कार्बेट से राजाजी टाइगर रिजर्व में पाँच बाघों का सफल स्थानांतरण

पशु संदेश, 1 मई 2025 

बृहस्पतिवार की सुबह करीब चार बजे राजाजी टाइगर रिजर्व की मोतीचूर रेंज में पांचवें बाघ के पहुँचने के साथ ही “कॉर्बेट टाइगर रिजर्व” से पाँच बाघों को  “राजाजी टाइगर रिजर्व”  में शिफ्ट करने का करीब पांच वर्ष से चल रहा बाघ ट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट पूरा हो गया है।

इस परियोजना का उद्देश्य राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की संख्या बढ़ाना है। स्थानांतरित किए गए बाघों में प्रजनन के लिए योग्य दो नर और तीन मादा बाघ शामिल हैं यहट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट उत्तराखंड वन विभाग,  राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए), वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII)  और केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन औरजलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC)  संयुक्त प्रयसों से संभव हो सका है।  इन बाघों की गतिविधियों पर बाघ विशेषज्ञों की टीम जीपीएस कॉलर और सीसीटीवी कैमरों कीमदद से लगातार नजर रख रही है।

राजाजी नेशनल पार्क के पश्चिमी क्षेत्र में बाघों की संख्या में भारी गिरावट के बाद 2020 में 'बाघ पुनर्स्थापना परियोजना' शुरू की गई थी। इस परियोजना का उद्देश्य कॉर्बेट टाइगररिजर्व से स्वस्थ बाघों को राजाजी नेशनल पार्क के पश्चिमी भाग में स्थानांतरित करना था। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व देश में बाघों के सबसे अधिक घनत्व वाले स्थानों में से एक है, जिसके कारण रिजर्व से बाघों को दूसरे क्षेत्रों में भेजना संभव हो पाया है। 2022 की अखिल भारतीय बाघ गणना के अनुसार, उत्तराखंड में कुल 560 बाघ हैं, जिनमें से 260 सेज्यादा बाघ अकेले कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में मौजूद हैं|

प्रोजेक्ट की टाइम लाइन
राजाजी टाइगर रिजर्व में बाघों का कुनबा बढ़ाने के लिए बाघ शिफ्टिंग योजना वर्ष 2016 में बनाई गई थी। वर्ष 2018 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण से इसे मंजूरी मिली।24 दिसम्बर 2020 को पहले बाघ को मोतीचूर में शिफ्ट किया गया था। इसके बाद नौ जनवरी 2021 को एक बाघिन, 20 मई 2023 को दूसरी बाघिन, 16 मार्च 2024 कोतीसरी बाघिन और अब एक मई 2025 को एक बाघ को यहां शिफ्ट किया गया। जिसके चलते अब राजाजी में शिफ्ट किये गये बाघों की कुल संख्या पांच हो गई है। जिसमें दोबाघ व तीन बाघिन शामिल है। खास बात यह है कि एक बाघिन ने गत वर्ष चार शावकों को जन्म भी दिया है।

उत्तराखंड के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन डॉ. आर.के. मिश्रा ने कहा, "यह स्थानांतरण बाघ संरक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। हमें विश्वास है कि इससे राजाजी कापारिस्थितिक तंत्र सशक्त होगा। वन्यजीव विशेषज्ञों ने इस पहल की सराहना की है और इसे भविष्य में अन्य अभ्यारण्यों के पुनर्वास मॉडल के रूप में देखा जा रहा है।