दुधारू पशुओं को गर्मी से बचाने के प्रभावशाली उपाय

पशु संदेश, भोपाल। 9 मार्च
अक्सर यह देखने में आता है कि दुधारू पशु अधिक गर्मी सहन नहीं कर पाते और गर्मी से उनकी दूध की उत्पादन क्षमता तथा प्रजनन क्षमता दोनों ही प्रभावित होती है। गर्मी के मौसम में जब तापमान 33 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक हो जाता है, तो इन पशुओं के दुग्ध उत्पादन में औसतन 3 से 10 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है। इसके अलावा इस मौसम में पशुओं की प्रजनन क्षमता और गर्भधारण की दर भी कम हो जाती है। अधिक तापमान के कारण पशु गर्मी (हीट) के लक्षण कम दिखाता है, जिसके परिणामस्वरूप समय पर गर्भाधान नहीं हो पाता। भैसों में यह समस्या और भी अधिक होती है।ताप नियमन एक प्रमुख जैविक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा पशु अपने शरीर का तापमान विभिन्न मौसमों में भी सामान्य बनाए रखते हैं। पशु का शरीर चयापचय क्रिया तथा आसपास के वातावरण से ऊष्मा प्राप्त करता है। जब वातावरण का तापमान पशु के शरीर के तापमान से कम होता है, तब पशु के शरीर से विकिरण द्वारा ऊष्मा निकलती है और वातावरण में मिल जाती है। इसके विपरित जब वातावरण का तापमान पशु के शरीर के तापमान से अधिक होता है तो पशु विकिरण द्वारा वातावरण में अपने शरीर की ऊष्मा नहीं निकाल पाता। अपने शरीर का तापमान सामान्य बनाए रखने के लिए पशु शरीर द्वारा उत्पन्न ऊष्मा को कम करने की कोशिश करता है। इसके लिए पशु चारा खाना कम कर देता है, जिससे चयापचयन क्रिया कम हो जाती है इसके फलस्वरूप पशु की दुग्ध उत्पादन क्षमता घट जाती है। यदि इसके बाद भी पशु अपने शरीर के तापमान को बढऩे से नहीं रोक पाता तो वह तापमान के दबाव (हीट स्ट्रेस) में आ जाता है। दुग्ध काल के शुरू के दिनों में पशु नकारात्मक ऊर्जा (नेगेटिव एनर्जी बैलेंस) में होता है, तब यह दबाव और अधिक होता है।
पशुओं में निम्नलिखित लक्षण तापमान के दबाव को दर्शातें हैं
मुंह खोलकर सांस लेना।
पशु की सक्रियता का कम होना।
शरीर का तापमान बढ़ जाना।
पशु का पानी के आसपास जमा रहना।
पशु के दुग्ध उत्पादन में कमी आना।
गर्मी से पशुओं के बचाव के तरीके
इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि अधिक गर्मी के मौसम में पशुओं को उचित प्रबंध कर, उन्हें गर्मी से बचाया जाए। इसके लिए विभिन्न उपाय हैं, जैसे की पशुओं को सूर्य की सीधी किरणों से बचाना, उन्हें छायादार स्थान पर रखना, दिन में 2 से 3 बार नहलाना, भैसों को तालाब में रखना और गाय व भैसों को मिस्ट या फुव्वारों के नीचे रखना। फव्वारों की अपेक्षा मिस्ट में पानी की खपत कम होती है।
आहार में समुचित प्रोटीन, ऊर्जा खनिज तत्वा तथा विटामिनका समावेश करें। उत्तम गुणवत्ता का हरा चारा दिन में कई बार थोड़ा-थोड़ा कर के देना या पशु को सुबह और शाम चारा देना। चारा डालने के स्थान को रोजाना साफ करना स्वच्छ तथा ठंडा पीने का पानी 24 घंटे पशु को पास उपलब्ध रखना चाहिए।

 

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