पशु संदेश, भोपाल | 15 मई 2017
डॉ शीतल कुमार गौतम, डॉ शिवानी तिवारी, डॉ एस आर पटले
कृषि उत्पाद और दुग्ध उत्पादन में विश्व मे परचम लहराने के बावजूद हम अपने अन्नदाता को उसकी उपज का सही मूल्य नही दिला पा रहे है। आज भी हमारा अन्नदाता कृषि और पशुपालन को लाभ का धंधा नही समझता। यह लेख आज पशुपालन की समस्याओं और उनके समाधान पर अपने विचार रखने की छोटी सी कोशिश है ताकि हमारे नीति निर्माताओं तक किसानों की वेदना पहुँच सके।
१. सर्वप्रथम हमें सटीक पशुगणना करवानी होगी ताकि हमें सही सही पशुसंख्या प्राप्त हो सके ताकि हम पशुपालन और उसके विकास के लिए बेहतर योजना बना सके जिससे किसानों को लाभ मिले।
२. नकली दूध पर प्रतिबंध और असली दूध पर सब्सिडी। क्या कारण है कि नकली दूध का कारोबार इतना फलफूल रहा है ? कारण है हमारी व्यवस्था जिसमे नकली या मिलावटी दूध पर लगाम कसने की कोई उचित व्यवस्था नहीं है और जब ९-१२ रुपये में एक लीटर नकली दूध बनकर तैयार हो जाता है और बिक भी जाता है तो कोई असली दूध क्यों ख़रीदे नतीजा दूध के दाम आज भी निचले स्तर पर ही कृषक को प्राप्त होते है तब पशुपालन घाटे का सौदा बन जाता है ।जिसकी मज़बूरी है यह व्यवसाय करे जिसकी नहीं न करे| जब तक हम नकली दूध पर पूर्णतः लगाम नहीं लगते और किसान को उसके असली दूध का सही दाम नहीं देते पशुपालन व्यवसाय के हालात नहीं बदलेंगे क्या दूध का कोई न्यूनतम मूल्य नहीं होना चाहिए? अगर आज कोई सबसे ज्यादा परेशान है तो वह है किसान उसकी उपज का कभी भी उसे सही मूल्य नहीं मिलता चाहे फल हो सब्जी हो या दूध जो उसकी माली हालात को और ख़राब कर देते है इन परिस्थितियो में उसकी आमदनी दुगना करने का दावा दिन में सपने देखने जैसा है |
३.टीकाकरण के आधुनिक तरीके- आज समय की मांग है की हमें POLYVALENT VACCINE (तीन बिमारियों के लिए एक टीके) का प्रयोग करना होगा ताकि अधिक से अधिक पशुओ को कम से कम समय और श्रमबल के द्वारा अधिक से अधिक बिमारियों से सुरक्षित कर सके|
४.आधुनिक सेवाएं- हमें अपने दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक पशुचिकित्सकों, चिकित्सा सहायको की नियुक्ति करनी होगी जैसे प्रत्येक ४ गांव या १००० पशुओँ की संख्या पर एक OLD WITH AVFO AND PEON और प्रत्येक ४० गांव या १०,००० पशुओं पर एक पशु चिकित्सक WITH MOBILE AMBULANCE की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी|
५. लक्ष्यपूर्ति के मायाजाल से मुक्ति- आज भी हम सिर्फ लक्ष्य पूर्ति के मायाजाल में उलझे हुए है कोई भी वास्तविकता को जानना नहीं चाहता sab दिखावे में लगे रहते है और नतीजा पशुओं की संख्या लगातार घट रही है| हमें लक्ष्यपूर्ति के लिए जमीन पर दूध की आवश्यकता पैदा करना होगा हम दूध पर सब्सिडी दे सकते है| कृत्रिम गर्भादान के फायदों का प्रचार प्रसार करना उसके लिए हमें कैंपो की जगह रेडियो टेलीविजन और किसी बड़े मीडिया तंत्र का भी प्रयोग कर सकते है हर दिन चार बार हर जगह इसका प्रचार होना चाहिए एक मिशन की तरह|इसका फायदा के होगा कि कृषकों में जागरूकता पैदा होगी।
६. भैंसों के विकास पर ज्यादा ध्यान- आज भी ५५% दूध भैंसों से प्राप्त होता है जबकि हम गायों में कृत्रिम गर्भादान पिछले ४० सालो से कर रहे है। भैसों के रखरखाव में कम खर्च होता है जबकि शुद्ध विदेशी नस्लो को पालने में ज्यादा खर्च होता है भैसों का दूध भी A2 श्रेणी का होता है जबकि विदेशी नस्लो का दूध A1 श्रेणी का । इस तरह भी भैंस ज्यादा फायदेमंद होती है।
७. दवाओं की उत्तम व्यवस्था-हमें समुचित विकास के लिए विश्वस्तरीय मानको की दवाओं को सरकारी वितरण प्रणाली में देना होगा| इसके बदले हम मेडिसिन के लिए आवंटित बजट को सीधे कृषक के खाते में भी डाल सकते है जिसके तहत पशुपालक पशुओ की संख्या और उसकी आवस्यकता के अनुसार व् पशुचिकित्सक की सलाह पर अच्छे से अच्छी दवाएं खरीद सकेगा और सरकार को दवा वितरण का अतिरिक्त खर्च नहीं उठाना पड़ेगा यह प्रयोग बहुत हद तक दवा विक्रय और वितरण में होने वाले भ्रस्टाचार को कम किया जा सकता है नया विचार है किन्तु समय की मांग है इससे दवाओं के expire होने का खतरा भी कम होगा| दवाओं के बिल के अनुसार कृषकों को भुगतान करके कृषकों को अतिरिक्त लाभ सीधे तौर पर दिया जा सकेगा किन्तु इसके लिए सही पशु गणना करवानी पड़ेंगी।
८. नर पशुओ और वृद्ध गायों के लिए अलग व्यवस्था- जैसा की हम भली भांति परिचित है गौहत्या हमारे देश की बड़ी समस्या है| हर CALVING में ५०% नर जन्म लेते है साथ ही वृद्ध पशुओं के लिए अलग से व्यवस्था करना होगा ताकि ये कत्लखाने जाने से बच जाए किन्तु ये काम बिना शासकीय सहयोग के संभव नहीं हो सकती| आज की मशीनीकरण वाली कृषि में बैलो का उपयोग लगभग खत्म हो गया है अतः हमें नर गौवंश और वृद्ध गायों की अलग से व्यवस्था करनी होगी ताकि उन्हें बचाया जा सके और उनके मल मूत्र का उपयोग कृषि की उर्वरता बढ़ाने में कर सकते है।
९. चारे की किल्लत- आधुनिक कृषि में गेंहू और धन के पौधों से सीधे ही दाना निकल लिया जाता है और बचा हुआ भाग (पुवाल ) खेत में ही फैंक देते है जो की पशुओं का आधारभूत आहार है इसके बाद इस फैले हुए पुवाल को जमा करना बहुत खर्चीला होता है और किसान इसे आग के हवाले कर देता है जिससे पर्यावरण, जमीन और पशुओं को भारी नुकसान होता है| कुछ हद तक इसके लिए मनरेगा भी जिम्मेदार है जो मजदूरो को खेतों से दूर कर रही है अगर समय रहते नहीं जागे तो हमें बहुत पछताना पड़ेगा|
जय हिन्द
Dr. Shital kumar Gautam (MVSc AN), Dr. Shivani Tiwari (PhD scholar LPM) Dr. S R Patle (VEO)