बिहार के किसानों को गुजरात मॉडल गौ संवर्धन व्यवस्था समझने के लिए उत्साहित किया जाएगा:डॉ आर के सोहाने

विश्व दुग्ध दिवस  के अवसर पर  देश के चोटी के वैज्ञानिकों एवं  किसानों  के बीच सीधा संवाद- 

गिरीश जयंतीलाल शाह ने कहा कि बिहार के खेती- बाड़ी व्यवसाय से अधिक आमदनी के लिए गोबर-गोमूत्र के प्रयोग को  बढ़ावा देना होगा

Pashu Sandesh,सबौर(बिहार),02 जून 2021;

डॉ आर बी चौधरी

समूचे विश्व में अंतरराष्ट्रीय दुग्ध दिवस का आयोजन किया जाता है। दूध उत्पादन और उसके गुणवत्ता के विषय में परिचर्चा का यह आयोजन भारत में भी बड़े सम्मान के साथ आयोजित किया जाता है।  इसी क्रम में बिहार कृषि विश्वविद्यालय तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के रीजनल सेंटर (अटारी ) के  तत्वाधान में एक वेबीनार का आयोजन किया गया जिसमें देश के जाने-माने  पशु वैज्ञानिक,ग्राम में विकास के संलग्न विशेषज्ञ एवं प्रगतिशील किसान शामिल हुए। अगर देखा जाए तो बिहार राज्य की पृष्ठभूमि सांस्कृतिक विरासत से लेकर विज्ञान,लोक प्रशासन एवं देशभर में कर्मयोग का एक नया अध्याय गढ़ने वाला ऐसा राज्य है जहां विकास की प्रचुर संभावनाएं हैं। लगातार पिछले कई वर्षों से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सम्मान को प्राप्त करता आ रहा बिहार कृषि विश्वविद्यालय किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए विश्व दुग्ध दिवस केअवसर पर नई संभावनाओं को तलाशने में लगा हुआ है। आज के इस वेबीनार कार्यक्रम से यह स्पष्ट हो जाता है कि बिहार के किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए दुग्ध उत्पादन,ऑर्गेनिक खेती और गांव में नए नए व्यवसाय आरंभ करने के नए अवसर ढूंढने का लक्ष्य सुनिश्चित कर लिया गया है। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर आर के सोहाने ने अनुसंधान और विकास के तकनीकी पहलुओं को समझते हुए इस निर्णय की ओर आगे बढ़ने का संकेत दे रहे हैं कि देशभर में खेती को मुनाफा देने वाले कार्य जैसे दुग्ध व्यवसाय को जोड़ने की आज परम आवश्यकता है। इसके लिए उन्होंने आज वैज्ञानिकों और किसानों की समस्याओं का समाधान की संवाद व्यवस्था की जो अपने में एक अभिनव अत्यंत व्यावहारिक अभियान है।

दुग्ध दिवस के अवसर पर आयोजित वेबीनार कार्यक्रम में बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति  डॉ रामेश्वर सिंह ने बतौर मुख्य अतिथि के रूप में अपनी प्रस्तुति से राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय डेयरी व्यवसाय के परिचय साथ-साथ बिहार राज्य की डेयरी विकास की समग्र पृष्ठभूमि का मनमोहक स्वरूप बताया और उन्होंने महिलाओं के योगदान तथा बिहार की डेयरी व्यवसाय की संभावनाओं का परिदृश्य पेश की। पहले सत्र में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के रीजनल ऑफिस अटारी के निदेशक-डॉक्टर अंजनी कुमार ने दुग्ध व्यवसाय के विभिन्न आयामों की चर्चा करते हुए कहा कि डेयरी व्यवसाय में सिर्फ गाय से दूध प्राप्त करने की ही बात नहीं सोची जा सकती है।  भारत में अन्य पशुओं से प्राप्त होने वाले दूध की गुणवत्ता,मेडिसिनल प्रॉपर्टीज और मार्केट वैल्यू पर भी ध्यान देना होगा । इससे छोटे तथा साधन हीन किसानों की आमदनी बढ़ेगी। सत्रांत मैं भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सदस्य एवं राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता संस्था समस्त महाजन के मैनेजिंग ट्रस्टी गिरीश जयंतीलाल शाह ने गुजरात मॉडल दुग्ध उत्पादन एवं गौशाला प्रबंधन की चर्चा की। उन्होंने कहा कि बिहार देश का एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रदेश है जहां प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के साथ-साथ यहां के जनसामान्य में कर्मठता की गुणवत्ता कूट-कूट कर भरी हुई है। बिहार का किसान अगर गुजरात के सिस्टम में काम करने वाले दूध व्यवसाय को अपनाए तो प्रदेश में एक आमूलचूल परिवर्तन आ जाएगा । इसके लिए सरकार को गोबर-गोमूत्र प्रबंधन के साथ स्थानीय नस्ल के पशुओं को बढ़ावा देने का कार्य करना होगा। उन्होंने कहा कि हरित क्रांति के बाद अब वह समय आ गया है कि कृषि के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन में गोमूत्र क्रांति की कार्यप्रणाली जोड़ा जाए जो आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इसका दो तरफा फायदा होगा एक तरफ किसानों को ऑर्गेनिक प्रोडक्ट बेचकर अच्छी आमदनी होगी।  दूसरी तरफ बिहार के परिवेश में फिट बैठने वाले स्थानीय नस्ल के पशुओं का संवर्धन संरक्षण का अत्यधिक गोबर -गोमूत्र का उत्पादन होगा जिससे प्रदेश के खेती किसानी को सपोर्ट करने वाली दुग्ध उत्पादन व्यवस्था सस्ती मिलेगी।

भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सदस्य शाह ने इसके लिए कई उदाहरण पेश किया और उन्होंने बताया कि गौ संवर्धन आधारित कृषि के लिए सबसे पहले सोच की जरूरत है । व्यवस्थाएं अपने आप मिलने लगती है। उन्होंने कहा कि गो आधारित कृषि की व्यवस्था में बिहार में उपलब्धप्राकृतिक संसाधन उपलब्ध है जैसे नदियों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों का पानी की उपलब्धता।  इसलिए,देसी एवं औषधीय वृक्षों का रोपड़,चारे के प्रबंधन लिए बेहतर हरा चारा उपलब्ध कराने के लिए चारागाह एवं घास उत्पादन के व्यवस्था पर जोर देना होगा। शाह ने गुजरात के विश्व प्रख्यात धर्मज गांव के दुग्ध उत्पादन के व्यवस्था की आंकड़ों सहित कहानी बताई और कहा कि कर्नाटक में आज भी प्राकृतिक पशु प्रजनन की व्यवस्था किसानों द्वारा जारी है जिसका वहां कृषि व्यवसाय और उसे प्राप्त होने वाले आमदनी पर अच्छा असर है। गुजरात के बंसी गिर गौशाला का उदाहरण देते हुए उन्होंने दूध और घी की व्यवस्था का प्रबंधन तकनीक बताया और कहा कि घास उत्पादन से लेकर के चारागाह प्रबंधन की व्यवस्था में गुजरात सरकार  निरंतर बढ़ावा दे रही है जिसका नतीजा है कि गुजरात में ऑर्गेनिक खेती की दो तरफा(डुएल) सिस्टम पर कार्य कर रही है और यही कारण है कि बिहार के तुलना में दूध उत्पादन कई गुना अधिक है। उन्होंने नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड का उदाहरण देते हुए बताया कि गुजरात के किसान साइंस और टेक्नोलॉजी के विकास को मध्य नजर रखते हुए पारंपरिक टेक्नोलॉजी को भी ध्यान देते आ रहे हैं जिससे गुजरात दुग्ध उत्पादन में देश का एक उदाहरण बना हुआ है।

बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर आर के सोहाने ने प्रथम सत्र का समापन करते हुए विश्व दुग्ध दिवस के अवसर पर अपने विचार रखें और बताया कि आने वाले समय में बिहार के किसानों और वैज्ञानिकों को गुजरात भेज कर वहां के दुग्ध उत्पादन और गौशाला प्रबंधन के व्यवस्था को देखने के लिए अभी प्रेरित किया जाएगा। विश्वविद्यालय इस सिलसिले में यथोचित व्यवस्था करेगी ताकि बिहार को भी दुग्ध विकास के मुख्य धारा में जोड़ा जा सके। उन्होंने बताया कि इस अवसर पर देशभर के तकरीबन एक दर्जन चोटी के पशु वैज्ञानिक,विशेषज्ञ एवं दर्जनों बिहार के प्रगतिशील किसान आज के कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम के अंत में प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया है जिससे साइंस टेक्नोलॉजी की बात सीधे किसानों तक पहुंचाई जाएगी।इससे खन कार्यक्रम का संचालन  एवं आयोजन समिति के वैज्ञानिक डॉ राजेश कुमार और डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार के द्वारा आयोजन की । विश्वविद्यालय कुलपति डॉ सोहाने विश्वविद्यालय के आयोजन समिति की प्रशंसा की।