आर्थिक तथा पोषण सुरक्षा हेतु प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन

Pashu Sandesh, 17 March 2023

बृजेश कुमार यादव

उ० प्र० प० दीन दयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवं गौ अनुसंधान संस्थान, दुवासु, मथुरा, 281001

brijeshyadav1090@gmail.com, 7037504543   

भारत एक कृषिप्रधान देश है जहाँ लगभग 75% जनसँख्या ग्रामीण क्षेत्रों से सम्बंधित है तथा प्रमुख रूप से कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर है। फल, सब्जियां, अनाज, दुग्ध, मांस तथा अंडा आदि उत्पादन उनकी आय का प्रमुख स्त्रोत हैं। पिछले कुछ वर्षों से हमारा देश पशु उत्पादों में निरंतर वृद्धि कर रहा है। विश्व के कुल दुग्ध उत्पादन में भारत का लगभग 20-22 % योगदान है तथा मांस उत्पादन में लगभग 4-5 % योगदान है जिसके कारण विश्व के कुल पशुपालन उत्पाद में भारत एक अहम भूमिका निर्वाह कर रहा है। 

पशु उत्पाद जैसे दुग्ध, मांस तथा अंडा अत्यधिक पौष्टिक खाद्य पदार्थ हैं जिनसे हमें उच्चतम गुणवत्ता की प्रोटीन, ऊर्जावर्धक वसा तथा शरीर एवं मस्तिष्क के संपूर्ण विकास हेतु आवश्यक खनिज लवण संतुलित मात्रा में प्राप्त होते हैं किन्तु अपने प्राकृतिक रूप में यह उत्पाद सामान्य तापमान पर अत्यधिक तीव्र गति से खराब होने वाले पदार्थ हैं अतः शीघ्र ही इनका उचित प्रसंस्करण करना अति आवश्यक है।

प्रसंस्करण -

प्रसंस्करण का तात्पर्य है किसी भी उत्पाद को मनुष्य तथा पशुओं के उपयोग हेतु विभिन्न प्रौद्योगिकी तकनीकों एवं वैज्ञानिक ज्ञान की सहायता से अपने प्राकृतिक रूप से अधिक उपयोगी रूप में बदलना अथवा एक रूप से किसी अन्य रूप में बदलकर उसकी गुणवत्ता तथा पोषक तत्वों में वृद्धि कर उसका मूल्य संवर्धन करना। प्राचीन काल से खाद्य पदार्थ को सुरक्षित रूप में संरक्षित करने हेतु प्रसंस्करण की घरेलू विधियां प्रचलित हैं जैसे धूप में सुखाना, अचार बनाना, नियंत्रित किण्वन करना आदि किन्तु समय के साथ तकनीकी आधुनिकता में भी वृद्धि हो रही है जिससे प्रसंस्करण की क्रियाओं में भी अनेक प्रकार के परिवर्तन आये हैं, उदाहरण- दुग्ध से अन्य पदार्थ बनाना जैसे संघनित दुग्ध पदार्थ, ऊष्मा तथा अम्ल अवक्षेपित पदार्थ, किण्वित दुग्ध पदार्थ, उच्च वसा युक्त पदार्थ, हिमीकृत पदार्थ आदि। 

वर्तमान परिवेश की अत्यंत व्यस्त जीवनशैली में प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की मांग में दिन प्रतिदिन वृद्धि हो रही है किन्तु हमारे देश में संगठित खाद्य उत्पाद सयंत्रों में केवल 15-20 % उत्पादों का ही प्रसंस्करण संभव हो पा रहा है जबकि विकसित देशों में 90-92% उत्पाद को प्रसंस्कृत करके मूल्य संवर्धन किया जा रहा है जिसके कारण हमें विदेशों से प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों का आयात करना पड़ रहा है।

इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतम सीमान्त पशुपालक हैं जो शीत श्रंखला तथा आधुनिक उपकरणों का खर्च वहन करने में असमर्थ हैं एवं पशु उत्पादों को प्रसंस्करण हेतु संगठित सयंत्रों तक पहुँचाने में असक्षम हैं जिसके कारण वे पशु उत्पादों को प्राकृतिक तथा असंशोधित रूप में ही बेंच देते हैं जिसके फलस्वरूप उन्हें न्यूनतम लाभ ही मिल पाता है। 

इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण हेतु विभिन्न प्रकार की योजनाएं जैसे राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण नीति, प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना आदि आरम्भ की हैं जिनका उद्देश्य कृषकों एवं पशुपालकों को सशक्त बनाकर उनकी आय में वृद्धि करना तथा संसाधनों का आधुनिकरण करके कृषि तथा पशु उत्पादों के नुक्सान को कम करना है। 

प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन की आवश्यकता तथा महत्त्व-

पोषण वृद्धि 

प्रसंस्करण की सहायता से प्राथमिक खाद्य उत्पादों को अत्यधिक उपयोगी, संधारित, पौष्टिक, स्वादिष्ट, तथा दीर्घ काल तक स्थायी रहने योग्य पदार्थों में परिवर्तित कर सकते हैं।

हानिकारक तत्वों से बचाव 

विभिन्न खाद्य पदार्थों जैसे दुग्ध, मांस, समुंद्री, खाद्य पदार्थ आदि में अनेक प्रकार के हानिकारक कीटाणु तथा विषैले तत्वों की उत्पत्ति हो जाती है अतः प्रसंस्करण की सहायता से इन हानिकारक तत्वों को समाप्त कर खाद्य पदार्थों को भौतिक, रासायनिक तथा जैविक रूप से नष्ट होने से बचाया जा सकता है।

रोजगार सृजन 

बदलती जीवनशैली तथा नगरीकरण में वृद्धि के कारण भारत में तत्पर भोज्य हेतु स्वादिष्ट एवं पौष्टिक खाद्य पदार्थों की मांग में भी निरंतर वृद्धि हो रही है अतः खाद्य प्रसंस्करण उद्योग देश की बेरोजगार जनसँख्या के लिए बड़े पैमाने पर बाजार उपलब्ध कराकर रोजगार के अनेक नवीन मार्ग सृजित कर रहा है जिससे लोगों के आर्थिक सशक्तिकरण में वृद्धि हो रही है।

अविरत तथा कुशल आपूर्ति 

भारत में विभिन्न कारणों जैसे यातायात व्यय, भण्डार गृह के अभाव तथा फसल के मूल्यों की अनिश्चितता आदि के कारण प्रतिवर्ष लगभग एक चौथाई कृषि उपज तथा पशु उत्पाद नष्ट हो जाते हैं जिसके निवारण हेतु खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की अत्यंत आवश्यक्ता है जिससे देश में अविरत तथा कुशल आपूर्ति श्रंखला एवं अवसंरचना का विकास होगा एवं इसकी सहायता से न केवल बहुमूल्य उत्पादों को नष्ट होने से बचाया जा सकेगा अपितु कृषक मित्रों को उनकी मेहनत तथा श्रम का उचित मूल्य भी प्राप्त होगा।

महिला सशक्तिकरण -

महिलाओं के लिए भी प्रसंस्करण के क्षेत्र में अपार अवसर हैं। विशेष रूप से यह उद्योग देश के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के लिए लघु एवं कुटीर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की इकाइयों की स्थापना करके उन्हें सूक्ष्म उद्यमियों के रूप में उभारकर सशक्त बनाएगा।

विविधता को बढ़ावा -

भारत में विभिन्न स्थानों पर विभिन्न प्रकार की संस्कृति, जल-वायु तथा खान-पान का समावेश है जिसके कारण हमारा देश फसलों एवं खाद्य पदार्थों की विविधता से परिपूर्ण है अतः प्रसंस्करण के माध्यम से पारम्परिक खाद्य विविधता को उच्च स्तर पर बढ़ावा प्रदान करके उन्हें अधिक गुणवत्तापूर्ण बनाया जा सकता है।

देश की अर्थव्यवस्था में वृद्धि -

भारत में आधुनिक वृद्धि के साथ प्रसंस्कृत भोज्य की मांग में भी निरंतर वृद्धि हो रही है जिसके कारण विदेशों से एक बड़े पैमाने पर प्रसंस्कृत उत्पादों का आयात करना अनिवार्य हो गया है किन्तु यदि देश में संगठित संयंत्रों की आधारभूत संरचना को स्थापित कर खाद्य उत्पादों का प्रसंस्करण सुचारू रूप से किया जाए तो विदेशों से उत्पादों के आयात हेतु लगने वाले यातायात व्यय तथा आयात कर की बचत होगी एवं स्वदेशी प्रसंस्कृत उत्पादों जैसे प्रसंस्कृत फल, सब्जियां, दुग्ध तथा मांस उत्पाद आदि के देश में परिपूर्ण भण्डार तथा आपूर्ति रहेगी एवं स्वदेशी उत्पादों के निर्यात में वृद्धि होगी जिससे देश की संपूर्ण अर्थव्यवस्था में सुधार होगा।

प्रसंस्करण के क्षेत्र में बाधाएं एवं उनका निवारण -

प्रसंस्करण उपकरणों का अत्यधिक खर्च -

देश में अधिकाँश रूप से मध्यमवर्गीय कृषक एवं पशुपालक ही उत्पादन क्रियाओं में अन्तर्निहित हैं जो प्रसंस्करण हेतु उपयोग होने वाली आवश्यक अवसंरचनाओं तथा जटिल तकनीकी यंत्रों का खर्च वहन करने में असक्षम हैं जोकि इस उद्योग को शिखर तक पहुँचाने में एक गंभीर रुकावट है अतः इसके निवारण हेतु सरकारी तथा गैरसरकारी संगठनों द्वारा विभिन्न महत्त्वपूर्ण योजनाओं को प्रभाव में लाना चाहिए तथा कृषकों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाकर इस उद्योग हेतु प्रेरित करना चाहिए जिससे उनकी संपूर्ण आय में वृद्धि हो सकेगी तथा इसके फलस्वरूप देश की आर्थिक सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।

अपर्याप्त उत्पाद भण्डार -

देश में उत्पादन की तुलना में शीत भंडारों तथा गोदामों की संख्या एवं क्षमता का अनुपात अपर्याप्त है जिसके कारण प्रतिवर्ष अधिक मात्रा में खाद्य उत्पाद नष्ट हो जातें हैं। इस प्रमुख समस्या को अभिभूत करने हेतु केंद्र तथा राज्य सरकार को सकारात्मक प्रयासों द्वारा उत्पादों के उचित अनुपात में शीत भण्डार गृहों का निर्माण कराकर उनके कार्यात्मक रूप से सक्रीय रहने हेतु विशिष्ट प्रबंधन करना चाहिए ताकि खाद्य उत्पादों के क्षय को न्यूनतम किया जा सके।

अविकसित यातायात मार्ग -

ग्रामीण क्षेत्रों में सुविकसित रेल तथा सड़क मार्गों के अभाव तथा अत्यधिक यातायात शुल्क के कारण कृषक प्राथमिक उत्पादों को संगठित संयंत्रों एवं उपयुक्त मंडियों तक पहुँचाने में असमर्थ रहते हैं जिसके कारण वे प्राथमिक उत्पादों को ताजा रूप में ही विक्रय कर देते हैं जिससे उन्हें न्यूनतम लाभ ही प्राप्त हो पाता है अतः इसके निवारण हेतु संगठित खाद्य संयंत्रों के प्रबंधक, सरकारी संगठनों तथा संपन्न निवेशकर्ताओं द्वारा न्यूनतम यातायात शुल्क पर विभिन्न प्रकार के छोटे तथा बड़े उत्पाद वाहनों का प्रबंध करना चाहिए ताकि ग्रामीण तथा अविकसित क्षेत्रों से प्राथमिक उत्पादों को संगठित प्रसंस्करण संयंत्रों एवं मंडियों तक सुचारू रूप से पहुँचाया जा सके जिससे उत्पादकों को उनके श्रम का उचित लाभ प्रदान किया जा सके। 

प्रसंस्करण सम्बंधित जागरूकता का अभाव -

देश के अधिकतम उत्पादकों मरीन प्रसंस्करण से सम्बंधित जागरूकता का अभाव है इसका प्रमुख कारण कृषक तथा प्रबंधक के मध्य संवादहीनता के कारण उचित समन्वय की कमी है जिससे कृषकों की बिचौलियों पर निर्भरता है तथा बिचौलिये इसी अवस्था का लाभ उठाकर मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा स्वयं रख लेते हैं एवं कृषकों को उनके उत्पादों के उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो पाते हैं अतः उत्पादकों एवं प्रबंधकों के मध्य परस्पर संवाद की सहजता में वृद्धि होनी चाहिए जिससे उत्पादकों में प्रसंस्करण हेतु जागरूकता में वृद्धि हो सके तथा उन्हें प्रत्यक्ष रूप से अपने उत्पादन का उचित मूल्य प्राप्त हो सके।

निष्कर्ष -

शरीर के विकास हेतु पोषक तत्वों की अति आवश्यकता होती है जो संतुलित आहार से प्राप्त होते हैं। प्राथमिक फसलों, फल, सब्जियों, तथा पशु उत्पादों में उत्तम मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं किन्तु उनके ताजा तथा असंशोधित रूप में ग्रहण करने से उनमे विद्यमान पौष्टिक तत्वों एवं खनिज लवणों का शरीर को पूर्णतः लाभ प्राप्त नहीं हो पाता है अतः इन उत्पादों का प्रसंस्करण करके उनमे विद्यमान पोषक तत्वों को अत्यधिक सक्रीय एवं पोषक बनाया जा सकता ह। प्रसंस्कृत उत्पादों से देश की बढ़ती जनसँख्या के लिए खाद्य सुरक्षा में वृद्धि होगी तथा उन्हें सभी पोषक तत्वों से युक्त तत्पर ग्रहण हेतु प्रसंस्कृत उत्पाद प्राप्त होंगे जो वर्तमान जीवनशैली की व्यस्त एवं तनावपूर्ण दिनचर्या में संतुलित आहार की पूर्ती करने में सहायक होंगे। यह उत्पाद शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करेंगे एवं अनेक गंभीर बीमारियों जैसे मधुमेह, हृदयघात, पक्षाघात आदि से बचाव में सहायक सिद्ध होंगे। 

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग कृषकों को उनके परिश्रम का उच्चतम मूल्य प्रदान कर उनकी आय में वृद्धि हेतु एक अहम् भूमिका निर्वाह कर रहा है तथा विदेशी उत्पादों के आयात को न्यूनतम करके स्वदेशी उत्पाद के निर्यात में वृद्धि कर संपूर्ण देश को आर्थिक एवं पोषण सुरक्षा प्रदान कर रहा है।