साफ-सफाई से दूध दुहने के तरीके

पशु संदेश, 25th November 2019

श्रीजा सिन्हा, अनुराधा गुप्ता, सुधानंद प्रसाद लाल और लामेल्ला ओझा

दूध एक सम्पूर्ण आहार है जिसमे प्रोटीन, वसा, खजिन लवण एवं विटामिन जैसे अनेक आवश्यक तत्व पाएं जातें हैं। डेरी फार्मिंग में स्वच्छ दुग्ध उत्पादन का बहुत महत्व है। दूध गुणवत्ता में

सुधार करने के लिए निम्न लिखित तरीकों को अपनाया जाना चाहिए।

केवल स्वच्छ और स्वस्थ पशुओं का ही दूध दुहा जाना चाहिए।

प्रतिदिन अच्छे तरीके से पशुओं को ताजा पानी से नहलाना चाहिए और इसके पश्चात उनके शरीर के समूचे पानी को नीचे बह जाने दें, ताकि उनके शरीर को पूरी तरह से सुखाया जा सके।हर बार दूध दुहने से पहले थन एवं निप्पल को अवश्य ही गुनगुने पानी से साफ किया जाना चाहिए ओर फिर इसके बाद एक साफ तौलिये से उन्हें पोंछ देना चाहिए। स्वच्छ दूध निकालने के लिए गायों और भैंसों को उस शेड में नहीं दुहा जाना चाहिए जहां उन्हें आमतौर पर रखा जाता है, बल्कि उन्हें अलग स्थान जैसे कि विशेष गौशाला या पार्लर में ही दुहा जाना चाहिए। यदि कोई अलग गौशाला/पार्लर कतई संभव न हो तो उन्हें सामान्य आवासीय क्षेत्र से दूर किसी और स्थान पर दुहा जाना चाहिए।

आमतौर पर प्रतिदिन दो बार मुख्यतः सुबह और शाम में इन्हें दुहा जाना चाहिए। हालांकि यदि कोई पशु ज्यादा दूध देने में समर्थ हो और चरवाहों इत्यादि की उपलब्धता भी अधिक हो तो प्रतिदिन तीन बार अर्थात सुबह, दोपहर एवं शाम में इन्हें दुहा जाना चाहिए और दुहने के समय में समान अंतराल रखा जाना चाहिए।

दुहने का कार्य आराम-आराम से, शान्त माहौल में, सफाई के साथ पूरी तरह से और नियमित अंतराल पर किया जाना चाहिए।
दूध दुहने से पहले थन की मालिश की जानी चाहिए, जिससे दूध को निप्पल में उतारने/दूध निकालने में आसानी होती है।
दूध दुहने का कार्य 5 से 8 मिनटों में ही पूरा कर लेना चाहिए।
दूध को या तो हाथों अथवा मशीन की मदद से निकाला जा सकता है।
हाथों से दूध निकालते समय पूरे हाथ अथवा मुटठी के इस्तेमाल को ही सर्वोत्तम तरीका माना जाता है, अंगुलियों के पोर से दबाकर दूध दुहने से बचना चाहिए क्योंकि यह पशुओं के लिए कष्टदायक होता है और इससे निप्पल के चोटग्रस्त हो जाने का अंदेशा भी रहता है।
मशीन से दूध निकालने के कार्य को बड़े फार्म में अपनाया जा सकता है क्योंकि वहां यह किफायती साबित होगा।
किसी बीमार पशु एवं दवाओं का सेवन करने वाले पशुओं से निकाले गये दूध को एकत्रित किये गये अन्य दूध में तब तक नहीं मिलाया जाना चाहिए जब तक कि वह पशु पूरी तरह से रोग मुक्त न हो जाये।
दूध दुहने एवं इसे एकत्रित करने में इस्तेमाल किये जाने वाले उपकरणों एवं बर्तनों को पूरी तरह साफ रखा जाना चाहिए।
बर्तनों की सफाई में इस्तेमाल किये जाने वाले डिटर्जेंट/रसायनों का स्वास्थ्य के लिहाज से सुरक्षित रहना अत्यन्त जरूरी है।
दूध दुहने के समय फर्श को साफ करने/उस पर झाड़ू लगाने से बचना चाहिए। इसके बजाए हर बार दूध दुहे जाने के बाद उस स्थान को ताजा पानी और हल्के कीटाणुनाशक से साफ किया जाना चाहिए।
दूध दुहने वाले को साफ कपड़े पहनने चाहिए और दूध दुहने के दौरान न तो कुछ खाना चाहिए और न ही थूकना चाहिए।
दूध दुहने वाले व्यक्ति को दूध दुहने से पहले अपने हाथों को धोना चाहिए और इसके बाद साफ तौलिये से अपने हाथों को सुखाना चाहिए।
दूध दुहने के समय निप्पल से सावधानीपूर्वक दूध की एक या दो धार को बाहर निकालना चाहिए । इस तरह निकाले गये दूध को एक अलग बर्तन/कप में इक्टठा किया जाना चाहिए और इसे फर्श पर नहीं फैंकना चाहिए, ताकि संक्रमण को फैलने से बचाया जा सके।
दूध दुहने के बाद निप्पल को एक विशेष एंटीसेप्टिक घोल में डुबोना चाहिए ताकि संक्रमण के खतरे को कम किया जा सके।
अंगुलियों को दूध में डुबोने और इसके पश्चात निप्पल को नरम करने के लिये उन्हें गीला करने का तरीका उचित नहीं है।
दूध दुहने के तत्काल बाद दूध को 5 डिग्री सेल्सियस के कम तापमान पर रखा जाना चाहिए। इसके लिए दूध को या तो फ्रिज में अथवा किसी ठंडी जगह पर रखा जाना चाहिए।
पास्तुरीकरण (पैस्टॅराइजेशन) जैसे तरीकों को अपनाकर दूध के समुचित भंडारण एवं उपयोग की अवधि बढ़ाई जा सकती है।
गर्मियों के दौरान दूध दुहने से एक घंटे पहले पशुओं को बाड़े में रखा जाना चाहिए। मवेशियों के बाड़े को अच्छी तरह से ढक देना चाहिए, ताकि गायों को कड़ी धूप से बचाया जा सके। तापमान को कम करने के लिये मवेशियों के बाड़े में पानी की फुहार करने वाले उपकरण एवं पंखे लगाये जा सकते हैं।
पशुओं से ज्यादा दूध निकालने अथवा दूध को निप्पल में उतारने के लिए हार्मोन का इस्तेमाल पशु चिकित्सक की सलाह के बिना नहीं किया जाना चाहिए।
विभिन्न रोगों, विशेष रूप से प्रजनन संबंधी रोगों के इलाज के लिए सावधानीपूर्वक जांच-परीक्षण किये बगैर ही एंटीबायोटिक दवाओं और हार्माेन का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे दूध में एंटीबायोटिक के अवशेष घुल सकते हैं।

श्रीजा सिन्हा, अनुराधा गुप्ता, सुधानंद प्रसाद लाल और लामेल्ला ओझा
भाकृअनूप- राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान
करनाल (हरियाणा)