इस स्थिति मे पशु को बिना देरी किए हुए पशुचिकित्सक के पास ले जाए।
आशुतोष बसेडा, अवनीश कुमार सिंह, जीतेन्द्र अग्रवाल, अतुल सक्सेना
मादा पशु प्रजनन रोग विभाग, पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय, दुवासु, मथुरा