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उत्तर प्रदेश के किसानों की टीम "रूरल हब"…
पशु संदेश , 14 जुलाई 2017
डाॅ मोहित गौतम , डाॅ ज्योत्सना शक्करपुडे, डाॅ अर्चना जैन, ,डाॅ मोहर सिंह कुशवाह ,डाॅ मेहदी अली खान
बकरी पालन एक ऐसा व्यापार है कि जिसमें थोड़ी सी लागत लाकर अधिक से अधिक से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही साथ बकरी पालन में जोखिम दूसरे व्यापार की तुलना में काफी कम होती है। आज के समय में लगभग पूरे भारत में बकरी के मांस की मांग बढ़ती जा रही है,तथा बकरी पालन का व्यापार लागभग 9% की दर से बढ़ रहा है। बकरी एक ऐसा जानवर है जो खराब से खराब अैार कम से कम चारे पर अपना निर्वाह कर लेती है। बकरी हरी घास , कंटीली झाड़ियां तथा पेड़ पौधों की पत्तियों से अपना निर्वाह कर लेती है। यह चरना बहुत पसंद करती है। ये कंटीली झड़िया ( बेर ,करोंदा आदि ) ,पेड़ों की पत्तियां (पीपल ,नीम ,आम, बरगद आदि ) आदि को खाना बहुत पसंद करती है।
बकरी का स्वाभाव बहुत शांत होता हेै। तथा ज्यादा दौेड़ भाग नहीं करती है और इन्हें एक जगह पर पालतू होने के कारण आसानी से पाला जा सकता है। बकरी के रख रखाव में बहुत आसानी होती है। तथा इन्हें किसी भी परिस्थति में आसानी से पाला जा सकता है। और पालने में आने वाला खर्च भी बहुत कम होता है। बकरी पालने में कोई भी सामाजिक धार्मिक बाधा नहीं है इसलिए बकरी पालन करना आसान है। बकरी बच्चा जनने के लिए जल्दी तैयार हो जाती है जिससें बहुत ही कम समय में बच्चों को प्राप्त किया जा सकता है। बकरी लगभग एक साल से लेकर 12 महिनें में बड़ी और बच्चा देने योग्य हो जाती है। और हर साल एक से पांच बच्चे दे सकती है।
बकरी की औसतम उम्र लगभग 12 से 15 साल तक होती है। बकरी के दूध में अत्यधिक मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है जो कि बहुत अधिक फायदेमन्द है। बकरी का दूध अनेक रोगों को दूर करने के लिए लाभदायक है। उपयुक्त विषेषताओं को ध्यान में रखते हुऐ बकरी पालन का व्यवसाय प्रारम्भ किया जा सकता है।