सूक्ष्म पोषक तत्व एवं पशु जनस्वास्थ्य :एक आधारभूत आवश्यकता

पशु संदेश,27 December 2018

डॉ.पवन कुमार मित्तल,डॉ. गोविन्द सहाय गौत्तम,डॉ बरखा गुप्ता,डॉ विजय शर्मा,डॉ देशराज बिलौची

वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय कृषि परिदृश्य में सूक्ष्म पोषक तत्वों की महत्वत्ता परिलक्षित हुई है। पूरे विश्व में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमीं को पूरा करने के लिए एक त्रिस्तरीय समग्र योजना का क्रियान्वयन किया गया है। जिससे मृदा, पशुओं एवं मनुष्यों में सूक्ष्म तत्वों की कमीं को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। भारत में हरित क्रांति के दौरान विभिन्न रसायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग किया गया,जिससे मृदा में कुछ विशेष तत्वों की कमीं होती गयी। इस कारण पशु विभिन्न रोगों से प्रभावित होने लगे, परिणामस्वरूप उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पडता गया। इसके साथ ही मनुष्यों में भी विभिन्न पोषक तत्वों की कमीं होने से विभिन्न प्रकार के रोगों का उद्गम हुआ।

पौधों के लिए जिंक, लोहा,मैगनीज,बोरॉन,कॉपर,मॉलिब्डेनम,क्लोराइड एवं निकिल आवश्यक प्रमुख सूक्ष्म तत्व हैं। पशुओं में इनके अतिरिक्त कोबाल्ट,आयोडीन एवं सेलेनियम भी अत्यन्त आवश्यक है। 

सूक्ष्म पोषक तत्व दुग्ध उत्पादन एवं पशुओं की प्रजनन क्षमता बढाने के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सूक्ष्म पोषक तत्व पशु शरीर में कुल भार का 9 प्रतिशत होते है। पशु शरीर में लगभग 40 प्रकार के खनिज तत्व विद्यमान होते है। ये सभी खनिज तत्व पशुओं के लिए आवश्यक नहीं होते क्योंकि सभी खनिज तत्व उपापचयी क्रियाओं में भाग नहीं लेते।

भारतीय मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की स्थितिः

हरित क्रांति के बाद संकर बीजों के प्रयोग के कारण अनाज उत्पादन में बहुत वृद्धि हुई,लेकिन इससे मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमीं होती गई। भारत में लगभग सभी राज्यों में जिंक की बहुत कमी पाई गई है। इसके अलावा कॉपर,लोहा,मैगनीज एवं सैलेनियम की बहुत कमी है। भारत के तराई राज्यों की मिट्टी में आयोडीन की बहुत कमी पाई जाती है।
राजस्थान प्रदेश की मृदा में जिंक,कॉपर,लोहा,बोरान एवं मैगनीज की उपलब्धता क्रमश: 2.07%, 1.64%, 7.5 – 8.5%, 3.03% एवं 6.1% है। यह कमी मृदा में ही नहीं बल्कि उससे पैदा होने वाले उत्पाद में भी विद्यमान होती है। ऐसे चारे एवं अनाज के सेवन से पशुओं में इन सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। जिससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोगों की संभावना बढ जाती है। जिसके फलस्वरूप पशुओं की उत्पादकता तथा प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है।

जिंकः

भारत में आधे से अधिक कृषि योग्य भूमि में जिंक की कमी पाई जाती है। जिंक 300 से अधिक एन्जाइमों का प्रमुख अवयव है,जो विभिन्न शरीर क्रियाओं एवं जैव रासायनिक क्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। जिंक विभिन्न नर व मादा प्रजनन अंगों के विकास एवं विभिन्न प्रजनन संबंधित हार्मोनों के स्त्रवण के लिए आवश्यक है। इसकी कमी से पशु समय पर ताव में नहीं आते और यदि आते भी है तो गर्भ धारण नहीं करते जिससे पशुपालक को आर्थिक हानि होती है। नर पशुओं के सीमन की गुणवत्ता में भी कमी आने से प्रजनन संबंधित क्षमता पर विपरीत प्रभाव पडता है। प्रजनन संबंधित समस्याओं के अलावा जिंक की कमी से पैराकेरोटासिस होने की संभावना बढ जाती है। जिंक की कमी से रक्ताल्पता ;एनीमिया भी हो जाती है। मनुष्यों को जिंक प्रमुखता से अनाजों,दालों एवं सब्जियों के स्त्रोत द्वारा मिलता है। लेकिन इनमें जिंक की आनुवांशिक रूप से कमी पाई जाती है। मनुष्यों में जिंक की कमी से बौनापन,जननांगों का अल्प विकास,शरीर में प्रतिरक्षा की कमी,शारीरिक विकास में कमीं, रक्ताल्पता एवं अन्य समस्या पैदा हो जाती है तथा पशुओं में जिंक की कमी से शरीर की वृद्धि में रूकावटए आहार में अरूचि,बालों की हानि,त्वचा संबंधित रोगों के लक्षण पैरों में,गर्दन, सिर एवं नासा छिद्र के चारों ओर पाये जाते है तथा नर पशुओं में जिंक की कमी से वृषणों का विकास एवं शुक्राणुओं का विकास प्रभावित होता है तथा मादा पशुओं में मद चक्र एवं गर्भधारण की दर कम हो जाती है।

आयरनः

भारत की 12 से 15 प्रतिशत मृदा में लोहे की कमी पाई जाती है और इसके कारण इन क्षेत्रों में उगाये गये हरे चारे एवं फसलों में भी लोहे की कमी पाई जाती है। लोहे की कमी से पशुओं में एनीमिया के अलावा प्रजनन संबंधी समस्याऐं होती है जिससे उत्पादकता पर बहुत अधिक प्रभाव पडता है। सबसे बडी समस्या यह है कि मिट्टी में प्रचुर मात्रा में होने के बावजूद यह फलोंए अनाजों एवं दालों में न जाकर केवल तने एवं पत्ते तक सीमित रह जाता है। यदि पशु पोषण में हरी घास एवं हरा चारा न दिया जाये तो उनमें लोहे की कमीं होने की संभावना बढ जाती है। मनुष्यों में लोहे की कमी की संभावना ज्यादा होती है क्योंकि उनका प्रमुख भोजन अनाज एवं दाल है। इसलिए भारत में रक्ताल्पता ;एनीमिया, मनुष्यों एवं बच्चों में एक बहुत बडी समस्या है। पशुओं में आयरन की कमी से प्रतिरक्षा (immunity) में कमी तथा शरीर में परजीवीयों की वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप रक्ताल्पता ;एनीमिया हो जाती है

आयोडीनः

भारत में पहाडी क्षेत्रों में आयोडीन की कमी पायी जाती है। आयोडीन मानसिक विकास के लिए अति आवश्यक है। इसके साथ ही इसकी कमी से थायरोक्सीन नामक हार्मोन की कमी हो जाती है जो उपापचयी जैसी महत्वपूर्ण शारीरिक क्रियाओं के लिए आवश्यक है। पशुओं में आयोडीन की कमी से घैंघा नामक रोग हो जाता है तथा आयोडीन की कमी से बाल रहित, कमजोर तथा मृत नवजात पशु पैदा होते हैं।

कॉपरः

मिट्टी में कॉपर की कमी भी पायी जाती है तथा कॉपर की कमी से पशुओं में बांझपन, डायरिया (स्कॉर) आँखों के चारो ओर बालों में वर्णक में कमी,रक्ताल्पता के साथ ही बालों का टूटनाए बालों का रंग बदलनाए अस्थियों का कमजोर होनाए प्रजनन क्षमता में कमी आदि अन्य समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। पशुओं में कॉपर की अत्यधिक कमी से हृदयाघात होने के कारण अकस्मात मृत्यु भी हो सकती है। भेडों में कॉपर की कमी से steely wool (ऊन में लहर का समाप्त होना) नामक रोग हो जाता है तथा तंत्रिका तंत्र से संबंधित रोग (sway Back) जाते है।

कोबाल्टः

जुगाली करने वाले पशुओं में कोबाल्ट का बहुत महत्व है। पशुओं कों राशन के माध्यम से विटामिन बी 12 अल्प मात्रा में मिलता है क्योंकि चारे एवं अनाजों में विटामिन बी 12 की मात्रा कम पायी जाती है। परन्तु यदि उचित मात्राओं में कोबाल्ट रूमनपंथियों को मिलता रहे तो विटामिन बी 12 देने की आवश्यकता नहीं पडती है। वे स्वयं विटामिन बी 12 अपने रूमेन में बना लेते है। कोबाल्ट की कमीं से रक्ताल्पता ;एनीमिया, भूख में कमी, उदासीनता, खुरदरा बालों का आवरण तथा श्लेष्म झिल्ली का रंग हल्का, वजन में कमी तथा यकृत में फैटी डिजेनेरेशन की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

मैगनीजः

भारत की केवल 5.6 प्रतिशत मृदा में मैगनीज की कमी पाई जाती है। लेकिन जिन राज्यों में गेहूँ एवं चावल की खेती ज्यादा होती है वहां मिट्टी में मैगनीज की कमी की संभावनाएं बढ जाती है। मनुष्य एवं पशुओं में मैगनीज विभिन्न जैव उत्प्रेरक एवं हार्मोनों के संश्लेषण में प्रमुख भूमिका निभाता है। मैगनीज की कमीं से पशुओं में बांझपन,वृद्धि में रूकावट, अस्थियॉ छोटी एवं विकृत तथा नवजात पशुओं में ataxia की समस्या हो सकती है।

सेलेनियमः

सेलेनियम शरीर में बनने वाले ऑक्सीकारक पदार्थों को प्रत्यक्ष एव अप्रत्यक्ष रूप से नष्ट करता है। सेलेनियम ऑक्सीकारक मुक्त मूलक (Free Radicals) को खत्म करने वाले एन्जाइमों का अवयव होता है। साथ ही बांझपन के उपचार में यह महत्वूर्ण भूमिका अदा करता है। पशुओं में इसकी कमीं से विभिन्न रोग उत्पन्न हो जाते है।

किसानों एवं पशुपालकों को सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा को पूरा करने का सुझावः

1.किसानो व पशुपालकों को मृदा परीक्षण कार्ड बनवाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए तथा  क्षेत्र विशेष में जिन पोषक तत्वों की कमी पायी जा रही होए वहां पशु आहार सूक्ष्म तत्वों के मिश्रण सहित दिया जाये।
2. पशुओं के साथ साथ मनुष्यों को भी सूक्ष्म पोषक तत्वों का मिश्रण समय समय पर दिया जाना चाहिये। गर्भवती महिलाओं में आवश्यक रूप से सूक्ष्म पोषक तत्वों का देना अति आवश्यक है। जैसेः. आयरन।
3. किसान मृदा में केवल नाइट्रोजन,फास्फोरस एवं पोटॉश ही नहीं बल्कि जिंक, कॉपर, मैगनीज, कोबाल्ट, सैलेनियम एवं आयरन की वास्तविक मात्रा की भी जॉच कराये।
4. समय समय पर किसानों को मौसमानुसार पशुपोषण वैज्ञानिकों की सलाह लेनी चाहिये।

1 डॉ.पवन कुमार मित्तल, 2 डॉ. गोविन्द सहाय गौत्तम 3 डॉ बरखा गुप्ता 4 डॉ विजय शर्मा 5 डॉ देशराज बिलौची
स्नातकोत्तर पशुचिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान जामडोली जयपुर राजस्थान

1 टीचिंग एसोसिएट 2 सह.आचार्य एवं विभागाध्यक्ष 3 सहायक आचार्य 4 टीचिंग एसोसिएट

5 संकाय सदस्य

 

 

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