जरूरी है लंपी रोग के निवारण हेतु केंद्र सरकार की एडवाइजरी पर गौर करना

Pashu Sandesh, 22 August 2022

डॉ।आर बी चौधरी एवं अनोखी लाल द्विवेदी

मवेशियों में त्वचा की गांठदार रोग (लंपी डिजीज) के संबंध में आम आदमी के जानकारी के लिए केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत हाई प्रोफाइल संस्था , भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड ने एक विस्तृत सर्कुलर जारी किया है जिसमें रोग के कारण तथा निवारण संबंधी जानकारियां दी गई है। इस सर्कुलर को पढ़ने के बाद साधारण से साधारण पशुपालक तथा गौशाला से जुड़े प्रतिनिधि गोवंशीय पशुओं की देखभाल की पूरी जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।

बोर्ड के सर्कुलर में वह सभी बातें शामिल की गई है जो केंद्रीय पशुपालन मंत्रालय रोग नियंत्रण के दिशा निर्देशन में पशुपालकों को जानकारी दी जा रही है।भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सर्कुलर में मवेशियों के यातायात में विशेष सावधानी बरतने और जीव जन्तु क्रूरता विवारब अधिनियम 1960 के तहत यातायात नियम के परिपालन की बात कही गई है। बोर्ड के सचिव डॉ एसके दत्ता ने सभी पशु प्रेमियों तथा गौशाला प्रतिनिधियों से अनुरोध किया है कि वह नियमानुसार सिर्फ देखभाल नहीं बल्कि उनके यातायात में सावधानी बरतें। अभी तक केंद्र सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और केंद्रीय पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय ने भी इस मामले को विशेष संज्ञान में लिया है और विशेष एडवाइजरी जारी की है ताकि गोवंश का रक्षण - संरक्षण मे आई बाधा का निवारण किया जा सके।

अभी तक देश के करीब 17 राज्‍यों में फैल चुकी यह बीमारी महामारी का रूप ले चुकी है। लिहाजा जरूरी है कि न केवल सरकारें बल्कि पशु पालक भी इसे लेकर जागरुक रहें। यह एक संक्रामक रोग है, लंपी स्किन बीमारी एक वायरल रोग है। यह वायरस पॉक्स परिवार का है। लंपी स्किन बीमारी मूल रूप से अफ्रीकी बीमारी है और अधिकांश अफ्रीकी देशों में है। माना जाता है कि इस बीमारी की शुरुआत जाम्बिया देश में हुई थी, जहां से यह दक्षिण अफ्रीका में फैल गई। यह बात 1929 की है। साल 2012 के बाद से यह तेजी से फैली है, हालांकि हाल ही में रिपोर्ट किए गए मामले मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व, यूरोप, रूस, कजाकिस्तान, बांग्लादेश (2019) चीन (2019), भूटान (2020), नेपाल (2020) और भारत (अगस्त, 2021) में पाए गए हैं।

लंपी स्किन बीमारी मुख्य रूप से गौवंश को प्रभावित करती है। देसी गौवंश की तुलना में संकर नस्ल के गौवंश में लंपी स्किन बीमारी के कारण मृत्यु दर अधिक है। इस बीमारी से पशुओं में मृत्यु दर 1 से 5 प्रतिशत तक पहुच गई है। रोग के लक्षणों में बुखार, दूध में कमी, त्वचा पर गांठें, नाक और आंखों से स्राव आदि शामिल हैं। रोग के प्रसार का मुख्य कारण मच्छर, मक्खी और परजीवी जैसे जीव हैं। इसके अतिरिक्त, इस बीमारी का प्रसार संक्रमित पशु के नाक से स्राव, दूषित फीड और पानी से भी हो सकता है। वायरल बीमारी होने के कारण प्रभावित पशुओं का इलाज केवल लक्षणों के आधार पर किया जाता है। बीमारी की शुरुआत में ही इलाज मिलने पर इस रोग से ग्रस्त पशु 2-3 दिन के अन्तराल में बिल्कुल स्वस्थ हो जाता है। किसानों को मक्खियों और मच्छरों को नियंत्रित करने की सलाह दी जा रही है, जो बीमारी फैलने का प्रमुख कारण है। प्रभावित जानवरों को अन्य जानवरों से अलग करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। बछड़ों को संक्रमित मां का दूध उबालने के बाद बोतल के जरिए ही पिलाया जाना चाहिए।

वैसे तो यह रोग गैर-जूनोटिक है यानि कि यह पशुओं से इंसानों में नहीं फैलता। इसलिए जानवरों की देखभाल करने वाले पशुपालकों के लिए डरने की कोई बात नहीं है। प्रभावित पशुओं के दूध उबालकर सेवन किया जा सकता है। यह बीमारी स्वस्थ पशुओं में न फैले इसके लिए पशुओं का आवागमन बंद कर देना चाहिए। पीड़ित पशुओं को अलग बांधकर रखना चाहिए। राष्ट्रीय डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की ओर से लंपी स्किन रोग के लिए परंपरागत उपचार की विधि बताई गई है। गाय के संक्रमित होने पर अगर इन परंपरागत उपायों को भी कर लिया जाए तो काफी राहत मिल सकती है। हालांकि इस दौरान ध्‍यान रखें कि बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं से पूरी तरह दूर रखें। बीमार पशु के पास अन्य पशुओं को न जाने दें और न ही इसका जूठा पानी या चारा अन्‍य पशुओं को खाने दें।

चूंकि देश के कई राज्‍यों में गायों और भैंसों में लंपी स्किन रोग वायरस का संक्रमण बढ़ता ही जा रहा है। जिसकी वजह से गुजरात, राजस्‍थान सह‍ित कई राज्‍यों में हजारों की संख्‍या में अधिक संख्या मे मवेशियों की मौत हो चुकी है। मरने वाले पशुओं में सबसे बड़ी संख्‍या गायों की है। लंपी स्किन रोग एक संक्रामक रोग है जो वायरस की वजह से तेजी से फैलता है और कमजोर इम्‍यूनिटी वाली गायों को खासतौर पर प्रभावित करता है। इस रोग का कोई ठोस इलाज न होने के चलते सिर्फ वैक्‍सीन के द्वारा ही इस रोग पर नियंत्रण और रोकथाम की जा सकती है। हालांकि, पशु चिकित्‍सा विशेषज्ञों की मानें तो कुछ देसी और आयुर्वेदिक उपायों के माध्‍यम से भी लंपी रोग से संक्रमित हुई गायों और भैंसों ठीक किया जा सकता है।

जीसीएमएमएफ (गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन) के प्रबंध निदेशक डॉक्टर आर एस सोढ़ी के अनुसार पंजरापोल जैसे पशु-आश्रय में संक्रमित मवेशियों की मृत्यु दर अधिक पाई गई है, जहां पर्याप्त मवेशियों का पौष्टिक खानपान एवं पोषण से लेकर चिकित्सा और सामान्य देखभाल सुविधाओं की कोताही बरती गई है। उन्होंने यह भी बताया कि मवेशियों की मौतें खेतों में नहीं हो रही हैं बल्कि शेल्टर में हो रही है। नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) के सूत्रों के अनुसार देश में छिटपुट को प्रभावित करने वाले लम्पी स्किन डिजीज (एलएसडी) से निपटने के लिए,नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड ने गुजरात, राजस्थान और पंजाब में गोट वैक्सीन की 28 लाख खुराक की आपूर्ति की है। यह पूछे जाने पर कि क्या एनडीडीबी संक्रमित मवेशियों से मनुष्यों को प्रभावित करने वाले दूध का कोई केस रिकॉर्ड किया है कि नहीं, तो इस मामले में एनडीडीबी के चेयरमैन मुकेश शाह ने बताया कि आम तौर पर यह कई अन्य बीमारियों के विपरीत जूनोटिक नहीं है। लेकिन सुरक्षा कारणों से हम लोगों से पाश्चुरीकृत दूध या उबला हुआ दूध पीने के लिए सलाह दे रहे हैं ।

दूसरी तरफ इस भयावह लम्पी रोग की रोकथाम की वैज्ञानिक घोषणा की गई है।केंद्र सरकार द्वारा जारी सूचना के अनुसार देश के इस महामारी के नियंत्रण के लिए केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया है कि यह राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार (हरियाणा) ने भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर (बरेली) के सहयोग से बनाई गई है। तोमर ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत यह वैक्सीन विकसित करके एक और नया आयाम स्थापित किया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि 2019 में जब से यह बीमारी भारत में आई है तब से ही संस्थान वैक्सीन विकसित करने में जुटे थे और सफलता हासिल किए ।

साथ ही साथ केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री, पुरुषोत्तम रूपाला ने भी अभी हाल में पंजाब के पशुपालन मंत्री लालजीत सिंह भुल्लर के साथ समीक्षा बैठक की है। जिसमें उन्होंने हरियाणा के मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री जय प्रकाश दलाल, हरियाणा गौ सेवा आयोग के अध्यक्षों और हरियाणा पशुधन विकास बोर्ड के प्रमुख प्रशासक शामिल हुए और मवेशियों में लंपी रोग की स्थिति का अध्ययन किया। और , यह बताया कि इसकी रोकथाम के लिए राज्य सरकारों के लिए प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीन की व्यवस्था की जा रही है। आगे यह भी बताया कि जिन जिलों में लंपी रोग से ग्रसित पशु हैं, वहां पहले रिंग वैक्सीनेशन किया जाए ताकि अन्य जिलों में इस बीमारी को फैलने से रोका जा सके। उन्होंने कहा कि इस बीमारी से पीड़ित पशुओं को अलग कर जमीनी स्तर पर प्रयास करने की जरूरत है तभी अन्य जानवरों को इस बीमारी से बचाया जा सकता है।उन्होंने राज्य सरकार को केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करने का निर्देश दिया ताकि जैव सुरक्षा, जानवरों की आवाजाही को नियमित करने और टीकाकरण के माध्यम से बीमारी को और अधिक फैलने से रोका जा सके।

केंद्र द्वारा गोट पॉक्स वैक्सीन की कीमत की एकरूपता पर चर्चा की गई। रूपाला ने आश्वासन दिया है कि आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। टीकों की पर्याप्त आपूर्ति की मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय मंत्री ने संकेत दिया है कि उनका विभाग दोनों राज्यों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ाने के लिए वैक्सीन निर्माताओं के संपर्क में है। उन्होने बीमार पशुओं के लिए आइसोलेशन सुविधाएं तैयार करने पर जोर दिया है। साथ ही बीमार पशुओं के लिए हर्बल और होम्योपैथिक दवा के उपयोग की बात बताई । जिसमें केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार इस बीमारी को फैलने से रोकने के अन्य उपायों पर चर्चा की ।

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(# इस लेख के लेखक डॉ।आर बी चौधरी , पशु मित्र पत्रिका के संपादक एवं भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के रिटायर्ड ऑफिसर है। साथ-साथ अनोखी लाल द्विवेदी भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के मध्य प्रदेश से मानद जीव जंतु कल्याण अधिकारी है।)