पशुओं में मुख्य खाद्यजन्य विशाक्तता कारण एवं निदान

Pashu Sandesh, 12 April 2022

डॉ. देव किशन गुर्जर

टीचिंग एसोसिएट

पशुधन उत्पाद एवं प्रबंधन विभाग

पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय, नवानिया, वल्लभनगर, उदयपुर

पशु पालन व्यवसाय में आहार पर सर्वाधिक व्यय होने के कारण सस्ते एवं संतुलित आहार का विषेश महत्व है। हरे चारे से न्यूनतम दर पर पोशक तत्वों की आपूर्ति के कारण इन्हें सर्वोत्तम पशु आहार माना गया है किन्तु वर्तमान में अकाल की भीशण स्थिति के कारण इनकी उपलब्धता अत्यन्त कम है। चारे की फसलों की बुवाई के उपरान्त पानी के अभाव के कारण फसलों में वृद्धि रूक जाती है एवं चारा मुर्झाकर सूखने लगता है। इस प्रकार के अविकसित एवं मुर्झाये हुए चारे में विशाक्त तत्व होते हैं, जिनके सेवन से पशु ओं में खाद्यजन्य विशाक्तता हो जाती है।

अकाल के दौरान हरे चारे के अभाव में पोशक तत्वों की आपूर्ति हेतु भूसे एवं अन्य सूखे रेषेदार चारे को यूरिया उपचारित कर पशु ओं को खिलाया जाता है। यूरिया उपचारित सूखा चारा तैयार करते समय असावधानी से या यूरिया उपचारित चारे की अधिक मात्रा के सेवन से भी विशाक्तता हो जाती है। पशु ओं में खाद्यजन्य विशाक्तता कई कारणों से हो सकती है जिन पर पशु पालकों का कोई नियंत्रण नहीं होता है, किन्तु कुछ विशाक्ताएंे जो प्रायः पशु पालकों की जानकारी के अभाव में हो जाती हैं इन पर पशु पालक कुछ सावधानियाँ रखते हुए अपने पशु ओं को इनके प्रभाव से बचाये रख सकते हैं ये विशाक्ताऐं निम्न हैंः

सायनाइड विशाक्तता

नाइट्रेट विशाक्तता

यूरिया विशाक्तता

1. सायनाइड विशाक्तता: यह विशाक्तता मुख्यतः ऐसे चारों के सेवन से होती है जिनमें सायनोजेनिक ग्लुकोसाइड होते हैं। इन ग्लुकोसाइड पर चारे अथवा रूमेन में मौजूद एन्जाइम की क्रिया से हाइड्रोसायनिक अम्ल निकलता है, जो विशाक्त होता है। सायनाइड विशाक्तता में ऑक्सीजन के वाहक एन्जाइम्स प्रभावित होने के कारण षरीर के ऊत्तको में ऑक्सीजन नहीं पहुँच पाती जिससे दम घुटने से पशु की मृत्यु हो जाती है। यूं तो ऐसे कई पौधे/चारे हैं, जिनके सेवन से सायनाइड विशाक्तता हो सकती है, किन्तु इनमें सायनाइड की मात्रा विभिन्न मौसमों एवं पौधों के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न होती है। मुख्यतः ज्वार, बाजरा, चरी आदि चारों में कभी-कभी कुछ विषेश परिस्थितियों में सायनोजनिक ग्लुकोसाइड की अधिक मात्रा के कारण उनके सेवन से पशु ओं की मृत्यु हो जाती है।

चारे में विश की मात्रा उसकी अवस्था, भूमि में नाइट्रोजन की उपस्थिति, किसान द्वारा बुवाई के समय चारे की वृद्धि हेतु दी गई यूरिया या अन्य खाद एवं पानी की कमी आदि कारको पर निर्भर करती है। विषेश रूप से पानी की कमी के कारण पौधों की वृद्धि एवं विकास रूक गया हो, पत्तियाँ सूखकर मुर्झा गई हों व पीली पड़ गई हों, ऐसे चारे में सायनाइड की मात्रा बढ़ जाती है। हरे चारे के अभाव में भूखे पशु यह चारा देखते ही लालच वष इसे खा लेते हैं। जानकारी के अभाव में पशु पालक भी मुर्झायी हुई एवं अविकसित ज्वार, बाजरा एवं चरी को हरे चारे के अभाव में देने लगते हैं जिससे पशु की मृत्यु तक हो जाती है।

लक्षण: सायनाइड युक्त चारे के अचानक अधिक सेवन के 10-15 मिनट बाद ही पशु में विशाक्तता के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।

पशु बैचेन होने लगता है, मुँह से लार गिरने लगती है।

सांस लेने में कठिनाई होने लगती है व पशु मुँह खोलकर सांस लेने लगता है।

मांस पेषियों में ऐंठन व दर्द होने लगता है, पशु अत्यंत कमजोरी की वजह से लड़खड़ा कर जमीन पर गिर जाता है।

पशु अपने सिर को पेट की ओर घुमाकर रखता है।

मुँह से कड़वे बादाम जैसी गंघ आती है।

रक्त का रंग चमकीला लाल हो जाता है।

मृत्यु के समय दम घुटने जैसी कराह एवं पीड़ा होती है।

उपचार:

सायनाइड विशाक्तता के लक्षण प्रकट होते ही पशु को सोडियम नाइट्राइड 3 ग्राम एवं सोडियम थायोसल्फेट 15 ग्राम 200 मी.ली. डिस्टिल्ड पानी में घोलकर नस द्वारा देना चाहिए।

सोडियम थायोसल्फेट 30-60 ग्राम मुँह से देना चाहिए।

साइनाइड ग्रस्त चारा खाये हुए पशु को पानी नहीं पिलाना चाहिए।

बचाव:

चारागाहों में चराने ले गये पशु ओं को कम बढ़ी हुई ज्वार, बाजरा, चरी की फसल नहीं खाने दें।

अच्छी सिंचाई की गई ज्वार व चरी ही पशु ओं को हरे चारे के रूप में दें। दो-चार बार अच्छी बारिष होने के बाद बढ़ी हुई फसल ही पशु ओं को खिलाएँ।

सायनाइड ग्रस्त चारे को कुछ समय तक सुखाने के बाद उसमें षीरा मिलाकर साइलेज के रूप में खिलाने से भी विश का प्रभाव कम हो जाता है।

छोटे मुर्झायें हुए पीले व सूखकर ऐंठे हुए पौधों को चारे के रूप में उपयोग नहीं करें।

2. नाइट्रेट विशाक्तता: यह विशाक्तता उच्च नाइट्रेट युक्त चारे के सेवन से होती है। चारे में नाइट्रेट की मात्रा सामान्यतः अधिक नहीं होती किन्तु जब नाइट्रोजन युक्त उर्वरक अधिक मात्रा में भूमि में दे दिये जाते है तो उस भूमि पर उगने वाले हरे चारे विषेश कर मक्का, जई, सूडान घास आदि में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है। नाइट्रेट विशाक्तता मुख्यतः ऐसे चारों के सेवन से होती है जिनकी वृद्धि सूखे या अन्य विपदाओं के कारण रूक गई हो। इस चारे की जड़े वृद्धि रूक जाने के उपरान्त भी नाइट्रेट अवषोशित करती है। नाइट्रेट का अन्य वाहक पानी है अतः उच्च नाइट्रेट युक्त पानी के सेवन से भी पशु ओं में विशाक्तता हो जाती है।

उच्च नाइट्रेट युक्त चारे/पानी के अधिक मात्रा के सेवन से नाइट्रेट का नाइट्राईट में परिवर्तन हो जाता है जो अत्यन्त विशाक्त होता है। यह रक्त में पहुंच कर हीमोग्लोबिन को मेट-हीमोग्लोबिन में बदल देता है जिससे षरीर के विभिन्न उत्तकों में आक्सीजन नहीं पहुंच पाती। चारे में षुश्क आधार पर 0.15 प्रतिषत तक नाइट्रेट नाइट्रोजन हानिकारक नहीं होती जबकि 0.45 प्रतिषत से अधिक मात्रा अत्यन्त विशाक्त होती है। इसी तरह पीने के पानी में 100 पी.पी.एम. नाइट्रेट नाइट्रोजन एवं 10 पी.पी.एम. नाइट्राईट नाइट्रोजन हानिकारक नही है किन्तु 300 पी.पी.एम. से अधिक नाइट्रेट नाइट्रोजन युक्त पानी के सेवन से विशाक्तता हो जाती है।

लक्षण:

नाइट्रेट विशाक्तता होने पर पशु की ष्वसन एवं नाड़ी दर बड़ जाती है।

सांस लेने में कठिनाई, मांसपेषियों में ऐंठन व कमजोरी आ जाती है।

पशु अपने सिर को पेट की तरफ घुमाकर रखता है व मुँह खुला रखता है।

ऑक्सीजन की कमी के कारण आँख, नाक एवं मुँह की ष्लेश्मा झिल्ली गहरे रंग की हो जाती है।

विशाक्तता की तीव्र अवस्था में रक्त का रंग चॉकलेटी-भूरा हो जाता है एवं पशु की 1 से 4 घंटे में मृत्यु हो जाती है।

उपचार:

मेथिलीन ब्लू के 1 प्रतिषत विलयन की 50-100 मी.ली. मात्रा सीधे ही नस में देना चाहिए।

एस्कॉर्बिक एसिड 5 मि.ग्रा. प्रति कि.ग्रा षरीर भार के अनुसार नस में देना चाहिए।

बचाव:

नाईट्रेट युक्त चारे की थोड़ी-थोड़ी मात्रा देते हुए लगभग एक माह में इसकी मात्रा बढ़ायी जा सकती है।

छोटे, सूखकर ऐंठे हुए व पीले मुर्झाये हुए पौधों का चारे के रूप में उपयोग नहीं लाना चाहिए।

3. यूरिया विशाक्तता: हरे चारे एवं दाने की कमी के कारण पशु ओं निर्भरता सूखे रेषेदार चारे पर बढ़ जाती है। इस प्रकार के चारे की पौश्टिकता बढ़ाने के लिए सबसे बढ़िया, सस्ती, सरल एवं कारगर विधि है, युरिया उपचारित चारा। यूरिया उपचार में जरा सी भी असावधानी पशु की मौत का कारण बन सकती है। चारा उपचारित करते समय यदि यूरिया के घोल को ठीक से नहीं मिलाया जाये, पशु द्वारा यूरिया का घोल पी लिया जाये अथवा यूरिया उपचारित चारा अधिक मात्रा में खा लिया जाये तो पशु को यूरिया विशाक्तता हो जाती है।

यूरिया विशाक्तता रक्त में अमोनिया की मात्रा बढ़ जाने के कारण होती है। यूरिया रूमेन में पहुंचकर अमोनिया में बदल जाती है जिसे रूमेन में मौजूद जीवाणु उपयोग में लेकर जीवाणु प्रोटीन बना लेते हैं, किन्तु यूरिया की अधिक मात्रा के सेवन से अधिक मात्रा में बनी अमोनिया पूर्ण रूप से जीवाणु प्रोटीन बनाने में उपयोग में नहीं आ पाती। रूमेन द्रव में अमोनिया की मात्रा बढ़ जाने से रूमेन का पी.एच. बढ़ जाता है एवं अमोनिया का अवषोशण भी बढ़ जाता है जिससे रूमेन द्रव में अमोनिकल नाइट्रोजन बढ़ जाती है रूमेन में जीवाणु प्रोटीन के संष्लेशण हेतु अमोनिकल नाइट्रोजन मात्र 5-7 मि.ग्रा/100 मि.ली होनी चाहिए किन्तु विशाक्तता की स्थिति में रूमेन द्रव में यह 80 मि.ग्रा./100 मि.ली. एवं रक्त में 0.7-0.8 मि.ग्रा./100 मि.ली. हो जाती है।

लक्षण:

यूरिया विशाक्तता से पशु बैचेन एवं सुस्त हो जाता है, मुँह से अधिक मात्रा में लार टपकती है।

माँसपेषियों में ऐंठन होने लगती है। एवं पशु लड़खड़ाने लगता है।

पशु को आफरा हो जाता है एवं सांस लेने में कठिनाई होती है।

पशु बार-बार पेषाब व गोबर करता है।

यूरिया की अधिक मात्रा के सेवन से पशु की षीघ्र ही मृत्यु हो जाती है।

उपचार:

यूरिया विशाक्तता के लक्षण प्रकट होते ही पशु को सर्वप्रथम 25-30 लीटर ठंडा पानी पिलाना चाहिये। पानी में थोड़ा गुड़ या षीरा मिलाने से पशु आसानी से पानी पी लेता है।

100-200 मि.ली. एसीटिक एसिड (सिरका) 2-5 लीटर पानी में मिलाकर पिलाना चाहिए। (विशाक्तता के प्रभाव के अनुसार सिरके की मात्रा बढ़ाई जा सकती है)

बचाव:

चारा उपचारित करने हेतु उपयोग में लिये जा रहे यूरिया एवं यूरिया के घोल को पशु से दूर रखें।

चारे को यूरिया उपचारित करते समय पूरी सावधानी बरते तथा यूरिया की निर्धारित मात्रा ही उपयोग करें।

चारे में यूरिया के घोल को भली-भांति मिलायें।

उपचारित चारे को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में अन्य सामान्य चारे के साथ मिलाकर दें।

उपचारित चारे के साथ पशु ओं को पर्याप्त मात्रा में पानी पिलावें।

पशु पालकों भाई ध्यान रखे कि उनके पशु कम बढ़ी हुई एवं सूखी ज्वार, बाजरा, चरी, मक्का, जई आदि की फसलें न खायें। यूरिया उपचार करते समय यूरिया की सही मात्रा का प्रयोग करें एवं यूरिया उपचारित चारे की मात्रा आहार में धीरे-धीरे बढ़ायें।