पशुओं के किलनियों में किलनीनाषक रसायनों के विरुद्ध बढ़ती प्रतिरोधी क्षमता

Pashu Sandesh, 17 September 2021

रिनेश कुमार1, राजीव रंजन2, अलोक कुमार सिंह3, अर्पिता श्रीवास्तव4,स्वतंत्र कुमार सिंह5, अमित कुमार झा6 एवं योगेश चतुर7

पशु चिकित्सा विज्ञानएवं पशुपालन महाविद्यालय, रीवा, मध्य प्रदेश

भारत में लगभग सभी पशुधन जानवर किलनी संक्रमण से पीड़ित रहते है। जिससे उनमें जबरदस्त उत्पादन घटने, खून की कमी, सामान्य तनाव और जलन होता है। विकास और उत्पादन पर किलनियों के प्रभाव के अलावा किलनी संक्रमण से खाल और चमड़ा उद्योग के लिये अच्छी गुणवक्ता की खाल और चमड़ा की उपलब्धता एक महत्वपूर्ण खतरा है। बहुत सी जातियों की किलनिया मुख्यतः प्रोटोजोआ जनित रोगों को एक जगह से दूसरी जगह और एक पशु से दूससे पशु तक पहुचाने का काम करते है। किलनिया खून चूसते समय इन प्रोटोजोआ रोगो को पशुओं के शरीर के अन्दर पहुचती है। पशुओं में बबीसिया, थिलेरिया और एनाप्लाज्मा को बूफीलस एवं हायलोमा जाति की किलनिया फैलाती है। किलनियां कई जूनोटिक रोगो के वैक्टर के रूप में मच्छरों के बाद दूसरे स्थान पर है तथा इन रोगों के प्रकोप द्वारा हुआ नुकसान पशु उत्पादकता में लिये एक बड़ी बाधा है। अध्ययन में यह देखा गया है कि किलनी एवं किलनी जनित बिमारियों का प्रकोप भारतीय (देशी) नस्ल के पशुओं के अपेक्षा संकर एवं विदेशी नस्ल की पशुओं में ज्यादा होता है। 

वर्तमान में किलनी नियंत्रण, रसायनिक किलनीनाशकों (एकेरिसाईड) के अंधाधुंध प्रयोग पर आधारित है। जिससे भारतीय किलनियों में प्रतिरोध के विकास  के अलावा पर्यावरण प्रदूषण, दूध और मास में अवशिष्ट विषाक्तता, मानव और पशुओं के स्वास्थ्य संबंधी आदि समस्याये हो जाती है। किलनियों में पहले से ही आमतौर पर इस्तेमाल किये जाने वाले किलनीनाशक रसायनों के लिये प्रतिरोध विकसित हो चुका है। जिससे किलनियों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही और यह एक घातक समस्या बनती जा रही है। 

किलनियों की रोकथाम के लिये दिन प्रति दिन उपयोग में लाये जाने वाले किलनीनाशक रसायनों के विरुद्ध किलनियों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती जा रही है। किलनियों में विभिन्न प्रतिरोधी तंत्र विकसित करके किलनीनाशक रसायनों के प्रभाव से बचने की क्षमता हासिल कर ली है। जिन्हे आमतौर पर दो मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। 

1 चयापचय एंजाइम प्रणाली में बृद्धि या मेटाबोलिक प्रतिरोध- रसायनिक किलनीनाशक के खिलाफ मेटाबोलिक प्रतिरोधी तंत्र सबसे आम तंत्र है, और यह रसायनिक किलनीनाशक के कई वर्गो के लिये प्रतिरोध प्रदान कर सकता है। किलनियों सहित बहुत सारे आथ्र्रोपोड अपने डिटाक्सीफाइंग एन्जाइम सिस्टम का उपयोग रसायनिक किलनीनाशकसहित अनेक विदेशी यौगिकों को तोड़ने के लिये करते है। इन एंजाइम प्रणालियों में व्यापक सब्सट्रेट विशिष्टता होती है जिसके फलस्वरूप वे रसायनिक किलनीनाशकके विभिन्न वर्गो को डिटाक्सिफाई करने में सक्षम होते है। मेटावोलिक प्रतिरोध तब होता है जब किलनी एक किलनीनाशकको अपने शरीर में डिटाक्सीफाइ अथवा अपने शरीर सेपृथक करने की बढ़ी हुई क्षमता विकसित करते है। चयापचय एंजाइम प्रणाली दो तरीके से प्रतिरोध पैदा करती है। चयापचय एंजाइम प्रणाली के एंजाइम्स अपने आप को बदल लेते है, यानी एंजाइमों के उत्प्रेरक केंद्र गतिविधि में एक उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) हो जाता है, जो उस दर को बढ़ाता है जिस पर एंजाइम इकाई किलनीनाशक को मेटाबोलाइज करती है। दूसरे तरीके में चयापचय एंजाइम प्रणाली के एंजाइमों के उन्नत गतिविधि हो जाती है, जिससे किलनियों के शरीर में इनकी मात्रा पहले से कई गुना ज्यादा हो जाती है। 

तीन मुख्य एंजाइम परिवारो को इस प्रकार के प्रतिराध में शामिल होने के लिये जाना जाता है। 

(क) साइटोक्रोम  P450S

(ख) ऐस्ट्रेज 

(ग) ग्लूटाथियोन एस-ट्रांसफरेज 

ये एंजाइम किलनियों के शरीर के विभिन्न हिस्सों में रणनीतिक रूप से स्थित होते है। प्रतिरोधी किलनियों में इन एंजाइम्स की बढ़ी या बदली हुई मात्रा किलनीनाशक रसायनों को अपने लक्ष्य स्थल (जो के तंत्रिका तंत्र में होती है) तक पहुंचने से रोकती है। 

सिनरजिस्टके रूप में जाने वाला रसायन अक्सर चयापचय प्रतिरोध में शामिल एंजाइमो के प्रकार की पहचान करने के लिये उपयोग किया जाता है। पिपरोनिल ब्यूआक्साइड, ट्राईफेनिल फास्फेट और डायइथाइल मैलेट सबसे अधिक इस्तेमाल किये जाने वाले सिनरजिस्ट है। 

2 लक्षित साइट असंवेदनशीलता-ज्यादातर किलनीनाशक रसायन तंत्रिका तंत्र में उपस्थित रेसेप्टर्स पर हमला करते है, जिनके फलस्वरूप किलनियों में पैरालाइसिस होता है, और उनकी मृत्यु हो जाती है। लक्ष्य साइट प्रतिरोध तब होता है, जब तंत्रिका तंत्र में उपस्थित लक्षित जीनों के रिसेप्टर्स में एक या अधिक उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) द्वारा बदलाव आ जाता है। किलनीनाशक रसायनजब रिसेप्टर्स या इच्छित लक्ष्य स्थल पर ठीक से नही बंध पाता तब किलनीनाशक रसायन कम प्रभावी या प्रभावहीन हो जाता है, और हम कहते है, कि किलनियों में किलनीनाशक रसायनके विरूद्ध प्रतिरोध क्षमता विकसित हो गई है। यह किलनीयों में प्रतिरोध का एक बहुत प्रभावी तंत्र है। 

किलनियों के तंत्रिका तंत्र में उपस्थित लक्षित जीनों के रिसेप्टर्स में पाये जाने वाले उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) के अध्ययन में निम्नलिखित जानकारिया अभी तक मिल पाई है। 

1 सोडियम चैनल जीन में मौजूद रिसेप्टर में उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) जो पाइरेथ्रोइड किलनीनाशक रसायनको कम प्रभावी या अप्रभावी बनाता है। सोडियम चैनल जीन की एस 4-5 लिंकर क्षेत्र में उत्परिवर्तन किलनियों में प्रतिरोध के विकास के लिये संभावित कारणों के रूप में शामिल किया गया हैं। 

2 एसिटाइलकोलीनइस्टेज जीन में मौजूद रिसेप्टर में उत्परिवर्तन जो आर्गेनोफास्फेट किलनीनाशक रसायन को कम प्रभावी या अप्रभावी बनाता है।

3 आक्टोपामाईन जीन में मौजूद रिसेप्टर में उत्परिवर्तन जो एमिट्राज किलनीनाशक रसायन को कम प्रभावी या अप्रभावी बनाता है।

4 ग्लुटामेट-गेटेड क्लोराइड चैनेल जीन में मौजूद रिसेप्टर में उत्परिवर्तन जो आइभरमेक्टीन किलनीनाशक रसायन को कम प्रभावी या अप्रभावी बनाता है।

5 गाबा जीन में मौजूद रिसेप्टर मे उत्परिवर्तन जो फिप्रोनिल किलनीनाशक रसायन को कम प्रभावी या अप्रभावी बनाता है।

डेल्टामेथ्रिन, साइपरमेथ्रिन, फेन्वेलेरेट, डायजिनान, कामाफास, अमिट्राज, लिडेन रसायनो के लिये किलनियों में प्रतिरोध के विकास की संभावित प्रणाली को समझने के लिए कुछ लक्षित जीनों का अध्ययन लेखक द्वारा किया गया है, और इन जीन्स के लगभग 30 अनुक्रम डेटा को जनबैंक में प्रस्तुत किया गया। 

जैसा कि किलनीनाशक रसायनों के इतिहास से पता चलता है कि किलनियों में किलनीनाशक के व्यापक प्रतिरोध के विकास के बाद प्रत्येक नये किलनीनाशक रसायन के नये वर्ग की शुरुआत हुई। इसलिए जब भी किलनीनाशक रसायन का एक नया वर्ग वैज्ञानिकों द्वारा खोजा जाता है, और जब यह नया किलनीनाशक बाजार में आता है, तब यह सवाल उठता है कि इस नये किलनीनाशक रसायन के विरुद्ध किलनियों में प्रतिरोध कब दिखाई देगा और यह माना जाता है कि कभी न कभी किलनिया इस नये किलनीनाशक रसायन के विरुद्ध प्रतिरोध विकसित कर लेगी। इसलिये किलनीनाशक रसायनों के प्रतिरोध के उद्भव एवं प्रसार मे देरी करने के लिये रणनीति का कार्यान्वयन महत्वपूर्ण है। 

स्थानीय और वैश्विक स्तर पर पशुओं के कीलनी प्रतिरोध की निगरानी आवश्यक है। किलनी नियंत्रण विफलता हमेंशा किलनियों में प्रतिरोध उत्पन्न होने के कारण नहीं होती है, लेकिन अन्य कारकों जैसे दोषापूर्ण उपकरण, किलनीनाशक रसायनों के अनुचित खुराक,किलनीनाशक रसायनों के एक्सपायर होने के कारण किलनीनाशक रसायन अप्रभावी हो सकते है, इसलिए जब भी किलनी नियंत्रण विफलता देखी जाती है, तो एक नये किलनीनाशक का चयन करने से पहले संदिग्ध प्रतिरोध की पुष्टि की जानी चाहिए। एक बार प्रतिरोध की पुष्टि हो जाने के बाद पशुपालको को किलनियों की प्रतिरोधी आबादी को नियंत्रित करने के लिये वैकल्पिक रसायनों का उपयोग करने की सलाह दी जाती है ऐसा करने के लिए संभावित प्रतिस्थापन किलनीनाशक रसायनों के लिये प्रतिरोधी किलनियों की संवेदनशीलता का परीक्षण किया जाना चाहिए।