कड़कनाथ मुर्गीपालनः एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर

Pashu Sandesh, 21 Feb 2022

डा. गया प्रसाद जाटव 

सह प्राध्यापक

पशु विकृति विज्ञान विभाग

पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय

(नानाजी देषमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विष्वविद्यालय, जबलपुर)

महू - 453446

कड़कनाथ पक्षी मुर्गी की एक देशी नस्ल है जिसे काला मासी एवं ब्लेक गोल्ड के नाम से जाना जाता है। यह पक्षी मध्य प्रदेष के पष्चिमी जिलों मुख्यतः झाबुआ, अलीराजपुर एवं धार के विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है। पष्चिम मध्य प्रदेष के अलावा यह पक्षी यहां से लगे हुऐ क्षेत्रों जो कि गुजरात एवं राजस्थान प्रदेष की सीमा मे आते है। वहां भी ये पक्षी पाया जाता है।

कड़कनाथ का वैज्ञानिक नाम Gallus gallus domesticus है। इसका उदगम स्थान अलीराजपुर जिले की कठीवाड़ा तहसील को माना जाता है। जो कि मध्य प्रदेश का एक पश्चिमी जिला है। कड़कनाथ मुर्गी की तीन प्रजातियां है। 

प्रथमः- जेड ब्लेक 

द्वितीयः- गोल्डन 

तृतीयः- पेन्सिल्ड

जेड ब्लेकः-यह प्रजाति पूर्णतः काले रंग की होती है जिसमें कि पक्षी के पंख, चोंच, कल्गी, पैर, त्वचा, अस्थि एवं मांस भी पूर्णतः काला होता है।

गोल्डनः- इस प्रजाति की गर्दन एवं बड़े पंखों का रंग हल्का सुनेहरा होता है, तथा इसकी कल्गी एवं चोंच हल्के लाल-काले रंग का मिश्रण होता है।

पेन्सिल्डः-इस प्रजाति के पक्षी के गर्दन के पंखो का रंग सफेद-धूसर रंग की धारियों के रूप में होता है। बांकी का पूरा पक्षी काले रंग का होता है।

ये तीनों प्रजातियां पष्चिमी मध्य प्रदेश के प्रमुख तीन जिलों अलीराजपुर, झाबुआ एवं धार के विभिन्न दूरस्त आदिवासी क्षेत्रों में आसानी से देखी जा सकती है। इसके अलावा यह प्रजातियां शासकीय कुक्कुट प्रक्षेत्र झाबुआ, कृषि विज्ञान केन्द्र झाबुआ एवं पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय, महू, जो कि नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर के अंतर्गत आता है, मे भी उपलब्ध है एवं यहां से क्रय की जा सकती है। पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय, महू, में इस प्रजाति के संवर्धन एवं प्रसार हेतु शोध कार्य किया जा रहा है।

कड़कनाथ पक्षी झाबुआ, अलीराजपुर एवं धार में कई वर्षो से बैकयार्ड फार्मिंग के रूप में पाला जाता रहा है तथा इसकी मांग भी अत्याधिक है। किन्तु उत्पादन कम होने से, मांग की पूर्ति संभव नही हो पाती है। अतः उत्पादन के साथ-साथ इनका संरक्षण भी आवश्यक  हो गया है। क्योंकि कड़कनाथ मात्र एक ऐसा देषी नस्ल का पक्षी है जो झाबुआ जिले में ही पाया जाता है। इस कारण से भारत सरकार ने इस पक्षी के मांस उत्पादन को भौगोलिक संकेतक (जी.आई.टेग) के रूप में झाबुआ के लिये जुलाई 2018 में मान्यता दी है। जी.आई.टेग मुख्य रूप से कुछ विषिष्ट उत्पादों (कृषि, प्राकृतिक,हस्तशिल्प और औद्योगिक सामान) को दिया जाता है। जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में 10 वर्ष या उससे अधिक समय से उत्पन्न या निर्मित हो रहा है। इस जी.आई.टेग का मुख्य उददेष्य उन उत्पादों को संरक्षण प्रदान करना है। 

कड़कनाथ पक्षी एक विशेष पक्षी है जिसकी विशेषताएँ निम्न प्रकार हैः-

कड़कनाथ पक्षी का अंडा देशी श्रेणी के पक्षी के अंडो के अंतर्गत आता है। अतः इसकी कीमत विदेषी नस्ल की पक्षी के अंडे की तुलना में लगभग डेढ़ से दोगुनी होती है। जोकि 10 रूपये से लेकर 20 रूपये तक हो सकती है।

यह पक्षी पूरे वर्ष भर में 100 से 130 अंडे तक दे सकता है। जोकि बैकयार्ड फार्मिग के अंतर्गत बगैर पैसा खर्च किये शुद्व लाभ देता है।

छः माह के पश्चात नर पक्षी का वजन 1.5 से 2.0 किलोग्राम तथा मादा पक्षी का वजन 1.3 किलोग्राम से 1.5 किलोग्राम पाया जाता है। और यह पक्षी जीवित अवस्था में 600 से 700 रूपये प्रति पक्षी अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में आसानी से बिक जाता है। जो कि बगैर लागत के शुद्व लाभ के रूप में बैकयार्ड फार्मिगं के रूप में मुर्गी पालक को प्राप्त हो जाता है।

कड़कनाथ पक्षी के मांस में विटामिन बी-1, बी-2,बी-6 बी-12, नियासिन, निकोटिनिक ऐसिड, कैल्सियम, फास्फोरस एवं आयरन की मात्रा अधिकता में पाई जाती है। साथ ही साथ इसमें प्रोटीन की मात्रा 25 से 26 प्रतिशत एवं वसा की मात्रा 0.7 से 1.3 प्रतिशत  जो कि अन्य पक्षियों की तुलना में क्रमशः अधिक एवं नगण्य है। कोलस्ट्राल की मात्रा भी अन्य ब्रायलर एवं और पक्षियों की तुलना में कम होती है। यही कारण है कि इस पक्षी के मांस का उपयोग हम बीमार लोगों के लिये एक अच्छे प्रोटीन के स्त्रोत के रूप में कर सकते हैं। क्योंकि हम जानते है कि बीमारी के दौरान शरीर में विभिन्न प्रकार के क्षरण होते है जिसमें शरीर में प्रोटीन की मात्रा क्षरित हो जाती है। अतः इस पक्षी के मांस का उपयोग बीमार लेागों में प्रोटीन की क्षतिपूर्ति का एक अच्छा साधन हो सकता है। यही कारण है कि इस पक्षी के मांस की मांग बढ़ी हुई है।

कड़कनाथ पक्षी के मांस का नियमित उपयोग करने से शरीर में लाल रक्त कणिकाओं मे हीमोग्लोबिन की वृद्वि होती है। जिससे शरीर का अच्छा विकास होता है और शरीर को रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है।

उपरोक्त समस्त खूबियों को ध्यान में रखने से निश्चित ही इस पक्षी की मांग बढ़ना तय है। और हम जानते है कि जब किसी उत्पाद की मांग बढ़ती है तो उसका उत्पादन करना निष्चित रूप से लाभ का व्यवसाय साबित हो सकता है। और यही कारण है कि यदि मुर्गीपालक कड़कनाथ मुर्गी पालन करता है तो निष्चित ही वह आत्मनिर्भरता की ओर बढे़गा।

कड़कनाथ मुर्गी के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु पशुपालन विभाग म.प्र.शासन भोपाल द्वारा राज्य के विभिन्न जिलों में कड़कनाथ मुर्गी पालन की एक हितग्राही मूलक योजना चलाई जा रही है इस योजना का नाम ”अनुदान पर कड़कनाथ चूजे प्रदाय येाजना“ है। जोकि अनुसूचित जनजाति बहुल क्षेत्रों (झाबुआ,अलीराजपुर) में अनुसचित जनजाति हेतु एवं प्रदेश के अन्य जिलों जैसे इन्दौर में समस्त संवर्ग हेतु इस योजना को चलाया जा रहा है। इस येाजना के अंतर्गत प्रत्येक हितग्राही को एक माह के 40 कड़कनाथ पक्षी के चूजे दाने के साथ प्रदाय किये जाते है। इस योजना की ईकाई लागत 4400/-रुपय है जिसमें में शासन की ओर से 75 प्रतिशत राशि अनुदान के रूप में एवं 25 प्रतिशत राशि  हितग्राही द्वारा अंशदान के रूप में जमा कराई जाती है।

उक्त योजना का लाभ लेकर भी मुर्गी पालक अपना मुर्गी पालन बैकयार्ड फार्मिग के रूप में शुरू करके स्वयं को आत्मनिर्भर बना सकते है और तत्पश्चात कड़कनाथ मुर्गी पालन का प्रषिक्षण लेकर इसको व्यवसाय के रूप मे विकसित करते हुये स्व्यं एवं अपने परिवारजनों को आत्मनिर्भर बना सकते है। कड़कनाथ मुर्गी पालन को व्यवसायिक स्तर पर ले जाने हेतु मुर्गी पालकों को मुर्गी पालन हेतु प्रषिक्षण अवश्य लेना चाहिये। यह प्रषिक्षण समय-समय पर पशु पालन विभाग एवं नानाजी देषमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर के अंतर्गत आने वाले समस्त पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालयों द्वारा मुर्गीपालकों को दिया जाता है। जोकि मुर्गीपालकों को आत्मनिर्भर बनाने में अपनी भूमिका निभा रहा है।