श्वेत क्रांति के महानायक डॉक्टर वरगिस कुरियन


पशु संदेश, भोपाल।
देश में श्वेत क्रांति के महानायक डॉ. वरिगस कुरियन किसी परिचय के मौहताज नहीं हैं। उनके अथक प्रयासों से ही आज भारत दुग्ध उत्पादन में विश्व का सरताज है। उन्होंने अर्थव्यवस्था में हाशिये पर पड़े छोटे-छोटे दुग्ध उत्पादक किसानों को सहकारिता का हथियार देकर देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे आज हमारे बीच तो नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा तैयार की बुनियाद पर ही भारत का दुग्ध उद्योग खड़ा है। यही वे सख्श थें जिन्होंने आजादी के समय दूध की कमी से जूझ रहे भारत को दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का भागीरथी काम किया।
डॉ. वरगिस कुरियन का जन्म 23 नवंबर 1921 में केरल के कोजिकोड में हुआ था। वे बचपन से ही इंजीनियर बनना चाहते थे। सन् 1943 में मद्रास के जीसी इंजीनियरिंग कॉलेज से डॉ. कुरियन ने मैकेनिकल ब्रांच में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 1944 में जमशेदपुर में टाटा की टिस्को कंपनी में नौकरी शुरू कर दी। टिस्कों में रहते हुए उन्हें उच्च अध्ययन के लिए सरकार से छात्रवृत्ति मिली। वे मेटालर्जी के क्षेत्र में अध्ययन करना चाहते थे, लेकिन अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी में उन्हें डेयरी इंजीनियरिंग विषय में दाखिला मिला। 1948 में मिशिगन यूनिवर्सिटी से डेयरी इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद वह स्वदेश लौट आए। मिशिगन यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने से पूर्व डॉ. कुरियन ने बेंगलोर के इंपीरियल इंस्टीट्यूट ऑफ एनीमल हसबेंडरी से प्रशिक्षण प्राप्त किया।
विदेश में पढ़ाई करने के बाद छात्रवृत्ति की बाद्यता के कारण उन्हें गुजरात के आनंद में डेयरी इंजीनियर के पद पर सरकारी नौकरी करनी पड़ी। अमेरिका में पढ़ाई करने के कारण उन्हें आनंद में नौकरी करना किसी छोटे कस्बे में काम करने की तरह लग रहा था। वे आनंद डेयरी में किसी तरह समय काटकर बड़े शहर का रुख करना चाहते थे।

यहां डॉ. कुरियन दिन में तो नौकरी करते थे, लेकिन रात होते ही खेड़ा दुग्ध संघ के किसानों की मदद् के लिए पहुंच जाते थे। यहीं उनकी पहचान संघ के अध्यक्ष त्रिभुवन पटेल से हुई। पटेल के विशेष आग्रह पर उन्हें आनंद छोडऩे का अपना फैसला बदलना पड़ा। पटेल के कहने पर वे आनंद में रहने के लिए तैयार हो गए और उन्होंने खेड़ा दुग्ध संघ में मैनेजर का पद संभालना लिया। खेड़ा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ में उस समय केवल दो ग्रामीण डेयरी समितियां थीं और महज 247 लीटर दूध का संग्रहण होता था। यहां रहते हुए डॉ. कुरियन ने छोटे-छोटे दुग्ध उत्पादक किसानों को सहकारी समितियों के माध्यम से संगठित कर उनके उत्पाद का मुनाफा बिना किसी दलाल के सीधे किसानों तक पहुंचाकर देश में दुग्ध सहकारिता की आधाशिला रखी। यही पर अमूल ब्रांड का जन्म हुआ। त्रिभुवन भाई पटेल के प्रेरक नेतृत्व और उनका डॉ. कुरियन पर अटूट विश्वास अमूल को एक के बाद एक सफलता की नई ऊंचाइयों पर ले गया। सहकारिता की इस सफल परियोजना को अमूल मॉडल के नाम से जाना गया और इस मॉडल को देश भर में अपनाया भी गया।
नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की स्थापना
अमूल मॉडल से पंडित लाल बहादुर शास्त्री इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने इसे देश भर में फैलाने के लिए 1965 में डॉ. कुरियन के नेतृत्व नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की स्थापना (एनडीडीबी) का गठन किया। देश में श्वेत क्रांति लाने वाले ऑपेरशन फ्लड का संचालन एनडीडीबी के माध्यम से ही किया गया था।
गुजरात मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन में योगदान
गुजरात के विभिन्न जिलों में कार्यरत दुग्ध संघों में आपसी प्रतिस्पिर्धा रोकने के लिए, व्यय में कटौती के लिए एवं मार्केटिंग को सुचारू बनाने के लिए 1973 में गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन की स्थापना की। 1973 में इसकी स्थापना से लेकर सन् 2006 तक लगातार 34 वर्ष डॉ. कुरियन इसके अध्यक्ष रहे।
डॉक्टर कुरियन ने यहां एक तरफ श्वेत क्रांति के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नया अयाम दिया, वहीं दूसरी ओर शहरों में दूध एवं दुग्ध उत्पादों की पहुंच को सहज बनाकर लोगों तक दूध की उपलब्धता सुनिश्चित की। उनका मानना था कि किसानों के हाथ में प्राद्योगिकी एवं व्यवसायिक प्रबंधन उपलब्ध कराने से लाखों गरीब ग्रामीणों का जीवन स्तर सुधारा जा सकता है।

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