गर्भावस्था एवं उसके पश्चात पशुओ की देखभाल

पशु संदेश, 28th November 2018

सोनम भारव्दाज, संदीप व्दिवेदी

अधिक दूध उत्पादन के लिए यह आवश्यक है कि पशुओं का स्वास्थ अच्छा रहे और उनके ब्याने के समय में उनको किसी प्रकार की तकलीफ न हो। अगर पशु के बच्चा देने से पहले और बच्चा देने के बाद देखभाल में थोड़ी-सी भी लापरवाही हो जाती है तो उसके बच्चे व दूध की पैदावार पर बुरा असर पड़ता हैं। पशुओं की देख-रेख व खान-पान का काम अधिकतर महिलाएँ करती हैं। अतः यह आवश्यक है कि महिलाओं को भी इस बात की जानकारी दी जाए कि पशुओं की प्रसूतिकाल में देख-रेख कैसे करें।

ब्यांने से पहले:-

इन दिनों भोजन ऐसा दें जो हल्का व जल्दी पचने वाला हो। भोजन की मात्रा एकदम से न बढ़ाएं। प्रसूति से लगभग दो महीने पहले से ही उसको संतुलित आहार देना शुरू कर दें जिससे कि माता व बच्चे दोनों को उचित मात्रा में प्रोटीन व विटामिन प्राप्त होते रहें।
पशु के रहने की जगह ऐसी हो जहाँ ताजी हवा हर समय मिलती रहे। पशु घर में सफाई व रोशनी की पूरी व्यवस्था हो। गाय या भैंस को ज्यादा तेज न चलाएँ और न ही दौड़ाएँ। शरीर पर भारी चोट लगने पर तुरंत ही पास के अस्पताल में दिखाएँ।

ब्यांने के समय:- 

प्रसुति से एक या दो सप्ताह पूर्व पशु को दूसरे पशुओं से दूर रखें। पशुशाला का फर्श साफ हो व उस पर साफ मिट्टी, गेहूँ या चावल का भूसा बिछा दें।
प्रसूति के समय पशु के समीप ज्यादा आदमियों को इकट्ठा न होंने दें व पशु को तंग भी नहीं करे ।
ब्यांते समय अगर पशु खड़ा है तो यह ध्यान रहे कि बच्चा जमीन पर जोर से न गिरें। बच्चा जब योनि से बाहर आने लगे तो हाथों द्वारा बाहर निकालने में सहायता करें।
प्रसव के समय यदि पशु को कुछ तकलीफ होने लगे, बच्चा बाहर न आए या बच्चे का कुछ भाग बाहर आ जाए और पूरा बच्चा बाहर न निकले तो तुरंत ही डाक्टर की सहायता लें अन्यथा पशु व बच्चे दोनों की ही मृत्यु हो सकती है।
बच्चा पैदा होने के बाद उसके पास की गंदगी को तुरंत हटा दें अन्यथा पशु जेर आदि को खा जाता है जो हानिकारक है।

ब्यांने के पश्चात्:-

  • ब्याने के बाद, पशु को अपने बच्चे को चाटने दें और दूध पिलाने दें।
  • पशु के पास ज्यादा शोर न होने दें।
  • पशु को जो भूसा खिलाएँ वह अच्छी किस्म का हो तथा जो भी अनाज खिलाएं। वह हल्का व शीघ्र पचने वाला हो। इसके लिए पशु को भूसी व जई खिलाएँ।
  • ब्याने के बाद पहले तीन हफ्तों तक पशु को दिए जाने वाले अनाज की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाएँ।

पशु को दुग्ध जवर की बीमारी के लिए देखते रहें। यह बीमारी खून में चूने या क्षार की मात्रा कम होने के कारण होती हैं। इस बीमारी में पशु गर्दन मोड़कर जमीन पर लेटा रहता है। यह बीमारी अधिक दूध देने वाले पशु में ज्यादा होती है। इस बीमारी में पशु से कम दूध निकालें तथा निकाला हुआ दूध पशु को पिला दें एवं नजदीकी पशु-चिकित्सालय में जाकर पशु का इलाज करवाएँ।

यदि पशु की ल्योटी में ज्यादा सूजन हो तो इसके लिए थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बार-बार दूध निकालें व ल्योटी की हल्की-हल्की मालिश करें।

ब्याने के बाद कुछ दिनों तक पशु को हल्की व पर्याप्त मात्रा में व्यायम हर रोज करवाएँ।

कुछ पशु नाल नहीं ड़ालते। यदि ब्याने के 8-12 घंटों तक पशुनाल न गिराए तो पशु का इलाज नजदीकी पशु चिकित्सालय में करवाएँ।

यदि पशु ब्याने के 14-20 दिनों बाद तक भी मैला डालता रहे या इसकी मात्रा ज्यादा हो व इसमें बदबू आती हो या इसमें मवाद हो तो ड़ाॅक्टर से ही इसका इलाज करवाएँ।

यदि ब्याने के बाद पशु की ल्योटी से दूध न निकलें तो यह ल्योटी में दूध न उतरने या दूध न बनने के कारण होता है। दूध का न उतरना, पशु में दर्द, ड़र या भय के कारण होता हैं। इसके लिए पशु को आॅक्सीटोसीन हारमोन की 5-10 यूनिट माँसपेशियों में लगाएँ। यदि ल्योटी में दूध नहीं बनता तो यह या तो हारमोन की कमी हो या थन की बनावट ठीक न हो, तब होता है। ऐसे में पशु का कोई इलाज नहीं हो सकता।

सोनम भारव्दाज1, संदीप व्दिवेदी2
1.सहायक प्राध्यापक ,अपोलो कॉलेज ऑफ वेटरनरी मेडिसिन जयपुर
2.व्याधि विज्ञान विभाग नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय जबलपुर एमपी