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पशु संदेश , 09 October 2018
डा.राकेश कुमार गुप्ता
कोलीबेसिलोसिस नवजात पशुओं में सबसे ज्यादा पाया जाने वाला रोग है, जो कि दस्त और सेप्टीसिमिया से पहचाना जाता है। इस रोग में कभी-कभी नवजात पशु अचानक मर जाता है। जिससे दुधारू पशु के दूध में कमी आ जाती है और पशुपालकों को आर्थिक नुकसान होता है। यह रोग नवजात पशुओं में अधिक मृत्युदर के लिए जाना जाता है। यह गाय, भैंस, बकरी, भेड़ आदि के नवजात पशुओं में पाया जाता है।
कारकः
यह एशेरिशिया कोलाई (Escherichia coli) नामक जीवाणु से होता है। अन्य कारक जो इस रोग को फैलने में मद्द करते हैं-
आहार में ज्यादा वसा होना।
खीस का न पिलाया जाना।
जन्मजात कमजोरी।
साथ में और बीमारी का होना जैसे कि ब्रूसींलोसिस।
गन्दा वातावरण।
एक बाड़े में अधिक जानवर होना।
कैसे होता है कोलीबेसिलेसिस?
दूषित पानी पीने से।
दूषित चारा खाने से।
लक्षणः
तेज बुखार आना।दस्त आता है जिसमें अजीब गंध होती है।
कभी-कभी मल के साथ रक्त भी आता है।
नवजात पशु अचानक मर जाता है।
दुर्बलता।
शुष्क चमड़ी।
भूख का कम होना।
उपचारः प्राथमिक उपचार में ओ. आर. एस. का घोल पिलाना चाहिए।
जल्द से जल्द अपने पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें जिससे सम्पूर्ण उपचार हो सके।
रोकथामः
पशुपालकों को निम्नलिखित बिन्दुओ पर ध्यान देना चाहिए।नवजात पशु को सुरक्षित वातावरण में रखना चाहिए मतलब बाड़े में साफ-सफाई का ध्यान रखें।जन्म के आधे घंटे के अन्दर नवजात पशु को खीस पिलाना चाहिए क्योंकि पशुओं में यह रोग के प्रति रोधक क्षमता बढ़ाता है।
नियमित विसंक्रमण करना चाहिए।पशुओं को अनावश्यक वस्तु को चाटने से बचाना चाहिए।
बाड़े में पर्याप्त स्थान होना चाहिए।2 महीने तक बछड़े व बछिया को सम्पूर्ण दूध प्रतिस्थापक देना चाहिए।
डा. राकेश कुमार गुप्ता
पीजी स्काॅलर
डिपार्टमेंट आॅफ वेटनरी पैथोलाॅजी
पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय
नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, फैजाबाद
ईमेलः rakeshguptaa96@gmail.com