Pashu Sandesh, 22 April 2024
मधु शिवहरे, नितिन कुमार बजाज, निधि श्रीवास्तव, नवल सिंह रावत
सहायक प्राध्यपक, पशु चिकित्सा एवं पशु पालन विश्वविद्यालय , महू (म. प्र. )
हिमीकृत वीर्य का रख रखाव - १९६ डिग्री सेल्सियस पर किया जाता है इस हेतु तरल नत्रजन का उपयोग किया जाता है , तरल नत्रजन विसिस्ट प्रकार के पात्रो में रखते है परन्तु इसमें सर्वाधिक सावधानी इस बात की रखना चाहिए कि उपयोग से पूर्व किसी भी वीर्य नलिका का तापक्रम - 196 डिग्री सेल्सियस से ऊपर न आवे . शुक्राणु तापक्रम के लिए आती संवेदनशील है अतः हमे सावधानी रखना चाहिए कि यह तापक्रम सतत बना रहे
प्रक्षेत्र में उपयोग हेतु हमे निम्न लिखित विधि अपनानी चाहिए
१. जब भी वीर्य मुख्य वितरण केंद्र से प्राप्त किया जावे यह ध्यान रखना चाहिए कि जिस पात्र में इसे रखना है वह तरल नत्रजन से भरा हो
२. इस हेतु आवश्यक है की पत्र में तरल नत्रजन का स्तर इतना हो की नलिका पात्र उसमे डूबे रह सके
३ वीर्य प्राप्त करते समय नलिकाओं को एक एक कर गिनकर निकालने के बजाय नलिका पात्र जिनमे तरल नत्रजन भरा हो व नलिका में डूबी हो को लेना ही लाभकर है
४. प्रत्येक नलिका पात्र में एक ही किस्म के वीर्य का समायोजन उनकी चिन्हित किया जाकर क्रमवार रखना हितकर है
५. नलिका पात्र से वीर्य निकालते समय सावधानी रखना चाहिए की किसी भी स्थिति में यह पात्र हिमीकृत रेखा से ऊपर न लाये जावे।
६. जिस नलिका ने एक बार इस स्तर को पार कर लिया हो उसे पुनः नलिका पात्र में नहींडालना चाहिए।
७. यथा संभव सावधानी बरतना चाहिए की वीर्य नलिका शीघ्र निकलकर नलिका पात्र को शीघ्रता पूर्वक वापिस तरल नत्रजनमे डुबाये।
८. वीर्य नलिका को उपयुक्त तापक्रम पर निश्चित समय तक ही पिघलने हेतु रखना चाहिए पिघलने के बाद वीर्य का उपयोग तुरंत करना चाहिए।
९. शुक्राणु को मादा की ग्रीवा के अग्र भाग में शीघ्रता पूर्वक सावधानी से उपयुक्त जगह पर छोड़ना चाहिए।
१० तरल नत्रजन पात्रो को सावधानी पूर्वक उपयोग करना चाहिए ताकि इनकी संरचना को नुकसान न हो।
११. तरल नत्रजन को नंगे हाथो या शरीर के किसी भाग से सीधे तौर पर संपर्क न हो इसका ध्यान रखना चाहिए।
१२. वीर्य का चयन पशु की प्रजाति की ध्यान में रखते हुए करना अति आवश्यक है।
१३. समय समय पर तरल नत्रजन पात्र में तरल नत्रजन का स्तर नापते रहना चाहिए।