Pashu Sandesh, 25 April 2022
डा. अभिषेक भारद्वाज1*, डा. अक्षय कुमार2, डा. दीक्षा भारती3
1पीएचडी,पशु प्रजनन विभाग, गड़वासु, लुधियाना ,2पीएचडी, पशु शल्यचिकित्सा विभाग आईवीआरआई, बरेली ,3 पीएचडी, वेट्रनेरी मेडिसन विभाग, पंतनगर
परिचय: भारत एक कृषि प्रधान देश है एवं अधिकतर लोग पशु पालन करते हैं। भारतीय भूगोलिक इस प्रकार से है कि तापमान और आर्द्रता दुग्ध उत्पादन को काम करते हैं। देशी दुधारू पशुओं में इनसे बचने की सहिष्णुता होती है, जोकि एक उत्पादन विशेषता है। भारतीय नसलें जैसे कि साहीवाल, गिर, और थारपार्कर गर्म मौसम में बढ़िया दुग्ध उत्पादन करती हैं जबकि विदेशी नस्ल की गाएँ कम ही करती हैं, परंतु इन नस्लों के जानवर बहुत कम संख्या में हैं। प्राचीन रेतन विधि से इनके संख्या में बढ़ावा तो हो रहा है, पर ये बड़ी धीमी रफ्तार से हो रहा है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन 2014 से अब तक देशी नस्लों के लिए “टेस्ट ट्यूब विधि” से बनाए गए बछड़े के लिए किसान को 5000 रुपए की आर्थिक सहायकी दी जा रही है। यह टेस्ट ट्यूब विधि आखिर है क्या और कैसे की जाती है इसका इस लेख में सीधी भाषा में विस्तार किया जा रहा है।
टेस्ट ट्यूब विधि क्या है?
आमतौर पे एक जानवर सालभर में एक ही बछड़ा या बछडी देते हैं, परंतु कृत्रिम रेतन एक एसी तकनीक है जिसके द्वारा अच्छे नस्ल के सांड से, हजारों की संख्या में मादा जानवरों को गाभिन किया जाता है। परखनली विधि का उपयोग उन मादा जानवरों, जिनकी दूध देने की क्षमता अधिक होती है, के लिए उपयोग होती है। गाय के अंडों को एक विशेष उपकरण के प्रयोग से योनि मार्ग से निकाला जाते है, तथा विशेष उपकरणों की मदद से परीपकवा कराए जाते हैं। दूसरे दिन इन अंडों को शुक्राणुओं से निषेचन कराया जाता है और सात दिनों बाद अच्छे किस्म के भ्रूण प्राप्तकर्ता जानवरों में स्थानांतरित किया जाता है। ऐसे प्राप्तकर्ता पशुओं की गर्भावस्था जांच 28 दिन पे अल्ट्रसाउन्ड से की जा सकती है।
टेस्ट ट्यूब के अंदर निषेचन के चरण:
टेस्ट ट्यूब विधि के फायदे :
टेस्ट ट्यूब विधि के नुकसान :