पटाखों की शोरगुल से लावारिस कुत्तों की रक्षा के लिए सामने आई प्रीति दुबे

पशु प्रेमी को क्या-क्या सहना और झेलना पड़ता है- पड़ोसियों के विवाद से मां-विहीन होने से बची...

Pashu Sandesh, 07 November 2021

 डॉ. आर बी चौधरी

भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड की मानद जीव जंतु कल्याण अधिकारी रही फरीदाबाद स्थित पीपल फॉर एनिमल यूनिट- 2 की अध्यक्षा, सुश्री प्रीति दुबे लावारिस पशु - पक्षियों की देखभाल करने और उनके ऊपर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए तत्पर प्रीति जब कभी सामने आती है तो समाज के कुछ नकारात्मक सोच के लोग उनके विरोध पर उतारू हो जाते हैं। प्रीति के अनुसार यह मामला अब उनके लिए रोजमर्रा की चुनौती बन गई है। इसी प्रकरण पर जब दिवाली के दिन पटाखे  जलाने और गली के कुत्तों के बचाव में वह सामने आई तो प्रीति  के साथ - साथ उनकी मां को मोहल्ले के कुछ लोगों ने इतना जलील किया गया कि वह सीरियस डिप्रेशन में आ गई और अपनी जीवन लीला ही समाप्त करने के लिए निकल पड़ी। बड़ी मुश्किल से छानबीन करने और पुलिस के सहयोग से उनके प्राण की रक्षा हुई ।

दिवाली के दिन नियम- नियमावली की धज्जी उड़ाने वाले लोग केंद्र और राज्य सरकार के पर्यावरण प्रदूषण नियमों का उल्लंघन करते हुए सरेआम नियम- नियमावली की धज्जी उड़ाते रहे। जानवरों के बीच में पटाखे जलाते रहे और तनिक भी परवाह नहीं की। मना करने पर झगड़ा करने और गाली गलौज पर उतारू हो गए। मामला खाने में पहुंच गया ।नतीजन उन पर कोई कार्यवाही होने के बजाय बीज बचाओ पर आ गया मामला। ऐसे मामले में अक्सर पुलिस गली- मोहल्ले की बात होने के कारण मध्यस्थता कर छोड़ देती है और यह सिलसिला निरंतर चलता रहता है । इसी से मिलता-जुलता मामला कॉलोनी में डॉग फीडर्स और प्रेसिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन का है जहां हर दिन जोर- जबरदस्ती और मनमानी होती रहती है। हर दिन लावारिस पशु और पशु प्रेमी हारता रहता है। काश एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऐसे समर्पित पशु प्रेमियों के रक्षा- सुरक्षा और मनोबल को बढ़ाने के लिए कोई रणनीति बनाती और उस पर कार्य करती । सरकार द्वारा पशु प्रेमियों को सहायता मुहैया कराई जाती। इस असफलता और निष्क्रियता का सबसे बड़ा कारण है कि देश भर के किसी जिले में सोसायटी फॉर प्रीवेंशन आफ क्रुएलिटी टू एनिमल्स यानी "एसपीसीए" का सक्रिय न होना है। इसके लिए जिम्मेदार एनिमल वेलफेयर बोर्ड पिछले कई दशकों से फेल होता चला आ रहा है । केंद्र और राज्य सरकार के बीच में अभी तक कोई सामंजस्य  स्थापित नहीं होने होने से पूरी समस्या जस की तस वर्षों से चल रही  है। वैसे केंद्र सरकार खानापूर्ति के लिए साल में एक बार चिट्ठी लिखकर राज्य सरकारों को इतला कर देती  है और कागजी कार्यवाही पूरी हो जाती है। मजेदार बात तो यह है कि सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों के अनुपालन में भी राज्य और केंद्र सरकार के जिम्मेदार विभाग फेल है। कुल मिलाकर केंद्र सरकार सक्रिय एसपीसीए संचालन की व्यवस्था की अड़चनों से दूर होने तथा सर्वोच्च न्यायालय के जाल से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ ही लेते हैं, ताकि झंझट से मुक्ति मिली रहे ।

पशु कल्याण के जानकार बताते हैं कि यह कार्य कभी भी सरकार पूरा नहीं कर सकती। अब तो स्थिति और खराब है क्योंकि जन जागृति और शिक्षा के लिए स्थापित संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एनिमल वेलफेयर की असली भूमिका ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। एनिमल वेलफेयर का बजट घटाकर करीब-करीब नहीं के बराबर पहुंच गया है। पिछले दो वर्षों से अधर में लटका भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड का पुनर्गठन भी अंधकार से बाहर निकलने के लिए अवसर तलाश रहा है। ऐसे में सक्रिय एनिमल वेलफेयर व्यवस्था और सटीक एनिमल वेलफेयर पॉलिसी की कल्पना कैसे की जा सकती है। इसके लिए जब तक देश में जनजागृति नहीं होगी, तब तक यह समस्या घटने की जगह पर बढ़ता ही जाएगा। भारत में आज भी पशु कल्याण के जनजागृति का व्यापक का भाव है । इस मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय के समय-समय पर दिशा निर्देश आते रहते हैं । लेकिन यथोचित जागरूकता और शिक्षण प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर आधारित नीति निर्धारण न होने की वजह से यह मामला नई नई चुनौतियों का माया जाल बन गया है । ऐसे मामलों को केंद्र और राज्य सरकारों को संज्ञान में लेना चाहिए ।