मवेशियों में पैराट्यूबरकुलोसिस: एक गंभीर आर्थिक महत्व की बीमारी

Pashu Sandesh, 01 Feb 2025

डॉ. गयाप्रसाद जाटव, डॉ. अनिल वित्तल, डॉ. सुप्रिया शुक्ला, डॉ. रश्मि चौधरी1 डॉ. ए. के. जयराव, डॉ. विवेक अग्रवाल, डॉ. मुकेश शाक्य 2.

1.( पशु विकृति विज्ञान विभाग, पशुचिकित्सा एवं पशुपालन विज्ञान विश्वविद्यालय, महू (म.प्र.) 2.( पशु परजीवी विज्ञान विभाग, पशुचिकित्सा एवं पशुपालन विज्ञान विश्वविद्यालय, महू (म.प्र.)

परिचय:

पैराट्यूबरकुलोसिस, जिसे जोन्स रोग के नाम से भी जाना जाता है, मवेशियों की एक गंभीर, पुरानी और संक्रामक आंत्र बीमारी है। यह रोगमाइकोबैक्टीरियम एवियम उपप्रजाति पैराट्यूबरकुलोसिस (MAP) नामक जीवाणु के कारण होता है। यह बीमारी मुख्य रूप से गायों, भैंसों, भेड़ोंऔर बकरियों को प्रभावित करती है और पशुपालन उद्योग के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक नुकसान का कारण बनती है।

कारण और संचरण:

पैराट्यूबरकुलोसिस का कारक जीवाणु, MAP, अत्यधिक प्रतिरोधी है और पर्यावरण में लंबे समय तक जीवित रह सकता है। संक्रमण आमतौरपर जन्म के समय या जीवन के शुरुआती महीनों में होता है, जब पशु संक्रमित मल, दूध या कोलोस्ट्रम (पहला दूध) के संपर्क में आते हैं। संक्रमितपशु अपने मल के माध्यम से बड़ी मात्रा में जीवाणु फैलाते हैं, जो चारे, पानी और वातावरण को दूषित कर सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान भ्रूण कोभी संक्रमण हो सकता है।

लक्षण और प्रभाव:

पैराट्यूबरकुलोसिस एक धीमी गति से बढ़ने वाली बीमारी है, और लक्षण आमतौर पर संक्रमण के कई वर्षों बाद ही दिखाई देते हैं। प्रमुख लक्षणोंमें शामिल हैं:

  1. लगातार, अप्रतिबंधित दस्त
  2. वजन का क्रमिक नुकसान, भले ही भूख सामान्य हो
  3. दूध उत्पादन में कमी
  4. कमजोरी और सुस्ती
  5. पिछले हिस्से में सूजन (एडीमा)

रोग के अंतिम चरणों में, पशु बहुत कमजोर हो जाते हैं और अंततः मर जाते हैं। इसके अलावा, संक्रमित पशुओं में प्रजनन क्षमता कम हो जाती हैऔर वे अन्य रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।

निदान:

पैराट्यूबरकुलोसिस का निदान चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं और अन्य बीमारियों से मिलते-जुलते हो सकतेहैं। निदान के लिए निम्नलिखित विधियों का उपयोग किया जाता है:

  1. मल की जांच: बैक्टीरिया की उपस्थिति के लिए मल की जांच की जाती है।
  2. रक्त परीक्षण: एंटीबॉडी की उपस्थिति के लिए ELISA परीक्षण किया जाता है।
  3. पीसीआर परीक्षण: बैक्टीरिया के डीएनए का पता लगाने के लिए।
  4. ऊतक परीक्षण: मृत पशुओं में रोग की पुष्टि के लिए।

उपचार और नियंत्रण:

दुर्भाग्य से, पैराट्यूबरकुलोसिस का कोई प्रभावी इलाज नहीं है। इसलिए, रोग का नियंत्रण और रोकथाम महत्वपूर्ण हो जाता है। नियंत्रण के लिएनिम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:

  1. नियमित परीक्षण और संक्रमित पशुओं को अलग करना।
  2. बछड़ों को संक्रमित वयस्क पशुओं से अलग रखना।
  3. स्वच्छ और सुरक्षित प्रसव क्षेत्र प्रदान करना।
  4. नवजात बछड़ों को केवल पैराट्यूबरकुलोसिस-मुक्त गायों का कोलोस्ट्रम देना।
  5. फार्म में अच्छी स्वच्छता बनाए रखना।
  6. नए पशुओं को खरीदते समय उनकी जांच करना।

टीकाकरण:

कुछ देशों में पैराट्यूबरकुलोसिस के लिए टीके उपलब्ध हैं, लेकिन वे पूरी तरह से संक्रमण को रोकने में सक्षम नहीं हैं। टीके मुख्य रूप से रोग केप्रसार को कम करने और आर्थिक नुकसान को कम करने में मदद करते हैं। हालांकि, टीकाकरण के कुछ नुकसान भी हैं, जैसे टीबी परीक्षण केसाथ हस्तक्षेप और इंजेक्शन साइट पर सूजन।

आर्थिक प्रभाव:

पैराट्यूबरकुलोसिस का डेयरी और मांस उद्योग पर गंभीर आर्थिक प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव निम्नलिखित कारणों से होता है:

  1. दूध उत्पादन में कमी
  2. पशुओं का समय से पहले वध
  3. प्रजनन क्षमता में कमी
  4. चिकित्सा लागत में वृद्धि
  5. बाजार में पशुओं के मूल्य में कमी

अनुसंधान और भविष्य की दिशाएं:

पैराट्यूबरकुलोसिस के बेहतर नियंत्रण और प्रबंधन के लिए निरंतर अनुसंधान जारी है। वर्तमान में, वैज्ञानिक अधिक प्रभावी निदान विधियों, बेहतर टीकों और संभावित उपचार विकल्पों पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा, रोग के आनुवंशिक पहलुओं और पशुओं की प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाको समझने पर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

निष्कर्ष:

पैराट्यूबरकुलोसिस मवेशियों की एक गंभीर और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण बीमारी है। हालांकि इसका कोई निश्चित इलाज नहीं है, प्रभावीप्रबंधन रणनीतियों और नियंत्रण उपायों के माध्यम से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। पशुपालकों और पशु चिकित्सकों के लिए यहमहत्वपूर्ण है कि वे इस बीमारी के बारे में जागरूक रहें, नियमित परीक्षण करवाएं और अच्छी स्वच्छता प्रथाओं का पालन करें। भविष्य में, बेहतरनिदान विधियों और प्रभावी टीकों के विकास से इस बीमारी के प्रबंधन में मदद मिल सकती है। पैराट्यूबरकुलोसिस के खिलाफ लड़ाई मेंसफलता के लिए पशुपालकों, पशु चिकित्सकों और शोधकर्ताओं के बीच निरंतर सहयोग आवश्यक है।