पशु संदेश, 23 Sep 2019
डाॅ. अंकित कुमार सिंह, डाॅ. राजेश कुमार एव डाॅ. धर्मेन्द छारंग,डाॅ. ब्रह्मानन्द
गौवंश पशुओं का आमाशय विषेश प्रकार का होता है। इसमें चार भाग होते हैं और प्रथम भाग-रोमान्थी का आयतन बहुत अधिक होता है। रोमान्थी में असंख्य बैक्टीरिया और प्रोटोजुआ निवास करते हैं। यही कारण है कि गौवंशी अपनी प्रोटीन की आवश्यकता आहार में यूरिया, यूरिक अम्ल, एमाईड आदि अप्रत्यामिनिक नाइट्रोजन यौगिक का भक्षण करके पूरी करने में सक्षम है। राोमान्थी में यूरिया नाइट्रोजन से प्रोटीन संश्लेषण की उपयोगिता बढ़ाने के लिये यह आवश्यक है कि आहर में यूरिया के साथ घुलनशील कार्बोहाईडेªट (शर्करा/मंड) समृद्ध खाद्य की प्रचुर मात्रा खिलाई जाए। कई बाढ़ग्रस्त प्रदेशों में शर्करा उद्योग बहुत विकसित है तथा शर्करा उद्योग के प्रमुख उपोत्पाद चेफुआ/खोई और शीरा की उपलब्धि संभव है। शीरा इस समय घुलनशील कार्बोहाइडेªट समृद्ध खाद्य का एक सस्ता साधन है तथा इसमें यूरिया मिश्रित करके गौवंश पशुओं सरल और सुगम है। पशुओं को अधिक मात्रा में शीरा तथा यूरिया खिलाने से इनका गोबर ढीला हो जाता है और इससे अतिसार का भ्रम होता है। यह संशय आधारहीन और भ्रामक है।
यूरिया-शीरा तरल खाद्य क्या है?
शीरे में 2-3 प्रतिशत यूरिया को 1.5 प्रतिशत खनिज मिश्रण 0.5 प्रतिशत लवण और लगभग दस लाख इकाई (आई.यू.) विटामिन-ए योगज को भलीभांति मिश्रित करके बनाए गये खाद्य को यूरिया-शीरा तरल खाद्य कहते हैं।
पशु सहायता शिविरों में यूरिया-शीरा तरल खाद्य का उपयोग
बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों के कई प्रदेशों में बहुत ही सस्ते दर पर शीरा उपलब्ध होने तथा प्रोटीन आवश्यकता को पूरा करने के लिए शीरा में यूरिया मिश्रित करके सुगमतापूर्वक यूरिया-शीरा तरल खाद्य बनाने की सरल विधि के कारण आसानी से इसे बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों के लिए राहत शिविरों पर गौवंशी (गाय व भैंस) पशुओं को कम खर्च पर खिलाने के लिए अपनाया जा सकता है।
यूरिया-शीरा तरल खाद्य बनाने की विधि
बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में अलग-अलग स्थानों पर सुविधानुसार शिविरों में पशुओं की संख्या 50 से 500 या अधिक हो सकती है और शिविर में खिलाने के लिए भिन्न-भिन्न मात्रा में यूरिया-शीरा सरल खाद्य बनाने की आवश्यकता पड़ेगी। साथ ही अल्प संख्या (3 से 10 तक) में पशु पालने वाले समर्थ किसान भी इस कुसमय में अपने पशुओं को यह सस्ता आहार आसानी से बनाकर सुगमता पूर्वक खिला सकते हैं। इसलिए विभिन्न मात्राओं में यूरिया-शीरा तरल खाद्य बनाने के लिए आवश्यक सामग्री का विवरण देते हुए इसे बनाने की सरल विधि का वर्णन किया जा रहा हैः-
अ-एक कन्तल यूरिया-शीरा तरल खाद्य बनाने के लिए आवश्यक सामग्री
1 टीन का नाद/गुड़ पकाने का कड़ाहा/कोलतार या कैरोसिन के तेल के ड्रम का अद्धा/ सीमेंट व ईंटों का बना हौज/अन्य कोई बर्तन।
2 बाल्टी (धारिता 8-10 लीटर) एक।
3 मिलाने के लिए लकड़ी का घोटना।
4 जाड़ों में गर्म करने का इन्तजाम।
ब-एक टन यूरिया-शीरा तरल खाद्य बनाने के लिए दो बड़े बर्तनों की आवश्यकता होगी।
1 तरल खाद्य बनाने के लिए 1.1 टन धारिता का हौज या कोई अन्य बर्तन।
2 यूरिया घोलने के लिए लगभग 70 लीटर धारिता का एक दूसरा बर्तन।
यूरिया-शीरा तरल खाद्य बनाने के लिए विभिन्न पदार्थों की मात्रा को निम्नलिखित सारणी में दिया गया हैः-
सामग्री आवश्यक मात्रा
एक कुन्तल मेंएक टन में
खाद्य वाली यूरिया (कि.ग्रा.) 2.5 25
पीने का पानी (लीटर) 2.5 25
खनिज मिश्रण (कि.ग्रा.) 1.5 15
पीसा हुआ नमक (कि.ग्रा.) 0.5 05
शीरा (कि.ग्रा.) 93.0 930
लागत (रुपया) 13.0 130
रोबीमिक्स/बीटाब्लेन्ड (ग्रा.) (विटामिन ए) 25 250
नोटः- जब किसी भी प्रकार के हरे चारे की न्यूनतम मात्रा (2-3 कि.ग्रा. प्रति पशु प्रतिदिन) भी अधिक दिनों तक खिलाने के लिए उपलब्ध न हो सके तो विटामिन-ए योगज आहार में खिलाना चाहिए।
बनाने की विधिः- एक ड्रम में लगभग तीन कुन्तल शीरा की मात्रा होती है। यूरिया-शीरा तरल खाद्य बनाने के लिए सर्वप्रथम शीरे को तौलकर (मापकर) बड़े बर्तन में ले लिया जाए। इसके बाद आवश्यक मात्रा में यूरिया तौलकर उसे समान मात्रा पेयजल में दूसरे बर्तन में लेकर घोल बना लिया जाए। अब यूरिया के जलीय घोल को एक बाल्टी या अन्य उपलब्ध बर्तन की सहायता से शीरे में डाला जाए तथा साथ ही इसे लकड़ी के घोटना अथवा किसी मजबूत अहनी या बांस के डण्डे से अच्छी प्रकार चला-चला कर मिलाया जाए। इसके साथ ही खनिज मिश्रण और पिसे हुए नमक को मिलाया जाता है। इस मिश्रण को लगभग 10-15 मिनट तक अच्छी प्रकार मिलाने से यूरिया-शीरा तरल खाद्य तैयार हो जाता है। इस खाद्य में शुष्क पदार्थ 65 प्रतिषत से अधिक होता है और शुष्क वातावरण में इसे कई सप्ताह तक नष्ट होने से बचाया जा सकता है। बरसात के दिनों में यह खाद्य ढक कर रखना चाहिए और एक बार में लगभग एक सप्ताह के लिए बनाकर खिलाना चाहिए।
सावधानियाँ
1 यूरिया और शीरा की सही मात्रा लेनी चाहिए।
2 यूरिया को शीरे में अच्छी प्रकार मिश्रित करना आवश्यक है।
3 यूरिया-शीरा तरल खाद्य को अच्छी प्रकार ढक कर रखना चाहिए अन्यथा इसमें चूहे, बिल्ली, कुत्ते, गीदड़, लोमड़ी आदि गिरकर मर सकते हैं। इससे खाद्य पदार्थ पशुओं को खिलाने के लिए अनुपयोगी हो जाएगा।
4 प्रत्येक बार खिलाने से पहले यूरिया-शीरा तरल खाद्य को एक डण्डे/घोटने से चलाकर मिला लेना चाहिए।
5 अधिक मात्रा में यूरिया-शीरा तरल खाद्य खिलाने के साथ पशुओं को इच्छानुसार पेयजल भी उपलब्ध होना चाहिए।
बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों के गौवंषी पशुओं को यूरिया-शीरा तरल खाद्य खिलाने की विधि।
बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में अधिकांश पशुओं को पूर्ण आहार मिलने की सम्भावना कम होती है और पशु लम्बी अवधि तक आधा पेट चारा खाए हैं तथा उपवास भी किए हैं इसलिए उन्हें यूरिया-शीरा तरल खाद्य निम्नांकित विधि द्वारा खिलाना चाहिएः-
1 यूरिया-शीरा तरल खाद्य खिलाने से पूर्व दो दिनों तक सभी पशुओं को भरपेट चारा (सूखा या हरा जो भी हो) खिलाया जाए। एक पशु की दैनिक आवश्यकता 6-8 कि.ग्रा. भूसा या 20-25 कि.ग्रा. पेड़ का हरा पत्ता या 10-15 कि.ग्रा. गन्ने का गेड़/अगोला है।
2 तीसरे दिन प्रति पशु को 5 कि.ग्रा. भूसा या अन्य सूखे चारे के साथ 1 कि.ग्रा. यूरिया-शीरा तरल खाद्य खाने के लिए दिया जाए।
3 इसके बाद में 7 दिनों तक चारा (भूसा/पुआल) की मात्रा घटाकर 3 कि.ग्रा. प्रति पशु प्रति दिन कर दिया जाए और इसके साथ 3-4 कि.ग्रा. यूरिया-शीरा तरल खाद्य खिलाया जाए।
4 ग्यारवें दिन से पशुओं को 3 कि.ग्रा. सूखा चारा खिलाने के पश्चात् उन्हें इच्छानुसार यूरिया-शीरा खाने के लिए स्वतंत्र कर देना चाहिए।
5 क्षेत्र में जो भी खिलाने योग्य हरा चारा (पेड़ के पत्ते, ताल-तलैयों के जलीय पौधे इत्यादि) उपलब्ध हो, वह कम से कम 2 कि.ग्रा. प्रति पशु प्रतिदिन खिलाना चाहिए। इससे विटामिन-ए की आवश्यकता पूरी होती है।
6 काम करने वाले बैल, दुधारु गाय-भैंस तथा वर्धमान तरुण गोवत्सों को यूरिया-शीरा तरल खाद्य के साथ प्रोटीन के लिए अन्य प्रचलित खाद्यों (मूँगफली की खली, तिल की खली, अलसी की खली) की 300-500 ग्राम खिलाना चाहिए।
7 दुधारु गाय व भैंस जो 5 से 10 कि.ग्रा. प्रतिदिन दूध देती है उन्हें यूरिया-शीरा तरल आहार के साथ 0.5 से 1.0 तक प्रति पशु प्रतिदिन की दर से मक्का, जौ, जई या अन्य ऊर्जा समृद्ध खाद्य खिलाना चाहिए।
डाॅ. अंकित कुमार सिंह, डाॅ. राजेश कुमार एव डाॅ. धर्मेन्द छारंग
स्नातकोतर पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, जयपुर
एवं
डाॅ. ब्रह्मानन्द
अपोलो काॅलेज आॅफ वेटेरनरी मेडिसीन, जयपुर