गाय की वर्तमान दशा और उसका सुधार 

Pashu Sandesh, 22 June 2020

डॉ. शीतल गौतम

गाय भारतीय संस्कृति मे देवालय का प्रतीक मानी जाती है।जिसमे सभी देवताओं का वाश माना जाता हैं।भारत मे विश्व का सर्वाधिक गोवंश पाया जाता है।जिसमे 43 तरह की नस्ले भी शामिल है गाय का पालन कृषि व स्वास्थ्य दोनो ही द्रष्टिकोण से लाभदायक व शुभकारी है ।भारत मे 20वी पशु गणना के अनुसार लगभग 20 करोड़ गोवंश है। जिसमे 14 करोड़ मादाये है और 6 करोड़ नर हैं। कभी यह अनुपात 50:50 का हुआ करता था किन्तु अब यह अनुपात 2/3:1/2(मादाये/नर ) का हो गया हैं।अगर इन 14 करोड़ मादाओं मे से आधी संख्या भी हर बर्ष प्रजनन करे तो हमे 7 करोड़ नये पशु प्राप्त होंगें जिसमे 3.5 करोड़ नर और 3.5 मादाये होंगी हम यदि इनमे 10% म्रत्यु दर (स्वाभाविक) भी मान ले तो हर साल 6.3 करोड़ नये पशु हमारी पशुधन संख्या मे जुड़ जायँगे इन परिस्थितियों में जबकी देश के पास सूखे और हरे चारे की 50% तक  ओर दाने की 40 से 60% तक कमी है ।तब इस विशाल पशुधन को पर्याप्त मात्रा मैं संतुलित आहार प्राप्त हो सकेगा शायद कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति इस प्रश्न का जबाब हा मे नहीं दे पाएगा ।

अब उन कारणों का भी वर्णन आवश्यक है जिसके तहत नर पशुओं की संख्या लागातार घट रही है इसका सर्वाधिक ससक्त कारण है कृषि का मशीनीकरण 1970 के बाद से पूरे देश में कृषि का कार्य मशिनो पर पूर्णतः आश्रित होता चला गया। जो समय की आवश्यकता थी परंतु उसका दुष्परिणाम यह हुआ कि बैल बेकाम हो गये वे कृषक के कमाऊ पूत की बजाय बोझ बनते चले गए उन्हें पालना घाटे का सौदा सिद्ध होने लगा नतीजा यह हुआ कि उनके आहार और स्वास्थ्य पर कम ध्यान दिया दिया जाने लगा और उनकी संख्या तेजी से घटने लगी रही सही कसर अवैध तस्करी और गौकशी ने पूरी कर दी। नये पैदा हुए नर बछड़ो के साथ भी ऐसा ही हुआ नतीजा उनकी मृत्यु दर तेजी से बड़ी और आज गौवंश में नर और मादाओं का अनुपात लगातार घटते हुए 1/3:2/3 रह गया है जो कि एक शुभ संकेत नही है।

वैसे तो भारत मे 40 से ज्यादा गोवंश की नस्ले है लेकिन उनमे से सिर्फ 10 % ही दुधारू है जबकि शेष का उत्पादन अत्यंत कम है जिसके कारण वे डेरी के व्यवसाय में लाभकारी सिद्ध नही हो सकती।उनके नर की कार्य मे उपयोगी है किंतु मशीनीकरण ने बैलो को भी बेरोज़गार कर दिया परिणाम यह हुआ कि आज 1 बड़ी संख्या में गोवंश दर दर की ठोकरे खाने में विवश है ।

भारत मे गोवंश की तेज़ी से बढ़ती संख्या भी शुभ संकेत नही है क्योंकि देश मे दाने और चारे की कमी है जिसकी वजह से दुग्ध उत्पादन की लागत अन्य देशों की तुलना में अधिक है । भारत आज दुग्ध उत्पादन का नया कीर्तिमान स्थापित कर रहा है किंतु आज भी देश के सुदूर अंचल के कृषक उत्पादित दूध का उचित दाम पाने में असमर्थ है क्या इन परिस्थितियों में कोई डेरी व्यवसाय को चुनेगा संभवतः नही तभी तो ज्यादातर प्राइवेट कंपनी दूध संग्रहण और विक्रय पर ध्यान देती है उत्पादन पर नही।भारत मे कुल 64 दुग्ध संघ है जिसमे से केवल दो ही फायदे में चल रहे है तब ये घाटे में चल रहे दुग्ध संघ किसान को दूध का उचित मूल्य दिला पाएंगे यह कदाचित दिवास्वप्न ही हो सकता है । साथ ही मृत पशु का कोई भी भाग उपयोगी साबित नही हो पा रहा है, जिसके कारण उनके निष्पादन पर कोई ध्यान नही दे रहा है जो पशु पालन से विमुख होने का एक अन्य कारण साबित हो रहा है।

यह तो हुई बात समस्या की अब इनके निदान पर भी चर्चा कर लेते है।भारत मे करिबन 1 करोड़ पशु निराश्रित सड़को पर घूमता रहता है जिसमे ज्यादातर नर और अनुत्पादक गाय शामिल है जो आये दिन दुर्घटनाओं का शिकार होते रहते है । इस विकराल समस्या के लिए प्रथम दृष्टि में हमे अपने गोवंश की संख्या पर नियंत्रण करना आवश्यक है जिसके लिए समाज का जागना आवश्यक है हम यंहा गौ वध की चर्चा कतई नही कर रहे है।यदि हम इन लावारिस विचर रहे नर और मादाओं को प्रथक पृथक गौशलाओं में रख दे तो इनका प्रजनन काफी हद तक रुक जाएगा मेरे अनुसार गौशलाओं में केवल जीवन की रक्षा की जानी चाहिए प्रजनन पूर्णतः प्रतिबंधित होना चाहिए क्या हम किसी वृद्धाश्रम में परिवार बसाने की अनुमति दे सकते है संभवतः नही इस कार्य को पूर्ण करने के लिए सामाजिक जागरूकता आवश्यक है वरना कोई इसे पशु अधिकारों का हनन समझने लगेगा।चूंकि गौशलाओं में प्रजनन से पशु संख्या नही बढ़ेगी तब स्वाभाविक मृत्यु की दशा में कृषक के अनुत्पादक पशुओं को गौशाला लाकर कृषक का भार बहुत हद तक काम किया जा सकता है।

दूसरा उपाय है प्रजनन हेतु सिर्फ उन्नत नस्लो के पशुओ को ही अनुमति देना ताकि भविष्य में उन्नत नस्ल के पशु उपलब्ध हो।एक ओर हम अपनी गिर जैसी बहुमूल्य गौनस्ल को बचा नही पा रहे जबकि ब्राज़ील हमसे आयातित उन्ही नस्लों का सुधार कर उनसे रिकॉर्ड उत्पादन ले रहा है।हम ऐसा नही कर पा रहे है क्योंकि शायद हमारा आर्थिक ,सामाजिक और धार्मिक परिवेश इसमे बाधक बन हुआ है।हम गौशलाओं को आत्मनिर्भर बनाना चाहते है जबकि हम यह भूल जाते है कि यदि वो गौधन जो आज गौशलाओं में है यदि लाभदायक होता तो किसी कृषक के घर होता गौशाला में नही अर्थात गौशलाओं हेतु हमे अतिरिक्त धन उपलब्ध कराना होगा।

जैविक खाद के महत्व को धरातल पर पहुँचकर भी पशुधन की रक्षा की जा सकती है लेकिन क्या इन परिस्थितियों में कृषक इसे अपनाएंगे यह भी एक यक्ष प्रश्न है क्योंकि जैविक खाद बनाना श्रमप्रधान कार्य है और इसकी वर्तमान लागत रासायनिक खाद की तुलना में अधिक है ।

एक अन्य उपाय भी है जिसके द्वारा हम पशु संख्या पर  नियंत्रण के साथ साथ उनसे उत्पादन भी ले सकते है। उस वैज्ञानिक कला का नाम है INDUCED LACTATION अर्थात गायो से बिना ब्यात या बछड़े के दूध लेना ऐसा करके हम अपना उत्पादन भी बड़ा सकते है साथ ही साथ पशु संख्या पर नियंत्रण भी रख सकते है हम इस तकनीक द्वारा पशुओ को साल दर साल दुधारू बनाये रख सकते है और हम इसके द्वारा प्रजनन रोगों से ग्रषित पशुओ से भी दूध प्राप्त कर सकते है जो प्राकृतिक तरीके से दूध नही दे सकते परंतु इस कार्य मे समाज के हर वर्ग खासकर धर्माचार्यों का समावेशी होना और बिन ब्याहे पशुओ से प्राप्त दूध को स्वीकारना आवश्यक होगा।

अति सर्वत्र वर्जयेत।वेदों की यह वाणी अगर सत्य है तो पशुओ की अति संख्या भी समस्या का कारण ही बनेगी आज आवश्यकता है कि हम समस्या के मूल को समझे और उसके अनुसार निवारण के उपाय करें ।

उक्त विचार लेखक के स्वतंत्र विचार है।

 

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