पशुओं में अढ़ैया बुखार: लक्षण एवं बुखार

Pashu Sandesh, 13 August 2021

अमिता तिवारी, ब्रजेश सिंह, शशि प्रधान, कविता राय, अर्पणा रायकवार एवं देवेन्द्र गुप्ता

डिपार्टमेन्ट आफ वेटेरनरी मेडीसिन

कालेज आफ वेटेरनरी साईंस एण्ड ए.एच. जबलपुर

अढ़ैया बुखार अथवा एफीमेरल फीवर गौवंशीय पशुओं एवं भैंसो का एक महत्वपूर्ण रोग है। यह एक विषाणु जनित रोग है। इस रोग से ग्रसित पशुओं में 105-107°थ् तक ज्वर होता है तथा एक-एक करके चारो पैरों में लंगड़ापन आ जाता है। यह रोग प्रायः बरसात की शुरूआत में अथवा गर्मी के मौसम में पाया जाता है। इस रोग को फैलाने में संेडफ्लाई जो कि एक प्रकार की मक्खी है की महत्वपूर्ण भूमिका है जिसके काटने से विषाणु स्वस्थ पशु के शरीर में प्रवेश कर जाते है और इस प्रकार पशु रोग ग्रसित हो जाते है। 

इस रोग के प्रमुख लक्षणों में बहुत अधिक बुखार जिसका प्रकोप ढाई से तीन दिन तक रहता है। पशुओं का खाना पीना धीरे-धीरे कम होता है फिर वे पूर्ण रूप से खाना-पीना बंद कर देते है। दुधारू पशुओं का दूध सूख जाता है पशुओं के जोड़ो में दर्द रहता है जिसके कारण वे ठीक से खड़े नहीं हो पाते है तथा धीरे-धीरे जमीन पर लेट जाते है। माँसपेशियों में अकड़पन, सूजन तथा कंपन बना रहता है। अक्सर बीमार पशुओं में कब्ज की शिकायत रहती है तथा गोबर भी सूखा होता है। कभी-कभी पशुओं में खाँसी तथा आँखों से आँसू भी आते रहते है। 

चूंकि यह एक प्रकार का विषाणु जनित रोग है अतः इस रोग में एंटीबायोटिक की आवश्यकता नहीं होती परन्तु अतिरिक्त जीवाणुओं की रोकथाम हेतु एंटीबायोटिक दी जा सकती है। इसके अतिरिक्त पशुओं को ज्वर कम करने हेतु एनालजिन की सुई भी लगाई जानी चाहिए। बुखार कम करने के साथ-साथ रोग ग्रसित पशुओं को तीन से चार लीटर नार्मल सेलाईन की बाटल भी दी जाती है। इसके अतिरिक्त अन्य लाक्षणिक चिकित्सा भी की जा सकती है।