सपेरे से घायल सांप बचाने के चक्कर में लखनऊ जिले की पशु कल्याण अधिकारी सबा बानो किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में भर्ती

पुलिस को समझाने में ध्यान हटा - कोबारा दंश से जान खतरे में

पशु संदेश, 8 अक्टूबर 2019, लखनऊ उत्तर प्रदेश

डॉ आर बी चौधरी

प्राप्त जानकारी के अनुसार सबा बानो भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड,भारत सरकार के तहत लखनऊ जनपद से मानद जिला जीव जंतु कल्याण अधिकारी हैं तथा लखनऊ स्थित सोसायटी फॉर एनिमल वेलफेयरकी अध्यक्षा भी।आज दोपहर को अपने संस्था द्वारा संचालित मुहिम- "घोड़ा कल्याण अभियान" के तहत शहर के दुबग्गा नामक चौराहे पर एक्का- तांगे के चालको को अति-भारवाहन को रोकने एवं प्रशिक्षित करने गई थी।अपना काम निपटाने के बाद जब वापस हो रही थी तो उन्होंने एक सपेरे को देखा और अपने साथियों सहित उसे रोका।जांच पड़ताल के बाद पता चला एक सांप अस्वस्थ है फिर भी सांप दिखाने का काम कर रहा है। थोड़ा और छानबीन करने पर पता चला कि दूसरे सांप को उसी के साथ रखा हुआ है।जब सबा ने घायल कोबरा सांप को उपचार के लिए मांगा और कहा कि स्वस्थ होने के बाद उसे जंगल में छोड़ दिया जाएगा।सपेरा विरोध करने लगा और मामला पुलिस तक पहुंची।इसी बात-विवाद में सबा का ध्यान सांप से हट गया और कोबरा सांप ने उन्हें काट लिया।आनन-फानन में उन्हें लखनऊ मेडिकल कॉलेज में लाया गया जहां वह जीवन मौत द्वार पर खड़ी हैं।सबा बानो द्वारा जारी एक फेसबुक वीडियो :
https://www।facebook।com/shaba।bano।986/videos/390595075183660/ के माध्यम से इस घटना की जानकारी हुईऔर जिसमें उन्होंने बताया कि स्थानीय पुलिस को न तो जीव जंतु क्रूरता निवारण अधिनियम के बारे में जानकारी है और ना ही उन्हें सहयोग किया। यह बता दें कि कानूनी तौर पर सर्प का प्रदर्शन एक अपराध है। यह कोई नई घटना नहीं है देशभर में इस तरह की घटनाएं होती रहती है जिसके पीछे पशुओं पर होने वाले अपराध को रोकने के बारे में अधिकांश लोगों को पता ही नहीं है।

यह देश समूची दुनिया को करुणा और दया का संदेश देने के लिए जाना जाता है।भारत में पशुओं पर होने वाले अपराध को नियंत्रित करने के लिए जीव जंतु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के अधीन कई कानून तथा उसके संचालन के लिए विभाग बनाए गए हैं। इसके तहत केंद्र सहित राज्य सरकारों को मिल-जुल कर करने का प्रावधान है।जीव जंतु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत पशुओं पर होने वाले अत्याचार को रोकने के लिए जन जागृति एवं प्रशिक्षण को एक महत्वपूर्ण लक्ष्य माना गया है। सच में पूछिए तो पशु क्रूरता निवारण के लिए जन जागृति अत्यंत आवश्यक उपाय है।अक्सर देखा गया है कि फील्ड में काम करने वाले पशु प्रेमियों के कार्यों को नजरअंदाज किया जाता है जबकि यही वास्तविक कार्यकर्ता होते हैं।अपने पॉकेट से पैसा लगाकर के काम करते हैं । यह बात अलग है कि थोड़े दिन काम करने के बाद वह है टूट जाते हैं और काम को छोड़ देते हैं। ऐसी हालत में उन्हें उत्साहित करने और जोड़े रखने का नितांत अभाव है।इतना ही नहीं नए पशु प्रेमियों को सरकारी तंत्र में जोड़ करके पशु कल्याण अभियान को आगे बढ़ाने का काम भी दिशा विहीन है।जन जागृति और प्रशिक्षण कार्यक्रम नियमित चलाए जाने से लगातार नए-नए पशु प्रेमी जुड़ते हैं। साथ ही साथ उन्हें काम करने का तरीका भी पता होता है।

हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित आंकड़े के अनुसार देश में पशु क्रूरता बड़ी तेजी से बढ़ रहा है।अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011 में मुंबई शहर में मुंबई एसपीसीए की पशु क्रूरता निवारण के दिशा में अहम भूमिका निभाने के बाद भी मुंबई में 316 पशु क्रूरता की घटनाएं रजिस्टर की गई थी । वहीं 2016 में कुल क्रूरता की घटनाएं बढ़कर 1,013 जा पहुंची। मुंबई एसपीसीए द्वारा वर्ष 2017 में जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले 5 वर्षों के अंतराल में कुल 19,028 क्रूरता की घटनाएं रजिस्टर की गई थी । पशु कल्याण विशेषज्ञों के अनुसार पशु बढ़ती क्रूरता का मुख्य कारण है जन जागृति और जन चेतना का भाव।आपको जानकर यह ताज्जुब होगा कि राष्ट्रीय पशु कल्याण संस्थान का प्रशिक्षण कार्यक्रम पिछले साल भर से बंद है जहां हजारों की संख्या में प्रशिक्षणार्थी प्रशिक्षण प्राप्त किया करते थे। हालांकि, इस संस्थान का सपना था कि वह एक दिन विश्वविद्यालय बन जाएगा किंतु आज दो दशक हो गए संस्थान का सपना अभी पूरा नहीं हुआ।

वर्ष 1990 के दशक में रॉयल सोसायटी फॉर प्रीवेंशन आफ क्रुएलिटी टो एनिमल्स, लंदन (यूनाइटेड किंगडम) के एक प्रशिक्षण के दौरान पूरे देश भर में जनपद स्तर की टूरिंग-आउटडोर ट्रेनिंग का एक महत्वाकांक्षी योजना चलाया गया था जो काफी हद तक सफल रहा जिसके तहत पूरे देश भर से तकरीबन 10,000 से अधिक पशु प्रेमियों को प्रशिक्षित किया गया था।यह केंद्रीय कार्यक्रम बाद में चलकर एक नेटवर्क बन गया था जिससे भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के मानद जीव जंतु कल्याण अधिकारियों के साथ साथ कॉलोनी एनिमल केयर टेकर की संख्या में काफी इजाफा हुआ और एनिमल वेलफेयर कार्यकर्ताओं का बड़ा नेटवर्क तैयार हो गया था।इस श्रृंखला में कई अन्य संस्थान जुड़ी जिसमें तमिलनाडु बैटरी साइंस यूनिवर्सिटी का एनिमल वेलफेयर सर्टिफिकेट कोर्स,सरकारी कर्मचारियों के लिए इंडियन वेटरिनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट का शॉर्ट टर्म एनिमल वेलफेयर कोर्स एवं नेलसार(एनएएलएसएआर) यूनिवर्सिटी ऑफ़ लॉ हैदराबाद, छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय का प्रयास सराहनीय रहा है। एक जानकारी के अनुसार तमिलनाडु वेटरिनरी साइंस यूनिवर्सिटी द्वारा संचालित एनिमल वेलफेयर सर्टिफिकेट कोर्स धनाभाव में बंद होने वाला है।

वर्तमान में एनिमल वेलफेयर जैसे नए विषय पर अध्ययन, अध्यापन एवं अनुसंधान का कार्य को संज्ञान में लाने की आवश्यकता है ।भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के पूर्व सदस्य, बैंगलोर वेटरनरी कॉलेज के डीन तथा कामनवेल्थ वेटरनरी एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी , डॉ। एस। अब्दुल रहमान वर्ष 2004 में वर्ल्ड ऑर्गेनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ (ओआईई) द्वारा प्रायोजित एवं कामनवेल्थ वेटरनरी एसोसिएशनके तत्वाधान में आयोजित ग्लोबल एनिमल वेलफेयर कॉन्फ्रेंस में एक अत्यंत रोचक शोध पत्र किया था जिसमें कहा गया था कि एनिमल वेलफेयर की जिम्मेदारी सिर्फ जीव दया या पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण तक ही नहीं सीमित है जिसका संबंध भावनात्मक माना जाता है बल्कि इसका गहरा संबंध पशुओं के उत्पादन से है।अपने शोध पत्र में उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे एनिमल वेलफेयर के बनाए गए मापदंडों का परिपालन किया जाता है वैसे -वैसे पशु उत्पादन और उसके उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ती जाती है।आज का सीधा- सीधा असर हमारे पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर है।

भारत सरकार का एनिमल वेलफेयर विभाग प्रकृति के संरक्षणवादी विचारधारा को लेकर चलने वाले पर्यावरण मंत्रालय से अब खाद्य उत्पादन के लिए समर्पित पशुपालन मंत्रालय जा पहुंचा है। अब देखना है कि आधे दर्जन से अधिक बार उठापटक से ग्रसित पशु कल्याण विभाग अपना क्या गुल खिलाता है। केंद्रीय पशुपालन मंत्रालय के पशुपालन विशेषज्ञों की देख-रेख में पशु कल्याण विषय को कितनी प्राथमिकता मिलती है, यह आने वाले कल ही बताएगा कि एनिमल वेलफेयर का अंतर्संबंध पशु , मनुष्य और पर्यावरण के साथ कितना गहरा है और सरकार उसको कितनी प्राथमिकता दे रही है। अगर इन मामलों पर नई नीतियां और योजनाएं नहीं बनाई गई तो आने वाले दिनों में सरकार से नियमानुसार सहयोग की आशा लगाए हुए न जाने कितने पशु प्रेमी अपनी जिंदगी खो बैठेंगे।

डॉ आर बी चौधरी

( विज्ञान लेखक एवं पत्रकार , पूर्व सम्पादक-एडब्लूबीआई , भारत सरकार )