पशुओं में होने वाली दस्त की बीमारी व बचाव

Pashu Sandesh, 14 July 2022

डॉ. पुरुषोत्तम (पी.एच.डी. स्कोलर) 

एनाटोमी विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविधालय,

राजुवास बीकानेर-334001, राजस्थान

(Email – purushottam.beniwal@gmail.com)

परिचय 

अतिसार (दस्त) स्वयं एक बीमारी न होकर अन्य बीमारियों का लक्षण है, जिसमें पशु बार-बार पतला गोबर करता है, निर्बल होता जाता है तथा पशु के शरीर में पानी व प्रमुख तत्वों की कमी हो जाती है। अधिकांश नवजात बच्चों की मृत्यु भी पाचन तंत्र की समस्याओं के कारण होती है । 

कारण 

इस रोग के अनेक कारण होते हैं -

  • विभिन्न जीवाणु तथा विषाणु का संक्रमण पाचन तन्त्र में रहने वाले परजीवियों की संख्या में वृद्धि इसके प्रमुख कारण हैं। 
  • शरीर में कई पोषक तत्वों की कमी से भी दस्त उत्पन्न होता है। 
  • विभिन्न विषाक्ताओ में भी दस्त हो सकती है। 
  • खाने में अनियमितता, एकाएक परिवर्तित भोजन में दाने या हरे चारे की अत्यधिक मात्रा अथवा दुषित आहार जैसे सड़े-गले बासी एवं विषैले पदार्थ खाने से यह रोग हो जाता है। 
  • नवजात बछड़ों में ज्यादा दूध पिलाने से भी दस्त हो जाती है। 
  • लगातार ऐन्टीबायोटिक खिलाने से पाचनतंत्र के सामान्य विषाणु नष्ट हो जाते हैं जिससे अपच होता है और दस्त शुरू हो जाते हैं। 
  • नवजात पशु को जन्म के बाद खीस (भोजन) का न मिलना, विटामिन ए की कमी, आहार की कमी, तेज ठंड एवं रखरखाव में कमी आदि कारणों से भी हो सकता है। 

लक्षण 

  • रोग के प्रारम्भ में पशु सुस्त रहने लगता है तथा आहार लेना कम कर देता है। 
  • बाद में पशु पानी की तरह पतला गोबर करने लगता है। 
  • शरीर से लगातार पानी निकलने से शरीर में पानी एवं प्रमुख तत्वों की कमी हो जाती है। 
  • पशु कमजोर होता रहता है तथा कुछ समय उपरान्त शरीर की हड्डियां दिखने लगती है। 
  • खून की कमी हो जाती है। 
  • प्यास अधिक लगती है। 
  • पशु की त्वचा से चमक चली जाती है तथा आंखे अन्दर धंस जाती है। 
  • गोबर से दुर्गन्ध आती है तथा पशु अधिक मात्रा में गोबर करता है। 
  • पशु की पिछली टांगें तथा पूंछ गोबर से सनी रहती है। 
  • दुधारू पशुओं में दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है। 
  • ई. कोलाई के कारण बदबूदार दस्त होती है जो की पीली या सफेद हो सकती है जिसके कारण एक-दो दिन के बच्चे की हालत अत्यंत गंभीर हो जाती है।
  • इ. कोलाई के संक्रमण से सेप्टीसीमिया होने पर अक्सर नवजात मर जाता है। 
  • यदि बच्चा 7 से 14 दिन का हो तो यह रोग रोटावायरस से होता है। 
  • इसके अतिरिक्त इस उम्र में यह रोग जीवाणु एवं प्रोटोजोआ जैसे कोक्सीडिया, क्रिप्टोस्पोरीडियम द्वारा भी हो सकता है। 

प्रबंधन

  • उपचार एवं रोकथाम हेतु पशु चिकित्सक से संपर्क करें । 
  • इस रोग के अनेक कारण होने की वजह से इसका सीधा निदान काफी कठिन होता हैं अतः इसके उपचार में भी कठिनाई आती है। 
  • आहार के बर्तनों और आसपास मैं सम्पूर्ण स्वच्छता का ध्यान रखें। 
  • बछडों को 15 दिन की उम्र पर पेट के कीड़े मारने की औषधि अवश्य दें। 
  • क्रमी नाशक औषधि प्रथम बार 15 दिन पर तत्पश्चात प्रत्येक महीने कम से कम 6 माह तक अवश्य दें। 
  • वयस्क पशुओं को हर तीन महीने में एक बार पेट के कीड़ें की दवा अवश्य दी जानी चाहिए। 
  • पशु चिकित्सक की सलाह पर फ्लूइड थेरेपी एवं प्रतिजैविक औषधिया दें।