बछड़ो का दस्त रोग - कारण एवं निवारण

Pashu Sandesh, 19th June 2020

डॉ शशि प्रधान डाॅ. अमिता तिवारी, डॉ कविता रॉय डॉ बृजेश सिंह डॉ अर्पणा रायकवार डॉ रणबीर जाटव

यह रोग नवजात बछड़ो में बहुत ज्यादा देखा गया है। इसमें उनको दस्त लगतें है। ये दस्त ही इस रोग का प्रमुख लक्षण है। दस्तों के मैले का रंग प्रायः सफेद होता है इसलिए इस रोग का नाम सामान्य बोली।सफेद दस्त पड़ गया है। यह विषेशकर संगठित बड़े पशुपालन फार्मो के लिए आर्थिक दृष्टि से एक अतिमहत्वपूर्ण रोग है। भारत में इस रोग से हर साल गायों और भैसो के बहुत बच्चे मरतें है और पशुपालको को बहुत आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। इसलिए भारत के लिए इसका महत्व विषेश रूप से और भी अधिक है।

यह रोग अनुचित खान-पान तथा जीवाणु, जैसे ई.कोलाई, सैलमोनेला समूह के कुछ जीवाणु, प्रोटियस मोरगनी और स्यूडोमोनस ईरूनाइनोसा विशेष रूप से ई.कोलाई, के संक्रमण के कारण होता है।नवजात बछड़ो को इस रोग की छूत शायद अपनी माॅ के छूत से, दूषित थनों से दूध चूगने या दूध पीने के गंदे बर्तनो को चाटने से लगती है। कुछ मामलों में रोग की छूत बछड़ो को शायद पैदा होने से पहले ही लगी होती है। पर यह छूत संभवतः नाभि द्वारा नहीं लगती है। नवजात बछड़ो में सफेद दस्त रोग के विकास के लिए जैसी अनुकूल परिस्थितियां चाहिए वैसी भारत में  है, यहां तक कि भारत की कड़ाके की अति सर्दी, अति गर्मी और अति वर्षा भी इसके लिए अनुकूल पड़ती है।

रोग के लक्षण - इस रोग में बछड़े दूध पीना बंद कर देते है और घूमना फिरना नहीं चाहते। उनको मटैले रंग के पतले दस्त लगने लगते है। बाद में उनका रंग मैला खाड़िया जैसा सफेद हो जाता है। दस्तों के साथ झाग होतें है। और उनमें खट्टी बदबू आती है। रोगी बछड़े को ज्वर हो जाता है और शरीर का ताप पहले 12-24 घंटे में बढ़ता हैै। वह पेट में तेज दर्द के कारण बार-बार अकड़ता और घुरघुराता है। मंद रोग के मामलो में अधिकांश पशुओं के जोड़ो से सूजन आ जाती है और निमोनिया के लक्षण दिखायी देते है।

चिकित्सा एवं निवारण - शरीर में पानी की कमी को रोकने के लिए दूध को बन्द कर खनिज मिश्रण युक्त पुनः आर्दीकरण चिकित्सा प्रारम्भ करें जिसके लिए ओ0आर0एस0 का प्रयोग कर सकते हैं। उनको गुनगुना पानी 1 ग्राम सलोल या टैनिन मिलाकर दिया जा सकता है। बाद में उनको चूने का पानी मिलाकर पतला किया हुआ दूध देना चाहिए। सफेद दस्त रोग मंे एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग भी लाभदायक पाया गया है। पारम्परिक चिकित्सा के रूप में रोग की प्रारम्भिक अवस्था में 100 ग्राम पतले दलिए में 10 ग्राम केओलिन, 5 ग्राम नमक एवं 50 ग्राम गुड़ मिलाकर पशु को खिलाऐं या 20 ग्राम शीशम की पत्ती का पाऊडर एवं 10 ग्राम बेल के गुद्दे का चूर्ण मिलाकर दिन में दो बार दें। दही (100 ग्राम) में इसबगोल भूसी (30 ग्राम) मिलाकर देने से भी दस्तों में फायदा होता है । जौ का आटा 100 ग्राम, केओलिन 10 ग्राम, दही 100 ग्राम तथा गुड़ 50 ग्राम का मिश्रण भी लाभकारी है।

रोकथाम 

  • नवजात बछड़ां/बछियों के बाड़े में सफाई व्यवस्था सुनिश्चित करें। एक बाड़े में सात-आठ से ज्यादा बछड़े नहीं रखने चाहिए। 
  • जन्म के 8 घंटे के भीतर पर्याप्त मात्रा में खीस/फेनुस पिलाऐं। नवजात बछड़ो को पैदा होने के बाद 24 घंटे से 48 घंटे तक अपनी माताओं के साथ ही छोड़ देना चाहिए जिससे उनको काफी खीस पीने को मिल सके।
  • प्रथम दो सप्ताहों में बछड़ो को अपने शरीर के भार के 6 प्रतिशत से 8 प्रतिशत के बराबर दूध रोजाना पिलाना चाहिए । 
  • सम्भावित रोग को रोकने के लिए बछड़ों/बछियों में एन्टीबायोटिक का रक्षात्मक रूप से प्रयोग कर सकते हैं। 
  • विटामिन ए की कमी को दूर करने के लिए बछड़े को रोजाना एक-दो मिलीग्राम शार्क लिवर आयल देना चाहिए। 

 डॉ शशि प्रधान डाॅ. अमिता तिवारी, डॉ कविता रॉय डॉ बृजेश सिंह डॉ अर्पणा रायकवार डॉ रणबीर जाटव

डिपार्टमेन्ट आफ वेटेरनरी मेडीसिन

काॅलेज आफ वेटेरनरी साईंस एण्ड ए.एच. जबलपुर

 

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