खरगोश पालन

Pashu Sandesh, 12 Feb 2020

डॉ. ज्योत्सना शक्करपुडे, डॉ. आदित्य मिश्रा, डॉ. आनंद जैन, डॉ. दीपिका डी. सीजर एवं  डॉ. अर्चना जैन

खरगोश पालन एक लाभकारी बिज़नेस है | इसका पालन मीट उत्पादन और घरेलु जानवर हेतु किया जाता है | खरगोश मुख्यत: मांस, चमड़ा, ऊन तथा प्रयोगशाला में शोध एवं मनोरजंन हेतु पाला जाता है। खरगोशों का पालन  भारत में लम्बे अरसे से होता आ रहा है | इसलिए फार्मिंग बिज़नेस के लिए खरगोश पालन को चयनित करना एक लाभकारी कदम है | भारतवर्ष की जलवायु और मौसम खरगोश पालन के लिए उपयुक्त मानी जाती है | 

खरगोश पालन करने के लाभ:

  • खरगोश का आकार छोटा होने के कारण, इनको पालने के लिए कम जगह, कम खाना चाहिए होता है, जिससे इनके खाने और रखरखाव में कम खर्चा आता है |
  • खरगोश का पालन घर के पिछले हिस्से, छत या फिर फार्म में आराम से किया जा सकता है|
  • मुर्गियों की भांति खरगोश भी बहुत जल्दी वृद्धि करते हैं | इनको मार्किट साइज़ का होने में केवल 4 से 5 महीनों का समय लगता है |
  • इनके खाने का खर्च कम करने के लिए इनको बची हुई सब्जी, आसपास उपलब्ध पत्तियां, और स्वयं के द्वारा उत्पादित अनाज भी दे सकते हैं |
  • खरगोशों की प्रजनन क्षमता बहुत ही उच्च होती है | एक मादा खरगोश हर महीने 2 से 6 बच्चे तक पैदा कर सकती है |
  • चूँकि ग्रामीण भारत की महिलाएं अन्य पशु जैसे गाय, भैंस इत्यादि का पालन करती हैं | अगर वे चाहें तो इनके साथ खरगोश पालन भी कर सकती हैं |
  • युवा पढ़े लिखे बेरोजगार लोग खरगोश पालन को व्यवसायिक तौर पर शुरू कर सकते हैं | 

खरगोश पालन संबन्धित रोचक तथ्य

  • नस्ल के अनुरूप स्वास्थ्य, ताकत, प्रजनन क्षमता आदि के मद्देनजर अति उत्तम प्रकार का खरगोश प्रजनन हेतु चुनना चाहिए। 
  • इन्हें सरकारी प्रक्षेत्र  तथा निबंधित फ़ार्म से खरीदना चाहिए।
  • पाँच मादा के लिए एक नर होना चाहिए। 
  • छोटे नस्ल के जानवर 5 से 6 माह, मध्यम नस्ल के 6-7 एवं बड़े नस्ल के जानवर 8-10 माह में पाल खाने योग्य हो जाते हैं। 
  • गर्भावस्था 30 से 32 दिन की होती है। 
  • बच्चा पैदा होने के 3-4 दिन पूर्व “बच्चा बक्सा” मादा के पिंजड़े में डाल देना चाहिए। 
  • बच्चा देने के 1-2 दिन पूर्व मादा अपने देह का रोयाँ नोचकर घोंसला बनाती है। मादा दिन में एक ही बार बच्चों को दूध पिलाती है। 
  • पर्याप्त दूध मिलने पर बच्चा 3-3.5 सप्ताह के अंदर बक्सा से बाहर आ जाता हैं और अपने से खान-पान शुरू करने लगता हैं।
  • बच्चे 6 से 7 सप्ताह में ही माँ से अलग किये जा सकते हैं और मादा से साल में 5 बार बच्चा लिया जा सकता है।
  • मुख्यत: खरगोश पिंजड़े में रखा जाता है। पिंजड़ा 18” x 24” x 12” का होता है। इन्हें 2 तल में रखा जाता है। इनका पिंजड़ा स्थानीय उपलब्ध सामानों से भी बनाया जा सकता है तथा बाहर दीवार पर जमीन से 2-2.5 फीट ऊँचाई पर कांटी से या पेड़ के नीचे लटका दिया जा सकता है। इन्हें घने पेड़ की छाया में आसानी से पाला जा सकता है।
  • साधारणतया खरगोश सभी प्रकार के भोजन, अनाज खाने के लिए जाने जाते हैं, रसोईघर में उपयोग होने वाली रोजमर्रा की सब्जियों के अवशेष जैसे गाज़र, गोभी के पत्ते अन्य सब्जियां जो रसोईघर में बच गई हैं, इन्हें खरगोशों को खिला सकते हैं |
  • अपना ही मल खाना खरगोशों के बेहतर स्वास्थ्य केलिए एक जरूरी प्रक्रिया है. दरअसल खरगोश एक ऐसा जीव है जिसका पाचन तंत्र बहुत अधिक विकसित नहीं होता. खरगोश अधिकतर घास खाकर ही अपना जीवन बिताते हैं. इसीलिए उनके शरीर से बहुत से जरूरी न्यूट्रिएंट्स बिना पचे ही बाहर निकल जाते हैं इसीलिए खरगोश उसे खाकर फिर से अधिक से अधिक पोषक तत्व पचाते हैं।
  • इनमें रोगों का प्रकोप बहुत ही कम होता है। यदि कुछ सही कदम या नियम का पालन किया जाये तो रोग नहीं के बराबर होता है।
  • आँख आना, छींकना, गर्दन टेढ़ी होना, पिछले पैर में घाव होना, गर्म और ठंडा लगना। इन रोगों का इलाज साधारण दवा से आसानी से किया जा सकता है।

डॉ. ज्योत्सना शक्करपुडे, डॉ. आदित्य मिश्रा, डॉ. आनंद जैन,  डॉ. दीपिका डी. सीजर  एवं  डॉ. अर्चना जैन

                                         पशुशरीर क्रिया विज्ञान विभाग,एन.डी.व.सु., जबलपुर