एंथ्रेक्स रोग कारक, लक्षण और निदान

पशु संदेश, 5 March 2021

मनु जायसवाल, हिमांशु अग्रवाल और मधु शिवहरे 

एंथ्रेक्स बैसिलस एंथ्रेसीस के साथ संक्रमण के कारण होता है, जो एक कठोर बैक्टीरिया है जो लंबे समय तक अत्यधिक परिस्थितियों में जीवित रह सकता है।यह एकाएक तेजी से पशुओं से मनुष्य तथा मनुष्यों से पशुओं में फैलने वाला एक जानलेवा रोग है। इसे एन्थ्रेक्स, ऊन छाटने वालों का रोग, विसहरिया, गिल्टी रोग, तिल्ली बुखार आदि अनेकों नामों से भी जाना जाता है। पशुधन में एंथ्रेक्स आम हैए और मनुष्यों में संभावित रूप से गंभीर संक्रामक बीमारी है। 2001 में संयुक्त राज्य अमेरिका ;यूस में बैसिलस एंथ्रेसीस ने जैविक हथियार के रूप में कुख्यातता प्राप्त की जब एंथ्रेक्स पाउडर पैकेज में मेल किया गया था जिससे संक्रमण के 22 मामले सामने आए जिसमें 5 मौतें शामिल थीं।

यह लम्बे क्षेत्र में फैलने वाली एक जीवाणु जनित छूत की बीमारी है जो कि बैसिलस ऐन्थ्रेसिस नामक स्पोर उत्पन्न करने वाले जीवाणु से होती है। इस बीमारी में पशु को तेज ज्वर हो जाता है और अचानक बीमार होकर जल्द ही मर जाता है। यह रोग सभी पशुओं, कुछ प्रकार के पक्षियों एवं मनुष्यों में होता हैं। मनुष्यों में यह रोग सामान्यतः पशुओं तथा उनके उत्पादों के सम्पर्क से फैलता है और इसमें मृत्यु दर लगभग 20% तक होती है। 

पशुओं में रोग के लक्षणों को  इसकी तीव्रता के अनुसार चार वर्गों में बांटा जा सकता है। 

अतितीव्र अवस्था (पर एक्यूट): यह अवस्था मुख्यतः भेड़ एवं बकरियों में देखने को मिलती हैं। जिसमें की  रोग बहुत ही तीव्र होता है तथा पशु की शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है। मृत्यु से पूर्व पशु अचानक लड़खड़ाना, शरीर का हिलना तथा काँपना, दाँत किटकिटाना, सांस लेने में कष्ट जैसे लक्षण प्रगट करता है इसके अलावा पशु के मुॅह, नाक तथा मलद्वार से रक्त मिला हुआ झागदार स्राव का गिरना तथा कुछ ही क्षणों में जानवर की मृत्यु हो जाना भी इस रोग के प्रमुख लक्षण होते हैं। 

तीव्र अवस्था(एक्यूट): इस अवस्था में शरीर का तापमान 105-108 डिग्री फारेनहाइट हो जाता है। शरीर में कमजोरी आ जाती है जिससे जानवर लड़खड़ाने लगता है। पशु में बेचैनी, आँखे उभरी हुई, पेट में तेज दर्द एवं नाक, मुँह और मलद्वार से खून गिरना आदि प्रमुख लक्षण दिखाई देते हैं एवं पशु की तीन से चार दिनों में मृत्यु हो जाती है। 

कुछ तीव्र अवस्था (सब एक्यूट): इसमें जानवर को तेज बुखार, भूख न लगना, पेट फूल जाना, मुह, नाक और अंतड़ी से रक्त स्राव होना एवं 2-6 दिनों में जानवर की मृत्यु जैसे लक्षण दिखई देते हैं। इस अवस्था में जानवर को उचित इलाज करके बचाया जा सकता है। 

जीर्ण अवस्था (क्रानिक): इस अवस्था में जानवर के गले के आस-पास सूजन के लक्षण दिखाई देते है, जानवर थका हुआ एवं कमजोर दिखाई देता है और उसको भूख नहीं लगती है। इस अवस्था में भी इलाज करके पशु को स्वस्थ किया जा सकता है।

मनुष्यों में रोग के लक्षणः 

घाव अथवा कटे हुए संक्रमित त्वचा वाले स्थान पर लाल रंग के घब्बे, सूजन एवं छाले नजर आते हैं तथा मृत कोशिकाओं के स्थान पर काले रंग के  दाग बन जाते है। भूँख न लगना, उल्टी, डायरिया,खाँसी, श्वांस लेने में कठिनाई आदि लक्षण देखने को मिलते हैं। स्वांस रूकने की वजह से व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। 

निदानः 

रोग की पहचान लक्षणों के आधार पर, प्रयोगशाला में जीवाणओं के संवर्धन द्वारा एवं पशु के प्राकृतिक छिद्रों से काले रंग के कोलतार जैसे झागयुक्त स्राव का निकलना एवं उसका न जमना आदि के आधार पर की जा सकती है। 

उपचारः 

इस रोग के उपचार में पेनिसिलीन, एम्पीसिलीन, टेट्रासाइक्लीन आदि प्रतिजैविक औषधियों का प्रयोग किया जा सकता है इसके अलावा एन्थ्रेक्स एन्टीसीरम का प्रयोग विशेष लाभकारी है।

रोग से बचाव के उपायः

रोगी पशु को तुरन्त स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए। 

रोग से मरे हुए पशु को गहरी मिट्टी के अन्दर दबा देना चाहिए। 

पशु के रहने वाले स्थान को कीटाणुनाशक घोल से अच्छी तरह धोना चाहिए एवं दीवारों पर भी कीटाणुनाशक का छिड़काव करना चाहिए। 

संदिग्ध जानवार का शव परीक्षण नहीं करना चाहिए। 

एन्थ्रेक्स का प्रकोप होने पर स्वस्थ पशुओं को सामूहिक रूप से “एन्थ्रेक्स स्पोर वैक्सीन“ का टीका लगाना चाहिए। 

जिन क्षेत्रों में एन्थ्रेक्स फैलता है वहाँ प्रतिवर्ष टीकाकरण करना चाहिए।

रोगी पशु के सम्पर्क में आए चारे व बिछावन को उसी स्थान पर जला देना चाहिए।

इस प्रकार से हम देखते है कि यदि उपरोक्त बातों को अमल में लाया जाए तो एन्थ्रेक्स जैसी खतरनाक बीमारी से हम अपना तथा अपने पशुओं का बचाव कर सकते हैं तथा इससे होने वाले आर्थिक नुकसान को भी कम किया जा सकता है।

Manu Jaiswal -PhD scholar, DAVASU, Mathura

Madhu Shivhare-Assistant professor NDVSU Jabalpur

Himanshu Agarwal -MVSc ,DAVASU , Mathura