सिरोही बकरीयों की देखभाल एवं सामान्य प्रबंधन

Pashu Sandesh, 05 December 2021

डा.सोनू कुमार यादव1, डा. अंजनी कुमार मिश्रा2, डा. राजेश कुमार वांद्रे3, डा. नितिन मोहन गुप्ता4 एवं डा. ऋषिकांत त्रिपाठी5

सिरोही बकरियों की एक महत्वपूर्ण प्रजाति है, इसका भारत में पाई जाने वाली सभी प्रजातियों की बकरियों में एक अपना अहम स्थान है। इस प्रजाति की नाम राजस्थान प्रदेश के सिरोही जिले पर पड़ा है तथा सिरोही प्रजाति की बकरियाँ ज्यादातर राजस्थान के सिरोही जिले में पाई जाती है। यह प्रजाति सिरोही जिले से लगे हुए कुछ अन्य जिले जैसे नागौर, सीकर, अजमेर, टोंक, उदयपुर, भीलवाड़ा में भी पाई जाती है इस प्रजाति का मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात के पालमपुर में भी अस्तित्व है तथा अधिक मात्रा में यहाँ पर भी इसका पालन किया जाता है।

सिरोही बकरी की पहचानः- सिरोही प्रजाति की बकरी मुख्यतः सुडोल, मध्यम आकार की होती है। इस प्रजाति का शरीर भूरे रंग का होता है तथा शरीर पर हल्के या भूरे रंग के धब्बे होते है। इस प्रजाति की कुछ बकरियाँ सफेद भी होती है। इसके चपटे धुमावदार पत्ती जैसे लटके हुये कान, मुड़े हुए, छोटे ऊपर झुक्रे हुये और पीछे की तरफ सींग, छोटे और मोटे बाल होते हैं। इसमें मुड़ी व घने बालों से ढँकी हुई पूँछ पाई जाती है। प्रौढ़ नर बकरी का भार 50 किलोग्राम व प्रौढ़ मादा बकरी का भार 40 किलोग्राम होता है। 

सिरोही बकरी की उपयोगिताः- सिरोही को मांस के कारोबार के लिए विशेष रूप से पाला जाता है। यह प्रजाति तेजी से बढ़ती है इसलिए इसे शीघ्रता से बेचा जा सकता है। यह बकरी दूध भी अच्छी मात्रा में देती है जो एक से डेढ़ लीटर तक हो सकता है। यह प्रजाति गर्म मौसम को भी झेल सकती है। इसका भार 7-8 माह में 30 किलोग्राम तक हो जाता है तथा एक वर्ष के अन्तराल में 60-80 किलोग्राम तक पहुँच जाता है इसी कारण से इससे मांस का उत्पादन अच्छा प्राप्त हो जाता है यह प्रजाति साल भर में दो से तीन बच्चों को जन्म देती है। इसकी विशेषता यह है कि यदि अनाज न मिले तो यह साधारण चराने से भी अच्छा उत्पादन देती है।

सिरोही बकरी का पालनः- सिरोही बकरी पालन के लिए विशेष तौर पर इस बात का ध्यान देना होता है कि इस प्रजाति की बकरी को आप किस तरीके से पालन करना चाहते हैं। जैसे कि हम जानते है कि बकरी पालन मुख्यतः तीन प्रकार से होता हैः-

  • विचरण विधि
  • अर्ध सघन विधि 
  • सघन विधि

1. विचरण विधि:- विचरण विधि बकरी पालन की एक ऐसी विधि है जिसमें बकरियां पूर्णतः चराई पर निर्भर रहती है। इस विधि में किसी विशेष बाड़े (फार्म) की आवश्यकता नही होती है। बकरियों को सुबह से शाम तक चरने के लिए मैदानी क्षेत्र, पास के जंगल में ले जाया जाता है जहाँ पर वह पेड़ों की पत्तियाँ घास से ही अपना पेट भर लेती है। शयनकाल के बाद बकरियों को चराने के बाद उन्हें एक बाड़ा बनाकर या घर पर ही एक स्थान पर रखा जाता है। इस विधि का उपयोग ज्यादातर भूमिहीन किसानों और मजदूरों के द्वारा इस विधि का उपयोग वहां पर पाई जाने वाली स्थानीय प्रजाति की बकरियों का पालन करने में किया जाता है। सिरोही बकरी राजस्थान में पाई जाती है तथा वहां पर रह रहे किसानों के द्वारा भी इसका पालन विचरण विधि के द्वारा किया जाता है।

2. अर्ध विचरण/अर्ध सघन विधि:- इस विधि में बकरियों को कुछ समय के लिये बाहर चराने के लिए छोड़ा जाता है तथा फिर कुछ समय के लिए घर में ही खाने की भरपूर व्यवस्था की जाती है। इस विधि में किसान इन बकरियों का पालन एक व्यवस्थित प्रक्षेत्र (फार्म) बनाकर करते है इस विधि में विचरण विधि की तुलना में बकरियों की देखरेख बहुत सरल प्रकार से की जा सकती है तथा आवश्यकता पड़ने पर आसानी से कुछ कार्य को पूरा किया जा सकता है। जैसें टीकाकरण, बकरियों के स्वास्थ्य  परीक्षण इत्यादि।

 इस विधि की विशेषता यह है कि इसमें किसानों की जो लागत आती है सघन विधि की तुलना में अल्प होती है इसलिए कम खर्च पर बकरियों का पालन आसानी से कर सकते हैं तथा जहां पर बकरियों को चराने की पर्याप्त जगह नही होती है वहां पर इस विधि को अपनाकर बकरियों का पालन किया जा सकता है। इसमें किसानों का बकरियों के भोजन इत्यादि में होने वाला व्यय कम हो जाता है जिससे उन पर बकरी पालन का भार कम पड़ता है।

3. सघन विधि - व्यवसायिक स्तर पर बकरी पालन करने के लिए सघन विधि का पालन किया जाता है। सघन विधि में एक व्यवस्थित बाड़ा प्रक्षेत्र बनाकर बकरियों को एक जगह पर रहने और खाने की व्यवस्था की जाती है, बकरी पालन में यह विधि सबसे सफल मानी जाती है इसमें बकरियों का शारीरिक विकास बहुत शीघ्र होता है क्योंकि इसमें बकरियों के लिए समय पर भोजन की तथा जल की व्यवस्था की जाती है।

सिरोही प्रजाति की देखरेखः- बकरियों की उचित स्वास्थ्य हेतु इनके ब्याने के 6-8 सप्ताह पूर्व ही दूध निकालना बंद कर देना चाहिए। गाभिन बकरियों को ब्याने से 15 दिन पूर्व स्वच्छ, खुले और कीटाणु रहित ब्याने वाले कमरे में रखना चाहिए।

मेमनों की देखरेखः- जन्म के तुरंत बाद साफ-सुथरे और सूखे कपड़ों से मेमनों के शरीर और उसके नाक, मुंह, कान में से म्यूकस साफ कर देना चाहिए। नए जन्में बच्चें के शरीर को तौलिए से अच्छी तरह से हल्के हाथों से रगड़ना चाहिए। सांस न ले रहा हो तो उसे पिछली टांगों से पकड़ कर उल्टा कर दें जिससे उसका सिर नीचे की ओर हो जाए और पैर ऊपर की ओर आ जाए इससे उसके श्वसन तंत्र सुचारू रूप से चलने लगेगा। बकरी के लेवे को टिंचर आयोडीन से साफ करें और फिर बच्चे को जन्म के 30 मिनट के अंदर पहली खीस पिलायें।

ब्याने के बाद बकरियों की देखरेखः- ब्यांत वाले कमरे को ब्याने के तुरंत बाद साफ और कीटाणु रहित करें। बकरी का पिछला हिस्सा टिंचर आयोडीन या नीम के पानी या हल्के गर्म पानी से साफ करें। बकरी को ब्याने के बाद गर्म पानी मे गुड़ तथा अजवाईन मिलाकर पिलायें। उसके बाद गर्म चूरे का दलिया जिसमें थोड़ी सी अदरक, नमक, धातुओं का चूरा और गुड़ आदि मिला हो खिलाना चाहिए।

मेमनों पर पहचान चिन्ह लगानाः- पशुओं के उचित अभिलेख रखने उचित खुराक खिलाने, उचित प्रबंधन, बीमा के लिए और मालीकाना हक साबित करने के लिए उन्हें नंबर लगाकर पहचान देना आवश्यक है। यह मुख्यतः टैटूइंग, टैगिंग वैक्स मार्किंग, क्रियाँन, स्प्रे, चाँक, रंग बिरंगे स्प्रे और पेंट ब्रांडिग से किया जाता है। 

सिरोही बकरी की कीमतः- सिरोही बकरी की कीमत उसके भार और उसके आकार के आधार पर की जाती है तथा इसके ऊपर भी निर्भर करता है कि आपके आसपास के क्षेत्र मे सिरोही बकरी की उपलब्धता कैसी है। सिरोही बकरी के बच्चे की कीमत 700-1200 रूपये प्रति नर या मादा के हिसाब से मिल जाती है। 

डा.सोनू कुमार यादव1, डा. अंजनी कुमार मिश्रा2, डा. राजेश कुमार वांद्रे3, डा. नितिन मोहन गुप्ता4 एवं डा. ऋषिकांत त्रिपाठी5

पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महा विधालय रीवा म.प्र.

1 पी.एच.डी स्कालर

2 प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष

3 सहायक प्राध्यापक

4 पी.एच.डी स्कालर

5 एम.व्ही.एस.सी.