मंत्रालय बदलने के बाद अब आ सकतें हैं भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के “अच्छे दिन”

पशु संदेश, 13 अप्रैल 2019

भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड(एडब्ल्यूबीआई) एक सर्वोच्च वैधानिक निकाय है जो देश में पशु कल्याण गतिविधियों के नियंत्रण और उससे संबंधित नियमों के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार है, उसे अब पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत आने वाले शुपालन विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया है। भारत सरकार ने 04 अप्रैल 2019 को इस संबंध में एक अधिसूचना जारी कर दी है ताकि सरकार पशु कल्याण गतिविधियों के बेहतर प्रशासनिक प्रबंधन को और बेहतर बनाया जा सके।

राजपत्र अधिसूचना जारी होने के बाद कई पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने सरकार के इस कदम पर रोना-धोना शुरू कर दिया है। ह्यूमेन सोसाइटी इंटरनेशनल के भारतीय एकांश के निदेशक एन. जयसिम्हा जो पशु कल्याण के दिशा में काम करते हुए भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के एक पूर्व सदस्य सदस्य भी रहे हैं , ने अपने एक जारी बयान में कहा है कि सरकार का यह कदम दुर्भाग्यपूर्ण है और वे अदालत में इस आदेश के विरुद्ध गुहार लगाएंगे।पर्यावरण मंत्रालय से कृषि मंत्रालय में इस विषय के ट्रांसफर से खफा पशु कल्याण कार्यकर्ता ,गौरी मौलेखी जो केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के नेतृत्व वाले पीपुल फॉर एनिमल की ट्रस्टी भी है , वह भी सरकार के इस निर्णय से असहमत हैं। उनकी राय है कि वह विभाग जो आर्थिक दृष्टिकोण से डेयरी, पोल्ट्री और मछली पालन जैसे कार्यों में को बढ़ावा देता है, वह अब पशु कल्याण जैसे संरक्षणवादी विषय को कैसे नियंत्रित करेगा। दोनों पशु कल्याण कार्यकर्ताओं के विरोधाभासी विचार के अनुसार अब पशु कल्याण कार्यक्रम की गतिविधियां निष्क्रिय हो जाएंगी।

जब हम "चैंपियंस ऑफ द एनिमल राइट्स" के राय का विश्लेषण करते हैं और उसके बाद भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के लिए "अच्छे दिन" आने की हमारी "हेडलाइन" विवादपूर्ण परिचर्चा का विषय बन जाती है और सवाल खड़ा होता है कि पशुपालन विभाग में प्रशासनिक नियंत्रण हस्तांतरित होने के बाद क्या सचमुच अच्छे दिन आएँगे ? क्या यह जवाब किसी के पास है जो दशकों से एडब्ल्यूबीआई के कामकाज पर कड़ी निगरानी रख रहा है? पशु कल्याण संस्थाओं के लिए धन आवंटन के मामले में एडब्ल्यूबीआई अभी तक अव्यवस्थित और पूरी तरह से उपेक्षित रही है। यह हमेशा एक कैश डिस्पर्सिंग बॉडी बना रहा जो अक्सर अपने दिन-प्रतिदिन के खर्चों को पूरा करने के लिए भी संघर्ष करता रहा। कई पदाधिकारी मानद हैं और बोर्ड के मनोबल और जनादेश बनाए रखने के लिए संघर्ष करते रहे हैं।

बहुत से लोगों को यह नहीं पता होगा कि बोर्ड शुरूआती तौर पर वर्ष 1962 से 1990 तक कृषि मंत्रालय , पर्यावरण मंत्रालय में 1990 से 1998 तक फिर , फिर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में वर्ष 1998 से 2001 तक और संस्कृति मंत्रालय में वर्ष 2001 से 2002 तक, सांख्यिकी मंत्रालय में वर्ष 2002 के मध्य और फिर से पर्यावरण और वन मंत्रालय 2002 से 04 अप्रैल 2019 रहा है। इस दौरान भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड कई संवेदनशील मुद्दों पर सरकार के साथ खुद को प्रतिद्वंदी के रूप में बना रहा जिसका नतीजा है आज यह बोर्ड कृषि मंत्रालय पुनः वापस आकर जैसे अपने घर फिर वापस आ गया।

अगर संपूर्ण पशु कल्याण मुद्दे पर नजर डाला जाए तो यह प्रतीत होगा कि इस विषय पर उदासीनता और कुप्रबंधन का सबसे ज्यादा असर राष्ट्रीय पशु कल्याण संस्थान (एनआईएडब्लू) बल्लभगढ़, हरियाणा की निरंतर उपेक्षा होती रही है जहां भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड का वर्तमान कार्यालय चलाया जा रहा है। इस संस्थान के स्थापना का निर्णय 16 जनवरी 1999 को बुलाई गई एक स्थायी वित्त समिति की बैठक में लिया गया था। पर्यावरण और वन मंत्रालय ने शैक्षिक सलाहकार इंडिया लिमिटेड (सीआईएल)नामक एक प्रतिष्ठान को एनआईएडब्ल्यू में व्यवस्थित शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को लागू करने का काम सौंपा शुरू शुरू में सौंपा गया था। । एनआईएडब्ल्यू के वेबसाइट जो मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है , वह एनआईएडब्ल्यू में मामलों की पूरी जानकारी बताने के लिए पर्याप्त है।यह ज्ञात होता है कि एनआरडब्ल्यू की स्थापना पशु कल्याण के दिशा में अनुसंधान, शिक्षा और इस विषय को आम आदमी तक पहुंचाकर पशु कल्याण के उद्देश्यों को प्राप्त करना था। किंतु, कुछ नहीं हुआ ,आज सही मायने में पूछिए तो कहां है अनुसंधान ,कहाँ है आधुनिक पशु कल्याण शिक्षा ? क्या प्रशिक्षण में उम्मीदवारों के नामांकन का तंत्र लोगों के मतलब का है ? यह सारी बातें आज एक बहुत बड़ी प्रश्न चिन्ह है। क्या ऐसी हालात में जीव जंतु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 को जन आंदोलन बनाया जा सकता है, क्या संस्थान की गतिविधियां और वहां का वातावरण आज की आवश्यकता के अनुसार एनिमल मैनेजमेंट, बिहेवियर और एथिक्स सहित पशु कल्याण से संबंधित विभिन्न विषयों पर प्रशिक्षण और शिक्षा प्रदान करने के लिए जो उद्देश्य निर्धारित किया गया था वह पूरा हुआ। संस्थान की स्थापना तकरीबन आठ एकड़ परिक्षेत्र में फैले परिसर की वर्तमान हालात निहायत जर्जर है।

पर्यावरण मंत्रालय से आज भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड का प्रशासनिक नियंत्रण स्थानांतरित करने के साथ कृषि मंत्रालय में चला गया ताकि पशु कल्याण के बेहतर नियंत्रण और प्रबंधन के लिए मार्ग प्रशस्त किया जा सके। यह सर्वविदित है कि कृषि मंत्रालय एक महत्वपूर्ण मंत्रालय होने के नाते इसके सभी विभागों के लिए बेहतर धन का प्रावधान होता है। इसके नियंत्रण में आईसीएआर और आईवीआरआई जैसे संस्थान आते हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर के जाने- माने वैज्ञानिक और अनुभवी प्रशासकों द्वारा प्रबंधन और संचालन किया जाता हैं। ऐसे में भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के पास इन प्रख्यात संस्थानों के तेजतर्रार वैज्ञानिकों के काम करने के तरीके और पैनी दृष्टि का लाभ मिल सकता है। देखा जाए तो पहले से ही देश भर के अधिकांश राज्यों में काम करने वाले राज्य स्तरीय पशु कल्याण बोर्ड नहीं के बराबर हैं। इतना ही नहीं पशु कल्याण का विषय राज्य स्तर पर पशुपालन विभाग ही संभालता है। इस प्रशासनिक परिवर्तन के बाद,भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड अब राज्य पशुपालन विभागों के बेहतर समन्वय के माध्यम से पशु कल्याण की चुनौतियों का सामना करने के लिए राज्य स्तरीय सभी बोर्ड अपना बेहतर प्रदर्शन कर सकती है।

अब यहां कहना उचित होगा कि अगर रेगुलेटरी बॉडी के रूप में कृषि मंत्रालय देश देश भर के पशु चिकित्सकों के माध्यम से पशु कल्याण संस्थानों , राज्य पशु चिकित्सा सेवाओं ,गौशालाओं, पशु चिकित्सा अस्पतालों, पशु आश्रयों और बूचड़खानों में पशुओं के स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार हैं। पशु चिकित्सकों से प्राप्त होने वाली सेवाओं की अनुपस्थिति में पशु कल्याण का कार्य बाधित हो जाएगा अर्थात, पशु चिकित्सा अधिकारी और राज्य पशुपालन विभाग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में पशु कल्याण के लिए जिम्मेदार हैं। अब ऐसी हालत में क्यों नहीं एडब्ल्यूबीआई पशुपालन विभाग के अधीन हो ? पशु चिकित्सक एक ऐसा व्यक्ति है जो पशु कल्याण को जन आंदोलन बना सकता है क्योंकि वह है उसकी पढ़ाई की है और उसने पशुओं को पालने की पूरी विद्या सीखी है। एक पशु चिकित्सक किसी भी पशु की बात बेहतर ढंग से समझ सकता है। इसमें दो राय नहीं की एक पशु प्रेमी बोर्ड का सदस्य होकर अपने विचार रख सकता है। किंतु पशुओं के बेहतरीन साथी के रूप में पशु चिकित्सक की भूमिका अग्रणी है और जरूरत भी।

नए मंत्रालय के तहत भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड का स्थानांतरण का मतलब किसी कमजोरी से नहीं है बल्कि पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशु चिकित्सक की बेहतरीन सेवा प्राप्त करने से है। ऐसी हालात में राष्ट्रीय पशु कल्याण संस्थान की बहाली के मामले पर भी विचार किया जाना चाहिए ताकि पशु कल्याण के दिशा में काम कर रहे किसी भी प्रतिष्ठान को पुनर्गठित एवं
पुनर्जीवित कर उन्हें फिर से रिचार्ज किया जाना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो सचमुच सही मायने में इस देश के जानवरों के लिए "अच्छे दिन" अवश्य आएंगे।