पशु संदेश, 12 October 2018
जसवन्त कुमार रेगर व डाॅ. अतहरउद्दीन मलिक
पशुपालन व्यवसाय में होने वाले कुल व्यय का लगभग 70 प्रतिशत पोषण पर खर्च होता है तथा पोषण पर आने वाले खर्च में सर्वाधिक पशुओं की प्रोटीन की आवष्यकता को पूर्ण करने में लगता है। पशुओं के लिए प्रोटीन के मुख्य स्त्रोत हरे चारे, चूनी, चोकर एवं खलियां है। ऐसे समय में जब हरे चारों की उपलब्धता कम रहती है और पशुओं को केवल भूसे, पुआल, कड़वी आदि पर जीवन निर्वाह करना पड़ता है। पशुपालकों को सूखे चारे के साथ काफी मात्रा में खलियां आदि खिलानी पड़ती है, जिससे पशुओं की प्रोटीन सम्बन्धी आवष्यकता पूर्ण हो सके। इन खलियों में उपस्थित प्रोटीन का कुछ भाग तो पशु षरीर को सीधे प्राप्त हो जाता है तथा षेष भाग का पशु रोमान्थ में सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा विघटन होता है और उपस्थित नाइट्रोजन से अमोनिया गैस बनती है। इस गैस का उपभोग करके रोमान्थ में उपस्थित जीवाणु अपनी संख्या में वृद्धि करते हैं तथा पाचन तंत्र के आगे के भागों में जाकर पच जाते हंै इससे पशु को जीवाणु प्रोटीन की प्राप्त होती है, परन्तु इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में पशु को खिलायी गयी प्रोटीन की मात्रा का हास होता है।
एक किलोग्राम यूरिया में 7-9 किलोग्राम खली के बराबर नत्रजन होती है जब पशु को यूरिया खिलायी जाती है तो रोमान्थ में यह अमोनिया गैस में बदल जाती है और सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा प्रोटीन में परिवर्तित हो जाती है। पशु षरीर की प्रोटीन की कुल आवष्यकता का एक तिहाई हिस्सा यूरिया द्वारा पूर्ण किया जा सकता है इससे उत्पादन लागत में कमी के साथ-साथ रोमन्थ में प्रोटीन के विघटन से होने वाले इसके हास को भी कम किया जा सकता है।
यूरिया खिलाने की विधियां
पशुओं को यूरिया खिलाने की विभिन्न विधियां वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गयी है जिनमें से कुछ निम्न है-
यूरिया दाने साथः-इस विधि में पशुओं का दाना बनाते समय ही 100 किलोग्राम दानें में एक किलो यूरिया मिला दी जाती है। ऐसे पशुपालक जो दानें को भिगोकर भूसे चारे में मिलाकर खिलाते हैं यूरिया की मात्रा को दाने का अधिकतम 2 प्रतिशत तक कर सकते हैं।
यूरिया तथा गुड़ का घोल बनाकरः-इस विधि में 150 ग्राम यूरिया तथा 250 ग्राम गुड़ का अलग-अलग एक-एक लीटर पानी में घोल बनाकर 10 किलोग्राम सूखे चारे में अच्छी तरह मिलाकर पशुओं को खिलाया जाता है।
छिड़काव विधिः-इस विधि में 1.5 किलोग्राम यूरिया, आधा कि. ग्रा. साधारण नमक, आधा किलो खनिज लवण मिश्रण तथा 20 ग्राम बिटाविलैन्ड का 10 लीटर पानी में घोल बनाकर एक क्विंटल भूसे पर छिड़काव करके सुखा लिया जाता है तथा इस विधि से तैयार भूसे को तुरन्त खिलाया जा सकता है या फिर प्लास्टिक के कन्टेनर में भरकर सील करके 2-3 सप्ताह तक रख जा सकता है। रखने से भूसे का किण्वन होकर यह और अधिक रोचक हो जाता है। इस विधि से तैयार भूसे 2-3 सप्ताह में इस्तेमाल कर लेना चाहिए।
यूरिया द्वारा भूसा उपचारित करनाः- इस विधि में 4 कि.ग्रा. यूािया को 65 लीटर पानी में घोलकर एक क्विटंल भूसे पर छिड़का जाता है पुनः एक क्विटंल भूसा इसी के ऊपर डालकर फिर 65 लीटर पानी में 4.0 कि.ग्रा. यूरिया के घोल का छिड़काव किया जाता है और दबाया जाता है। इस प्रकार तरह के ऊपर तह लगाते रहते है जब वांछित मात्रा से भूसा उपचारित हो जाए तो अन्तिम तह पर सूखा भूसा डालकर यूरिया का घोल नहीं छिड़कते तथा इस पूरे ढेर को तिरपाल या पोलीथीन आदि से अच्छी से अच्छी तरह ढककर हवा रहित कर दिया जाता है। 21 दिन बाद एक किनारे से इसे खोलकर जितना भूसा एक समय में खिलाना है निकालकर फैला दिया जाता है जिससे उसमें उपस्थित गैस की दुर्गन्ध समाप्त हो जाए। इस विधि से उपचारित भूसे को पशु बहुत चाव से खाते है तथा इसकी पाचकता और क्रुड प्रोटीन का प्रतिशत भी बढ़ जाता है।
यूरिया शीरा तरल मिश्रणः- इस विधि में दो कि.ग्रा. यूरिया को 2 लीटर पानी में घोलकर 100 कि.ग्रा.शीरे में मिला दिया जाता है तथा इसमें 2 कि.ग्रा. खनिज लवण मिश्रण, एक कि.ग्रा. नमक तथा 20 ग्राम वीटाविलेन्ट मिलाकर उबलने तक गर्म किया जाता है। यह मिश्रण 1 कि.ग्रा. प्रति 100 किलोग्राम शरीर भाग के अनुसार पशुओं को खिलाया जाता है या फिर हरे चारे व भूसे के अतिरिक्त जितना पशु खाना चाहे दिया जा सकता है।
यूरिया-शीरा खनिज लवण की ईंटेंः-यह ईंटें बनाने के लिए वांछित मात्रा का 40 प्रतिशत शीरा, 12 प्रतिशत यूरिया, 5 प्रतिशत नमक का मिश्रण बनाकर प्लास्टिक शीट पर डाला जाता है तथा इसमें 6 प्रतिशत खनिज लवण, 4 प्रतिशत कैल्सियम आक्साइड, 15 प्रतिशत बैन्टोनाइट, 10 प्रतिशत बिनौले की खली तथा 8 प्रतिशत मूँगफली की खली का मिश्रण बनाकर धीरे-धीरे मिलाया जाता है। फिर इसे लकड़ी, गत्ते या धातु के सांचों में चारों ओर अन्दर से पोलीथीन लगाकर भर दिया जाता है। 24 घण्टे में यह ईंटें जमकर कड़ी हो जाती हैं। इन ईंटों को पशुओं के पास रख दिया जाता है, पशु इसे चाटते रहते हैं।
यूरिया खिलाने के दौरान सावधानियां
उपरोक्त वर्णित विधियों में से पशुपालक अपनी सुविधानुसार कोई भी विधि चुनकर नजदीकी विषेषज्ञ की देखरेख में अपने पशुओं को यूरिया खिलाकर पशु पालन व्यवसाय से अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं।
जसवन्त कुमार रेगर1 व डाॅ. अतहरउद्दीन मलिक2
1.डाॅक्टर आॅफ फिलोस्पी, पशुधन उत्पादन प्रबन्ध विभाग, भाकृअनुप-राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान मान्य विष्वविद्यालय करनाल-132001, हरियाणा।
2.प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, पशुधन उत्पादन प्रबन्ध विभाग, श्री कर्ण नरेंद्र कृषि महाविद्यालय, श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विष्वविद्यालय जोबनेर-303329, (जयपुर) राजस्थान।
Corresponding author email:jaswantkumarregar468@gmail.com